यहाँ कुरआन की दूसरी सूरह, अल-बक़ारह की चौंतीसवीं आयत (2:34) का पूर्ण विस्तृत व्याख्या हिंदी में प्रस्तुत है।
कुरआन 2:34 - "व इज़ कुलना लिल मलाइकति अस्जुदू लि आदमा फसजदू इल्ला इब्लीस, अबा वस्तक्बरा व काना minel काफिरीन"
(وَإِذْ قُلْنَا لِلْمَلَائِكَةِ اسْجُدُوا لِآدَمَ فَسَجَدُوا إِلَّا إِبْلِيسَ أَبَىٰ وَاسْتَكْبَرَ وَكَانَ مِنَ الْكَافِرِينَ)
हिंदी अर्थ: "और (याद करो) जब हमने फ़रिश्तों से कहा, 'आदम को सज्दा करो,' तो उन्होंने सज्दा किया, इब्लीस के सिवा। उसने इनकार किया और अहंकार किया और वह काफ़िरों में से हो गया।"
यह आयत मानव इतिहास में पहले पाप और अवज्ञा के प्रारंभ का वर्णन करती है। यह वह क्षण है जब आदम (अलैहिस्सलाम) की श्रेष्ठता को स्वीकार करने के लिए सभी फरिश्तों को आदेश दिया गया, और जहाँ इब्लीस (शैतान) ने अहंकारवश अल्लाह की आज्ञा का उल्लंघन किया।
आइए, इस आयत को शब्द-दर-शब्द और उसके गहन अर्थों में समझते हैं।
1. शब्दार्थ विश्लेषण (Word-by-Word Analysis)
व इज़ (Wa iz): और (उस समय को) याद करो (And when)
कुलना (Qulna): हमने कहा (We said)
लिल मलाइकति (Lil malaa'ikati): फ़रिश्तों से (To the angels)
अस्जुदू (Usjudoo): सज्दा करो (Prostrate)
ली आदमा (Li Aadama): आदम को (To Adam)
फसजदू (Fa sajadoo): तो उन्होंने सज्दा किया (So they prostrated)
इल्ला (Illaa): सिवाय (Except)
इब्लीस (Iblees): इब्लीस (Iblees - Satan)
अबा (Abaa): उसने इनकार किया (He refused)
वस्तक्बरा (Wastakbara): और अहंकार किया (And was arrogant)
व काना (Wa kaana): और वह हो गया (And he became)
मिनेल काफिरीन (Minal kaafireen): काफिरों में से (Of the disbelievers)
2. गहन अर्थ और संदेश (In-depth Meaning & Message)
यह आयत तीन प्रमुख पात्रों की प्रतिक्रियाओं को दर्शाती है:
1. अल्लाह का आदेश (Allah's Command)
"अस्जुदू लि आदमा" - "आदम को सज्दा करो।"
सज्दा किसके लिए था? यह सज्दा (प्रणाम) आदम की पूजा के लिए नहीं था, बल्कि सम्मान और अल्लाह के आदेश की पालना के लिए था। यह आदम की उस श्रेष्ठता को स्वीकार करने का प्रतीक था जो अल्लाह ने उन्हें ज्ञान देकर प्रदान की थी।
यह एक परीक्षा भी थी कि कौन अल्लाह के आदेश का पालन करता है और कौन नहीं।
2. फरिश्तों की आज्ञाकारिता (The Obedience of the Angels)
"फसजदू" - "तो उन्होंने सज्दा किया।"
सभी फरिश्तों ने बिना किसी सवाल या हिचकिचाहट के तुरंत आदेश का पालन किया। यह उनकी पूर्ण आज्ञाकारिता और विनम्रता को दर्शाता है। उन्होंने आदम के ज्ञान को देखकर अल्लाह की हिकमत को समझ लिया था।
3. इब्लीस की अवज्ञा और पतन (The Disobedience and Fall of Iblees)
इब्लीस की प्रतिक्रिया तीन चरणों में हुई:
"अबा" - "उसने इनकार किया।"
यह सीधी अवज्ञा थी। उसने अल्लाह के सीधे आदेश को ठुकरा दिया।
