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कुरआन की आयत 2:48 (सूरह अल-बक़ारह) का पूर्ण विस्तृत विवरण

 

1. पूरी आयत अरबी में:

وَاتَّقُوا يَوْمًا لَّا تَجْزِي نَفْسٌ عَن نَّفْسٍ شَيْئًا وَلَا يُقْبَلُ مِنْهَا شَفَاعَةٌ وَلَا يُؤْخَذُ مِنْهَا عَدْلٌ وَلَا هُمْ يُنصَرُونَ


2. अरबी शब्दों के अर्थ (Word-to-Word Meaning):

  • وَاتَّقُوا: और डरो (बचो)

  • يَوْمًا: एक ऐसे दिन से

  • لَّا: नहीं

  • تَجْزِي: चुका सके / बदला दे सके

  • نَفْسٌ: कोई प्राणी / व्यक्ति

  • عَن: की तरफ से

  • نَّفْسٍ: किसी दूसरे प्राणी की

  • شَيْئًا: कुछ भी (बदले में)

  • وَلَا: और न ही

  • يُقْبَلُ: स्वीकार की जाएगी

  • مِنْهَا: उससे

  • شَفَاعَةٌ: सिफारिश / बिचौलियापन

  • وَلَا: और न ही

  • يُؤْخَذُ: लिया जाएगा

  • مِنْهَا: उससे

  • عَدْلٌ: कोई फिदिया / बदला / compensation

  • وَلَا: और न ही

  • هُمْ: वे लोग

  • يُنصَرُونَ: सहायता प्राप्त करेंगे


3. पूर्ण विवरण (Full Explanation)

संदर्भ (Context):

यह आयत बनी इस्राईल को संबोधित करने वाली आयतों की श्रृंखला में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। पिछली आयत (2:47) में अल्लाह ने उन पर अपने एहसान और उन्हें दी गई श्रेष्ठता याद दिलाई थी। अब इस आयत में, उन्हें एक बहुत ही गंभीर चेतावनी दी जा रही है ताकि वे अपनी जिम्मेदारी को समझें और गलतियों से बचें। यह चेतावनी कयामत के दिन की पूर्ण न्याय व्यवस्था के बारे में है।

आयत के भागों का विश्लेषण:

यह आयत कयामत के दिन की चार मूलभूत वास्तविकताओं को बताती है, जो उस दिन की पूर्ण न्यायप्रणाली को दर्शाती हैं:

1. "उस दिन से डरो जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति का कुछ भी बदला नहीं चुका सकेगा..."

  • अर्थ: कयामत के दिन पूर्ण व्यक्तिगत जिम्मेदारी होगी। कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे के गुनाहों का बोझ नहीं उठाएगा, चाहे वह कितना ही प्रिय क्यों न हो (माँ-बाप, बेटा-बेटी)। हर व्यक्ति अपने अपने कर्मों का फल स्वयं भोगेगा।

2. "...और न ही उससे कोई सिफारिश (शफाअत) स्वीकार की जाएगी..."

  • अर्थ: दुनियावी संबंध और हैसियत उस दिन काम नहीं आएगी। शुरुआती समय में किसी की सिफारिश स्वीकार नहीं की जाएगी। (यह ध्यान रखना जरूरी है कि इस्लाम में शफाअत का सिद्धांत है, लेकिन वह अल्लाह की इजाजत से और सिर्फ उन्हीं लोगों के लिए होगी जिनके दिल में जरा सा भी ईमान होगा। यह आयत उन लोगों के बारे में है जो पूरी तरह से अविश्वास और पाप में डूबे होंगे या फिर वह प्रारंभिक घड़ी है जब कोई शफाअत नहीं होगी)।

3. "...और न ही उससे कोई फिदिया (बदला/मुआवजा) लिया जाएगा..."

