यहाँ कुरआन की दूसरी सूरह, अल-बक़ारह की पैंतीसवीं आयत (2:35) का पूर्ण विस्तृत व्याख्या हिंदी में प्रस्तुत है।
कुरआन 2:35 - "व कुलना या आदमुस्कुन अ्ता व जौजुकल जन्नता व कुला मिन्हा रगदन हइसु शितुम्मा व ला तकरबा हाजिहिश शजरता फ तकूना minaz ज़ालिमीन"
(وَقُلْنَا يَا آدَمُ اسْكُنْ أَنتَ وَزَوْجُكَ الْجَنَّةَ وَكُلَا مِنْهَا رَغَدًا حَيْثُ شِئْتُمَا وَلَا تَقْرَبَا هَٰذِهِ الشَّجَرَةَ فَتَكُونَا مِنَ الظَّالِمِينَ)
हिंदी अर्थ: "और हमने कहा, 'हे आदम! तुम और तुम्हारी पत्नी (हव्वा) जन्नत में बस जाओ और उसमें जहाँ से चाहो, खुले (आराम से) खाओ-पियो, और इस पेड़ के पास न जाना, नहीं तो तुम दोनों अत्याचारियों में से हो जाओगे।'"
यह आयत जन्नत में आदम और हव्वा (अलैहिस्सलाम) के जीवन के शुरुआती दृश्य का वर्णन करती है। अल्लाह ने उन्हें जन्नत में रहने का आदेश दिया और एकमात्र प्रतिबंध लगाया, जो उनकी आज़ाद इच्छा (free will) की परीक्षा थी।
आइए, इस आयत को शब्द-दर-शब्द और उसके गहन अर्थों में समझते हैं।
1. शब्दार्थ विश्लेषण (Word-by-Word Analysis)
व कुलना (Wa qulna): और हमने कहा (And We said)
या आदमु (Yaa Aadamu): हे आदम! (O Adam)
उस्कुन (Uskun): तुम बस जाओ (You dwell)
अ्न्ता (Anta): तुम (You)
व जौजुका (Wa zawjuka): और तुम्हारी पत्नी (And your wife)
अल-जन्नता (Al-jannata): जन्नत (The Paradise)
व कुला (Wa kulaa): और खाओ (And eat)
मिन्हा (Minhaa): उसमें से (From it)
रगदन (Raghadan): खुले (आराम से) (Freely / abundantly)
हइसु शितुम्मा (Haithu shi'tumaa): जहाँ से चाहो (Wherever you wish)
व ला तकरबा (Wa laa taqrabaa): और न जाना (And do not approach)
हाजिहि (Haazihi): इस (This)
अश-शजरता (Ash-shajarata): पेड़ (Tree)
फ तकूना (Fa takoonaa): तो तुम हो जाओगे (Then you will become)
मिनज़ (Minaz): में से (From)
ज़ालिमीन (Zhaalimeen): अत्याचारी (The wrongdoers)
2. गहन अर्थ और संदेश (In-depth Meaning & Message)
यह आयत आदम और हव्वा के लिए अल्लाह के आदेशों के दो भागों को दर्शाती है:
भाग 1: अनुमति और उदार उपहार (The Permission and the Generous Gift)
"उस्कुन अ्न्ता व जौजुकल जन्नता" - "तुम और तुम्हारी पत्नी जन्नत में बस जाओ।"
अल्लाह ने उन्हें जन्नत जैसी पवित्र और सुखद जगह में रहने का आदेश दिया। यह अल्लाह की अनंत कृपा थी।
"व कुला मिन्हा रगदन हइसु शितुम्मा" - "और उसमें जहाँ से चाहो, खुले (आराम से) खाओ-पियो।"
"रगदन" शब्द बहुत ही अर्थपूर्ण है। इसका मतलब है भरपूर, आसानी से, बिना किसी मेहनत या प्रतिबंध के।
उनके लिए कोई सीमा नहीं थी। वे किसी भी चीज़ का, कहीं से भी, जितना चाहें आनंद ले सकते थे। यह पूर्ण स्वतंत्रता और समृद्धि का वर्णन है।
भाग 2: एकमात्र प्रतिबंध और चेतावनी (The Sole Prohibition and the Warning)
