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कुरआन की आयत 2:47 (सूरह अल-बक़ारह) का पूर्ण विस्तृत विवरण

 

1. पूरी आयत अरबी में:

يَا بَنِي إِسْرَائِيلَ اذْكُرُوا نِعْمَتِيَ الَّتِي أَنْعَمْتُ عَلَيْكُمْ وَأَنِّي فَضَّلْتُكُمْ عَلَى الْعَالَمِينَ


2. अरबी शब्दों के अर्थ (Word-to-Word Meaning):

  • يَا بَنِي إِسْرَائِيلَ: हे बनी इस्राईल (इस्राईल की सन्तान)

  • اذْكُرُوا: याद करो / स्मरण करो

  • نِعْمَتِيَ: मेरी नेमत (अनुग्रह/कृपा) को

  • الَّتِي: जिसे

  • أَنْعَمْتُ: मैंने अनुग्रह किया / प्रदान की

  • عَلَيْكُمْ: तुम पर

  • وَأَنِّي: और यह कि मैंने

  • فَضَّلْتُكُمْ: तुम्हें फज़ीलत दी / श्रेष्ठ बनाया

  • عَلَى: पर

  • الْعَالَمِينَ: सारे संसार वालों (अपने समय की दुनिया) पर


3. पूर्ण विवरण (Full Explanation)

संदर्भ (Context):

यह आयत बनी इस्राईल (यहूदियों) को संबोधित करने वाली आयतों की एक लंबी श्रृंखला की शुरुआत करती है। पिछली आयतों में मानव जाति के लिए सार्वभौमिक सबक दिए गए थे (जैसे सब्र, नमाज़, आखिरत पर विश्वास)। अब अल्लाह सीधे तौर पर बनी इस्राईल को संबोधित करते हुए उन्हें उनके इतिहास की याद दिला रहा है। यह एक प्रकार का मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण है - उनकी गलतियों पर उंगली उठाने से पहले, उन पर किए गए अपने एहसानों को याद दिलाना।

आयत के भागों का विश्लेषण:

भाग 1: "हे बनी इस्राईल! मेरी उस नेमत को याद करो जो मैंने तुम पर की..."

  • संबोधन की गंभीरता: "या बनी इस्राईल" (हे इस्राईल की सन्तान) संबोधन बहुत ही आत्मीय और गंभीर है। यह उनके पूरे इतिहास और पहचान को संबोधित करता है।

  • "नियमत" (अनुग्रह) का अर्थ: यहाँ "नियमत" बहुवचन में है, जिसका अर्थ है अनेकों नेमतें, अनगिनत अनुग्रह। अल्लाह उनसे कह रहा है कि तुम पर किए गए मेरे असंख्य एहसानों को याद करो।

भाग 2: "...और यह कि मैंने तुम्हें सारे संसार वालों पर श्रेष्ठ बनाया।"

  • "फज़ीलत" (श्रेष्ठता) का अर्थ: यहाँ यह समझना जरूरी है कि यह श्रेष्ठता जन्मजात या नस्लीय नहीं थी। यह एक "शर्त के साथ दी गई श्रेष्ठता" थी। इसके पीछे दो मुख्य कारण थे:

    1. दैवीय मार्गदर्शन: उस समय दुनिया में उन्हीं के पास अल्लाह की सच्ची किताब (तौरात) और स्पष्ट मार्गदर्शन था।

    2. दायित्व: उन्हें यह श्रेष्ठता एक मिशन के लिए दी गई थी - सत्य को बनाए रखना और दुनिया के लिए एक आदर्श समुदाय बनना।

  • "अल-आलमीन" (संसार वालों) का दायरा: इसका अर्थ उस जमाने की अन्य समकालीन सभ्यताओं (जैसे फिरौन की सभ्यता) से है जो अज्ञानता और मूर्तिपूजा में डूबी हुई थीं। बनी इस्राईल उस समय ज्ञान और एकेश्वरवाद का केंद्र थे।


उन नेमतों का विवरण (जिन्हें याद दिलाया जा रहा है):

इस आयत का पूरा भाव तब समझ आता है जब हम उन नेमतों को जानते हैं जिनका जिक्र आगे की आयतों में आता है:

