Read Quran translation in Hindi with verse-by-verse meaning and time-relevant explanations for deeper understanding.

कुरआन की आयत 2:49 (सूरह अल-बक़ारह) का पूर्ण विस्तृत विवरण

 

1. पूरी आयत अरबी में:

وَإِذْ نَجَّيْنَاكُم مِّنْ آلِ فِرْعَوْنَ يَسُومُونَكُمْ سُوءَ الْعَذَابِ يُذَبِّحُونَ أَبْنَاءَكُمْ وَيَسْتَحْيُونَ نِسَاءَكُمْ ۚ وَفِي ذَٰلِكُم بَلَاءٌ مِّن رَّبِّكُمْ عَظِيمٌ


2. अरबी शब्दों के अर्थ (Word-to-Word Meaning):

  • وَإِذْ: और (वह समय) याद करो जब

  • نَجَّيْنَاكُم: हमने तुम्हें बचाया

  • مِّنْ: से

  • آلِ फِرْعَوْنَ: फिरौन वालों से

  • يَسُومُونَكُمْ: वे तुम्हें चखाते थे / देते थे

  • سُوءَ: बुरा

  • الْعَذَابِ: यातना / अज़ाब

  • يُذَبِّحُونَ: वे ज़बह करते थे (गला काट देते थे)

  • أَبْنَاءَكُمْ: तुम्हारे बेटों को

  • وَيَسْتَحْيُونَ: और जीवित रखते थे

  • نِسَاءَكُمْ: तुम्हारी औरतों (बेटियों) को

  • وَفِي: और उसमें है

  • ذَٰلِكُم: उस (घटना) में

  • بَلَاءٌ: एक बड़ी परीक्षा / एहसान

  • مِّن رَّبِّكُمْ: तुम्हारे पालनहार की ओर से

  • عَظِيمٌ: बहुत बड़ा


3. पूर्ण विवरण (Full Explanation)

संदर्भ (Context):

यह आयत बनी इस्राईल पर अल्लाह के एहसानों की गाथा को विस्तार से बताना शुरू करती है। पिछली आयत (2:47) में अल्लाह ने उन्हें अपने कुल एहसान याद दिलाने को कहा था। अब इस आयत में सबसे पहला और बुनियादी एहसान याद दिलाया जा रहा है - फिरौन के अत्याचारों से मुक्ति। यह एक ऐतिहासिक घटना का जिक्र है जो बनी इस्राईल की सामूहिक स्मृति और धार्मिक पहचान का केंद्र बिंदु है।

आयत के भागों का विश्लेषण:

भाग 1: "और (वह समय) याद करो जब हमने तुम्हें फिरौन वालों से बचाया..."

  • "नज्जैनाकुम" (हमने तुम्हें बचाया): यह शब्द जोर देकर कहता है कि यह मुक्ति अल्लाह की ओर से थी। बनी इस्राईल की अपनी कोई ताकत नहीं थी जो उन्हें फिरौन जैसे शक्तिशाली शासक से बचा सकती।

  • "आले फिरऔन": इससे मतलब सिर्फ फिरौन व्यक्ति से नहीं, बल्कि उसका पूरा शासन तंत्र, उसकी सेना और उसके अनुयायियों से है।

भाग 2: "...वे तुम्हें बुरी यातना देते थे, तुम्हारे बेटों को ज़बह कर देते थे और तुम्हारी औरतों (बेटियों) को जीवित रखते थे।"

  • फिरौन के अत्याचारों का विवरण:

    • "सूअल अज़ाब" (बुरी यातना): इसमें गुलामी, जबरदस्ती मजदूरी, अपमान और शारीरिक प्रताड़ना शामिल थी।

    • "युज़ब्बिहूना अबना-अकुम" (तुम्हारे बेटों को ज़बह करना): यह सबसे क्रूर अत्याचार था। फिरौन को एक भविष्यवाणी के बारे में पता था कि बनी इस्राईल में एक लड़का पैदा होगा जो उसके राज्य का अंत कर देगा। इस डर से उसने नवजात लड़कों को मारने का आदेश दे दिया था। यह एक प्रकार का "नरसंहार" (Genocide) था।

    • "वा यस्तह्यूना निसा-अकुम" (औरतों को जीवित रखना): औरतों को जीवित रखने के पीछे फिरौन का स्वार्थ और हेय दृष्टिकोण था। वह उन्हें दासी बनाकर रखना चाहता था और उनके माध्यम से बनी इस्राईल की संख्या और दासों की संख्या बढ़ाना चाहता था।