"व ला तकरबा हाजिहिश शजरता" - "और इस पेड़ के पास न जाना।"
पूरी आज़ादी के बीच, अल्लाह ने केवल एक ही चीज़ से मना किया। इस पेड़ का सटीक प्रकार कुरआन में नहीं बताया गया है, क्योंकि यह मुख्य बात नहीं है। मुख्य बात आज्ञापालन की परीक्षा थी।
"ला तकरबा" (न जाना) एक बहुत ही मजबूत शब्द है। इसका मतलब सिर्फ "न खाना" ही नहीं, बल्कि उसके पास भी नहीं जाना है। यह मनुष्य को पाप के रास्ते से दूर रहने की शिक्षा देता है।
"फ तकूना मिनज़ ज़ालिमीन" - "तो तुम दोनों अत्याचारियों में से हो जाओगे।"
यहाँ "ज़ालिमीन" (अत्याचारी) का अर्थ है "अपने ऊपर अत्याचार करने वाले"। अल्लाह की अवज्ञा करके, वे अपने ही आत्मा को नुकसान पहुँचाते।
यह एक स्पष्ट चेतावनी थी। अल्लाह ने उन्हें पहले ही बता दिया था कि उस पेड़ के पास जाने का क्या परिणाम होगा।
3. आयत के मुख्य सबक (Key Lessons from the Verse)
आज़ाद इच्छा (Free Will) की परीक्षा: अल्लाह ने आदम और हव्वा को आज़ाद इच्छा दी थी। अगर उनके पास आज्ञा मानने या न मानने का विकल्प नहीं होता, तो उनकी आज्ञाकारिता का कोई मूल्य नहीं होता। यह प्रतिबंध उनकी इच्छाशक्ति और आज्ञापालन की परीक्षा थी।
शैतान के फंदे से सावधानी: यह प्रतिबंध शैतान के लिए एक अवसर बन गया, जैसा कि अगली आयतों में आता है, वह उसी पेड़ के माध्यम से उन्हें बहकाएगा।
अल्लाह की दया: अल्लाह ने उन्हें पहले से ही परिणाम की चेतावनी दे दी थी। यह अल्लाह की रहमत और न्याय दोनों को दर्शाता है।
4. व्यावहारिक जीवन में महत्व (Practical Importance in Daily Life)
अल्लाह की सीमाओं का सम्मान: इस आयत से हमें सीख मिलती है कि अल्लाह ने हमारे लिए जीवन की सुख-सुविधाएँ पैदा की हैं, लेकिन कुछ सीमाएँ (हद्द) भी निर्धारित की हैं (जैसे हलाल और हराम)। सफलता इन सीमाओं का सम्मान करने में है।
पाप के रास्ते से दूरी: "ला तकरबा" (न जाना) का सिद्धांत हमें सिखाता है कि हमें केवल पाप करने से ही नहीं, बल्कि उन स्थितियों और रास्तों से भी दूर रहना चाहिए जो पाप की ओर ले जाते हैं।
चेतावनियों पर ध्यान देना: अल्लाह ने कुरआन के माध्यम से हमें स्पष्ट चेतावनियाँ दी हैं। हमें उन पर गौर करना चाहिए और उनसे सबक लेना चाहिए।
निष्कर्ष (Conclusion)
कुरआन की आयत 2:35 मानव जाति के लिए एक मौलिक सबक प्रस्तुत करती है। अल्लाह ने आदम और हव्वा को जन्नत की सारी नेमतें दीं, लेकिन उनकी आज्ञाकारिता की परीक्षा लेने के लिए एक छोटा सा प्रतिबंध लगा दिया। यह आयत हमें सिखाती है कि सच्ची आज़ादी अल्लाह की इच्छा के अंतर्गत ही संभव है। जब हम उसकी सीमाओं का उल्लंघन करते हैं, तो हम अपने ऊपर ही अत्याचार करते हैं। यह आयत हर इंसान को यह याद दिलाती है कि जीवन एक परीक्षा है और सफलता अल्लाह के आदेशों का पालन करने और उसकी चेतावनियों से सीख लेने में है।