1. पूरी आयत अरबी में:
وَلَا تَلْبِسُوا الْحَقَّ بِالْبَاطِلِ وَتَكْتُمُوا الْحَقَّ وَأَنتُمْ تَعْلَمُونَ
2. अरबी शब्दों के अर्थ (Word-to-Word Meaning):
- وَلَا تَلْبِسُوا: और तुम मिलाओ न / गडबड़ी पैदा मत करो 
- الْحَقَّ: सच्चाई को 
- بِالْبَاطِلِ: झूठ के साथ 
- وَتَكْتُمُوا: और तुम छिपाओ न 
- الْحَقَّ: सच्चाई को 
- وَأَنتُمْ: और तुम (स्वयं) 
- تَعْلَمُونَ: जानते हो 
3. पूर्ण विवरण (Full Explanation)
संदर्भ (Context):
यह आयत पिछली आयतों की तरह मदीना के यहूदी विद्वानों को ही संबोधित है। पिछली आयत में उन्हें कुरआन पर ईमान लाने और सच्चाई को छिपाने से मना किया गया था। इस आयत में उनकी उसी प्रवृत्ति की ओर इशारा करते हुए दो बहुत ही गंभीर पापों से रोका जा रहा है: 1. सच और झूठ को मिलाना, और 2. जानबूझकर सच्चाई को छिपाना।
आयत के भागों का विश्लेषण:
भाग 1: "और तुम सच्चाई को झूठ के साथ न मिलाओ..."
- अर्थ (तात्पर्य): यहाँ 'हक़' (सच्चाई) से मतलब तौरात जैसी ईश्वरीय किताबों की मूल शिक्षाएँ हैं, जबकि 'बातिल' (झूठ) से मतलब मनगढ़ंत कहानियाँ, स्वार्थपूर्ण व्याख्याएँ, या मनुष्यों के बनाए हुए नियम हैं। 
- तरीका: यह मिलावट कई तरह से की जाती थी: - तौरात की आयतों के साथ रब्बियों (धार्मिक विद्वानों) की गलत व्याख्याएँ मिला देना। 
- स्पष्ट ईश्वरीय आदेशों को मानवीय परंपराओं और रिवाजों में इस तरह घोल देना कि असली हुक्म ही लुप्त हो जाए। 
- धर्म का ऐसा रूप पेश करना जो सत्ता या स्वार्थ के अनुकूल हो। 
 
भाग 2: "...और न ही जान-बूझकर सच्चाई को छिपाओ।"
- अर्थ (तात्पर्य): यह पहले अपराध से भी आगे की बात है। इसमें सच्चाई को मिलाना भी नहीं, बल्कि पूरी तरह से दबा देना या छिपा देना शामिल है। 
- ऐतिहासिक उदाहरण: यहूदी विद्वान तौरात में पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के आगमन का स्पष्ट वर्णन जानते थे, जिसमें उनके जन्म स्थान (मक्का), उनके लक्षण आदि का विवरण था। लेकिन अपनी धार्मिक नेता की हैसियत और सामाजिक प्रभुत्व बनाए रखने के लिए उन्होंने इस सच्चाई को आम लोगों से छिपा लिया। 
भाग 3: "...जबकि तुम (यह सब) जानते हो।"
- आरोप की गंभीरता: यह वाक्यांश पूरी आयत की गंभीरता को कई गुना बढ़ा देता है। अल्लाह स्पष्ट रूप से कह रहा है कि तुम्हारा यह कर्म अनजाने में नहीं, बल्कि पूरी जानकारी और इरादे के साथ किया जा रहा है। यह एक सोचा-समझा पाप है, एक भूल नहीं। इससे उनकी जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। 
4. सबक (Lessons)
- धार्मिक मामलों में मिलावट गंभीर पाप है: धर्म में किसी भी प्रकार की मिलावट (जैसे शिर्क, बिदअत) सीधे तौर पर 'हक़ को बातिल के साथ मिलाने' की श्रेणी में आती है। 
- ज्ञानी का कर्तव्य: ज्ञान को छिपाना, विशेष रूप से मार्गदर्शन का ज्ञान, एक भारी पाप है। ज्ञान का उद्देश्य उसे फैलाना और लोगों तक सच्चाई पहुँचाना है। 
- ईमानदारी की कसौटी: एक सच्चा मोमिन वह है जो अपने निजी स्वार्थ और लाभ से ऊपर उठकर सच्चाई का साथ देता है, चाहे उसे कितनी भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े। 
- जिम्मेदारी का बोध: यह आयत हर उस व्यक्ति के लिए एक चेतावनी है जो किसी भी प्रकार का ज्ञान रखता है (चाहे धार्मिक हो या दुनियावी) कि उसे उस ज्ञान का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। 
5. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevancy: Past, Present & Future)
अतीत (Past) में प्रासंगिकता:
- यह आयत सीधे तौर पर 7वीं सदी के उन यहूदी और ईसाई विद्वानों पर लागू होती थी, जिन्होंने अपनी पवित्र किताबों में पैगंबर मुहम्मद (सल्ल.) के आने की भविष्यवाणी को छिपाया या उसकी गलत व्याख्या की। 
- यह हर उस समुदाय पर लागू होती है जिसने ईश्वरीय धर्मों में मनुष्यों के बनाए नियमों और रिवाजों की मिलावट कर दी। 
वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता:
यह आयत आज के संदर्भ में अत्यंत प्रासंगिक है, विशेष रूप से निम्नलिखित क्षेत्रों में:
- धार्मिक क्षेत्र: - मिलावट: इस्लाम के नाम पर विभिन्न संप्रदायों द्वारा नए-नए फतवे और प्रथाएं गढ़ना, जिनका कुरआन और सच्ची सुन्नत में कोई आधार नहीं है, 'हक़ को बातिल के साथ मिलाने' का एक आधुनिक रूप है। 
- सच्चाई छिपाना: इस्लाम की सुंदर और उदार शिक्षाओं (जैसे महिलाओं के अधिकार, जिहाद का सही अर्थ, दूसरों के साथ दया का व्यवहार) को छिपाना या उनकी गलत व्याख्या करना। 
 
- सामाजिक और मीडिया क्षेत्र: - नकली खबरें: सोशल मीडिया पर सच्ची खबरों के साथ झूठी खबरों को मिलाकर पेश करना यहाँ बताई गई "लब्स" (मिलावट) की सटीक परिभाषा है। 
- प्रोपेगेंडा: सत्ता द्वारा जनता को गुमराह करने के लिए तथ्यों को छिपाना या तोड़-मरोड़ कर पेश करना। 
 
- व्यक्तिगत जीवन: - पेशेवर बेईमानी: व्यापार में झूठ और धोखाधड़ी का सहारा लेना। 
- रिश्तों में धोखा: सच्चाई को छिपाकर रिश्ते बनाना। 
 
भविष्य (Future) में प्रासंगिकता:
- जैसे-जैसे तकनीक विकसित होगी, सच और झूठ को मिलाने और सच्चाई को छिपाने के तरीके और भी परिष्कृत होते जाएँगे (जैसे Deepfake, AI)। यह आयत भविष्य की पीढ़ियों को यह मापदंड देगी कि किसी भी जानकारी को कैसे परखना है। 
- यह आयत हमेशा मानवता को याद दिलाती रहेगी कि नैतिक सिद्धांत—सच्चाई को शुद्ध रखना, उसे न छिपाना और अपने ज्ञान के प्रति ईमानदार रहना—कभी नहीं बदलेंगे। यह कयामत तक आने वाले हर इंसान के लिए एक स्थायी मार्गदर्शक सिद्धांत है।