"वस्तक्बरा" - "और अहंकार किया।"
इनकार का कारण अहंकार (घमंड) था। इब्लीस ने तर्क दिया कि वह आग से बना है और आदम मिट्टी से, इसलिए वह आदम से श्रेष्ठ है। उसने अपनी उत्पत्ति को आदम से बेहतर समझा और सज्दा करने से इनकार कर दिया।
अहंकार विनाश का मूल है। यही एकमात्र पाप है जिसे अल्लाह कभी माफ नहीं करेगा, क्योंकि यह इंसान (या जिन) को सत्य को स्वीकार करने से रोकता है।
"व काना minel काफिरीन" - "और वह काफ़िरों में से हो गया।"
इस अवज्ञा के परिणामस्वरूप, इब्लीस "काफिर" (अविश्वासी) की श्रेणी में आ गया। "कुफ्र" का अर्थ है 'इनकार करना' या 'ढकना'। इब्लीस ने अल्लाह के आदेश और उसकी हिकमत दोनों का इनकार कर दिया।
यहाँ से इब्लीस का सीधा और खुला विद्रोह शुरू होता है, और वह शैतान बन जाता है।
4. महत्वपूर्ण बारीकियाँ (Important Nuances)
इब्लीस फरिश्ता था या जिन? इस आयत से पता चलता है कि इब्लीस फरिश्तों की जमात में था, क्योंकि आदेश सभी फरिश्तों को दिया गया था। हालाँकि, इस्लामी धर्मशास्त्र में एक राय यह भी है कि इब्लीस जिन्नों की एक श्रेणी से था जो अपनी इबादत के कारण फरिश्तों के समूह में शामिल हो गया था। लेकिन उसकी प्रकृति (आग से बना होना) जिन्नों जैसी ही थी।
सज्दे का उद्देश्य: यह सज्दा आदम की पूजा के लिए नहीं, बल्कि अल्लाह के आदेश का पालन करने और आदम में निहित अल्लाह की कला एवं ज्ञान का सम्मान करने के लिए था।
5. व्यावहारिक जीवन में महत्व (Practical Importance in Daily Life)
आज्ञाकारिता की शिक्षा: फरिश्तों का उदाहरण हमें सिखाता है कि अल्लाह के आदेशों का बिना किसी सवाल के पालन करना चाहिए, भले ही हम उसकी हिकमत को तुरंत न समझ पाएँ।
अहंकार से सावधानी: इब्लीस का उदाहरण हमें चेतावनी देता है कि अहंकार इंसान को अल्लाह की अवज्ञा और सीधे पतन की ओर ले जाता है। हमें अपनी उत्पत्ति (मिट्टी), अपनी कमजोरियों और अल्लाह पर निर्भरता को हमेशा याद रखना चाहिए।
शैतान की शत्रुता को पहचानना: इस आयत से पता चलता है कि शैतान का इंसान से स्थायी और कट्टर दुश्मनी है, जो अहंकार से शुरू हुई थी। इसलिए, हमें हमेशा उसके षड्यंत्रों से सावधान रहना चाहिए।
निष्कर्ष (Conclusion)
कुरआन की आयत 2:34 मानव इतिहास के एक निर्णायक मोड़ को चिह्नित करती है। यह वह क्षण था जब आज्ञाकारिता और अवज्ञा, विनम्रता और अहंकार के बीच की रेखा खिंच गई। फरिश्तों ने विनम्रता दिखाई और आज्ञाकारी बने रहे, जबकि इब्लीस ने अहंकार किया और सदा के लिए अल्लाह की रहमत से दूर हो गया। यह आयत हर इंसान के लिए एक स्थायी सबक है: अल्लाह के आदेशों के सामने विनम्रता ही सफलता की कुंजी है, और अहंकार सबसे बड़ा विनाशक है। शैतान का पहला पाप अहंकार ही था, और यही आज भी मनुष्य को पाप की ओर धकेलने वाला मुख्य कारण है।