  • फिरौन के अत्याचार से मुक्ति देना।

  • समुद्र को चीरकर रास्ता देना।

  • मन्न-ओ-सलवा (आकाशीय भोजन) उतारना।

  • पानी के फव्वारे चट्टान से निकालना।

  • हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) जैसे महान पैगंबर भेजना।

  • तौरात जैसी किताब देना।


4. सबक (Lessons)

  1. कृतज्ञता का महत्व: अल्लाह की नेमतों को याद रखना और उसके प्रति कृतज्ञ (शुक्रगुज़ार) रहना ईमान का एक अभिन्न अंग है। नकरमण (अकृतज्ञता) सबसे बड़े पापों में से एक है।

  2. श्रेष्ठता का आधार: अल्लाह के नजदीक किसी की श्रेष्ठता उसकी नस्ल, रंग या कबीले से नहीं, बल्कि तक्वा (ईश्वर-भय) और अल्लाह के आदेशों पर अमल से है। श्रेष्ठता स्थायी नहीं, बल्कि परिस्थितिजन्य और शर्तों के अधीन है।

  3. जिम्मेदारी का बोध: जिसे अधिक दिया जाता है, उससे अधिक अपेक्षा की जाती है। बनी इस्राईल को जो श्रेष्ठता दी गई, उसके साथ दुनिया के सामने आदर्श पेश करने की भारी जिम्मेदारी भी थी।

  4. ईश्वरीय दया का स्मरण: जब इंसान अपने ऊपर हुए एहसानों को याद करता है, तो उसके अंदर अल्लाह के प्रति प्रेम और आज्ञाकारिता की भावना पैदा होती है।


5. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevancy: Past, Present & Future)

अतीत (Past) में प्रासंगिकता:

  • यह आयत सीधे तौर पर 7वीं सदी के मदीना और खैबर के यहूदियों के लिए थी, जो अपने गौरवशाली इतिहास और दायित्वों को भूल चुके थे और सिर्फ अपनी श्रेष्ठता के गुमान में डूबे हुए थे।

  • यह उन्हें यह याद दिलाने का एक प्रयास था कि जिस अल्लाह ने तुम्हें इतनी श्रेष्ठता दी, उसी के भेजे हुए अंतिम पैगंबर पर ईमान क्यों नहीं लाते?

वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता:

यह आयत आज हर इंसान, विशेष रूप से मुसलमानों के लिए, एक गहरा संदेश रखती है:

  • मुसलमानों के लिए चेतावनी: पैगंबर मुहम्मद (सल्ल.) और कुरआन के रूप में अल्लाह ने मुसलमानों को वही श्रेष्ठता प्रदान की है जो बनी इस्राईल को दी गई थी। आज मुसलमानों की दुर्दशा इस बात का प्रमाण है कि हमने उस नेमत और जिम्मेदारी को भुला दिया है। हम केवल "सबसे अच्छी उम्मत" होने के दंभ में हैं, बिना उसकी शर्तों (अच्छे काम करने और बुराई से रोकने) को पूरा किए।

  • व्यक्तिगत जीवन: हर इंसान पर अल्लाह की अनगिनत नेमतें हैं (जैसे जीवन, स्वास्थ्य, रोजी, इस्लाम की दावत)। हमारा फर्ज है कि हम उन्हें याद रखें और उनके अनुरूप अपने जीवन को गुजारें।

भविष्य (Future) में प्रासंगिकता:

  • यह आयत हमेशा उन समुदायों के लिए एक चेतावनी बनी रहेगी जो अपने ऊपर किए गए ईश्वरीय एहसानों को भूल जाते हैं और केवल अपनी "चुनी हुई" हैसियत पर घमंड करने लगते हैं।

  • यह मानवता को यह सिखाती रहेगी कि श्रेष्ठता एक जिम्मेदारी है, विशेषाधिकार नहीं। जो समुदाय इस सबक को भूल जाएगा, उसका पतन निश्चित है, ठीक वैसे ही जैसे बनी इस्राईल का हुआ।

  • यह आयत कयामत तक सभी लोगों को कृतज्ञता और विनम्रता का पाठ पढ़ाती रहेगी।