भाग 3: "...और तुम्हारे पालनहार की ओर से उसमें एक बहुत बड़ी परीक्षा (और एहसान) था।"

  • "बलाउन" का दोहरा अर्थ: अरबी शब्द "बलाअ" के दो मुख्य अर्थ हैं:

    1. परीक्षा (Test): फिरौन के अत्याचार एक कठिन परीक्षा थे। अल्लाह यह देख रहा था कि बनी इस्राईल कैसे व्यवहार करते हैं, वे धैर्य रखते हैं या नहीं।

    2. एहसान (Favour/Blessing): इसी कठिन परीक्षा के बाद अल्लाह ने उन्हें जो अभूतपूर्व मुक्ति दी, वह स्वयं एक बहुत बड़ा एहसान था। उन्हें समुद्र में रास्ता देना और फिरौन को डुबोना एक अद्भुत नेमत थी।


4. सबक (Lessons)

  1. अल्लाह की मदद निकट है: सबसे बुरी और निराशाजनक स्थिति में भी अल्लाह की मदद आ सकती है। फिरौन जैसा शक्तिशाली तानाशाह भी अल्लाह की इच्छा के आगे टिक नहीं सका।

  2. परीक्षा का दर्शन: दुनिया का जीवन परीक्षाओं से भरा है। दुख और कठिनाइयाँ अल्लाह की ओर से एक परीक्षा हैं ताकि वह देखे कि उसके बंदे कैसा व्यवहार करते हैं।

  3. कृतज्ञता का फर्ज: अल्लाह के एहसानों को याद रखना और उसके प्रति शुक्रगुजार रहना एक मोमिन का गुण है। जो नेमतें भुला दी जाती हैं, वह छिन भी सकती हैं।

  4. अत्याचार का अंत: हर अत्याचारी का अंत निश्चित है, चाहे वह कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो।


5. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevancy: Past, Present & Future)

अतीत (Past) में प्रासंगिकता:

  • यह आयत बनी इस्राईल को उनकी जड़ों से जोड़ रही थी। यह उन्हें याद दिला रही थी कि जिस अल्लाह ने तुम्हें फिरौन जैसे दुश्मन से बचाया, उसी के भेजे हुए नए पैगंबर (मुहम्मद सल्ल.) का साथ क्यों नहीं देते?

  • यह मक्का के कमजोर मुसलमानों के लिए भी एक सांत्वना और आशा का स्रोत थी, जो कुरैश के अत्याचार झेल रहे थे।

वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता:

आज दुनिया के विभिन्न हिस्सों में लोग इसी तरह के अत्याचार झेल रहे हैं:

  • नस्लीय और धार्मिक उत्पीड़न: दुनिया में कई समुदाय ऐसे हैं जिन पर जुल्म ढाए जा रहे हैं, उनकी हत्याएं की जा रही हैं और उन्हें बेदखल किया जा रहा है। यह आयत उन्हें धैर्य और अल्लाह पर भरोसा रखने की प्रेरणा देती है।

  • मुसलमानों के लिए सबक: पैलेस्टीन, कश्मीर, म्यांमार (रोहिंग्या) आदि में मुसलमानों पर जो अत्याचार हो रहे हैं, वह फिरौन के अत्याचारों की याद दिलाते हैं। यह आयत उन्हें एकता, धैर्य और दुआ पर अमल करने का संदेश देती है।

  • व्यक्तिगत संघर्ष: हर इंसान अपने जीवन में किसी न किसी प्रकार की "फिरौन" जैसी समस्या (बीमारी, वित्तीय संकट, मानसिक उत्पीड़न) से घिरा होता है। यह आयत उसे सिखाती है कि हिम्मत न हारे और अल्लाह से मदद की उम्मीद रखे।

भविष्य (Future) में प्रासंगिकता:

  • जब तक दुनिया रहेगी, अत्याचार और उत्पीड़न के चक्र चलते रहेंगे। यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी को यह आश्वासन देती रहेगी कि अत्याचारी का अंत और पीड़ितों की मुक्ति अल्लाह के इरादे में है।

  • यह आयत हमेशा मानवता को यह सिखाती रहेगी कि निराशा कुफ्र है और अल्लाह पर भरोसा (तवक्कुल) ही वह हथियार है जो हर तानाशाही को ध्वस्त कर सकता है। यह एक स्थायी आशा और संघर्ष का संदेश है।