  • अर्थ: उस दिन दुनिया का कोई भी बदला (पैसा, संपत्ति, सोना-चाँदी) किसी काम नहीं आएगा। इंसान चाहे पूरी धरती का मालिक क्यों न हो, वह अपनी सजा से छूटने के लिए एक पल की देरी तक का बदला नहीं दे सकेगा।

4. "...और न ही उनकी कोई सहायता की जाएगी।"

  • अर्थ: वह दिन पूरी तरह से इंसानी सामर्थ्य और शक्ति से परे होगा। कोई दोस्त, कोई समर्थक, कोई सेना किसी की मदद नहीं कर पाएगी। इंसान पूरी तरह अकेला और असहाय होगा।


4. सबक (Lessons)

  1. व्यक्तिगत जिम्मेदारी: यह आयत हर इंसान के मन में यह बात बैठा देती है कि उसे अपने हर कर्म, हर विचार और हर इरादे का जवाब देना है। दोषारोपण या दूसरों पर दोष मढ़ने का कोई अवसर नहीं होगा।

  2. दुनियावी भरोसों की निरर्थकता: यह आयत दुनिया की सभी झूठी सुरक्षाओं और भरोसों (धन, रिश्ते, हैसियत, सिफारिश) को समाप्त कर देती है। असली सुरक्षा तो केवल अल्लाह की दया और उसके प्रति सच्चे ईमान व अमल में है।

  3. आखिरत की तैयारी: यह जीवन, आखिरत की तैयारी का मौका है। इस चेतावनी को सुनकर एक बुद्धिमान इंसान अपने जीवन को सही दिशा में मोड़ लेता है।

  4. न्याय पर पूर्ण विश्वास: यह आयत अल्लाह के न्याय की पूर्णता को दर्शाती है, जहाँ कोई रिश्वतखोरी नहीं, कोई भेदभाव नहीं, और कोई चूक नहीं होगी।


5. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevancy: Past, Present & Future)

अतीत (Past) में प्रासंगिकता:

  • यह आयत बनी इस्राईल के उन विश्वासों को चुनौती दे रही थी जिनमें वे सोचते थे कि केवल इस्राईली होने के नाते या उनके पूर्वजों (पैगंबरों) की सिफारिश से उन्हें बचा लिया जाएगा, भले ही उन्होंने गुनाह किए हों।

  • यह मक्का के मुशरिकीन (मूर्तिपूजकों) के लिए भी एक चेतावनी थी जो अपने बुतों से सिफारिश की उम्मीद रखते थे।

वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता:

आज का मनुष्य भी नैतिक रूप से लापरवाह हो गया है और विभिन्न झूठे भरोसों में जी रहा है। यह आयत आज भी उतनी ही प्रासंगिक है:

  • भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी: जो लोग सोचते हैं कि दुनिया में पैसे और ताकत से सब कुछ चल जाता है, उन्हें यह आयत याद दिलाती है कि एक दिन ऐसा आएगा जहाँ यह सब बेकार होगा।

  • सिफारिश का गलत अर्थ: कई लोग सोचते हैं कि कोई बड़ा पीर-फकीर या धार्मिक नेता उन्हें अल्लाह के अज़ाब से बचा लेगा, भले ही उन्होंने गुनाह किए हों। यह आयत उस गलतफहमी को दूर करती है।

  • जिम्मेदारी से पलायन: आज इंसान हर गलती का दोष दूसरों पर मढ़ता है - समाज पर, सरकार पर, हालात पर। यह आयत उसे याद दिलाती है कि अंततः वह स्वयं जिम्मेदार है।

भविष्य (Future) में प्रासंगिकता:

  • जब तक इंसानी समाज रहेगा, न्याय की तलाश और नैतिक जिम्मेदारी का प्रश्न बना रहेगा। यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी को यह आश्वासन देती रहेगी कि एक पूर्ण न्याय का दिन अवश्य आएगा।

  • यह आयत हमेशा मानवता को यह सिखाती रहेगी कि असली सफलता उस दिन के लिए तैयारी करने में है, जब न कोई सिफारिश काम आएगी, न कोई बदला और न कोई मदद। यह चेतावनी कभी पुरानी नहीं होगी।