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कुरआन की आयत 2:51 (सूरह अल-बक़ारह) का पूर्ण विस्तृत विवरण

 

1. पूरी आयत अरबी में:

وَإِذْ وَاعَدْنَا مُوسَىٰ أَرْبَعِينَ لَيْلَةً ثُمَّ اتَّخَذْتُمُ الْعِجْلَ مِن بَعْدِهِ وَأَنتُمْ ظَالِمُونَ


2. अरबी शब्दों के अर्थ (Word-to-Word Meaning):

  • وَإِذْ: और (वह समय) याद करो जब

  • وَاعَدْنَا: हमने वादा किया / नियुक्त किया

  • مُوسَىٰ: मूसा (अलैहिस्सलाम) से

  • أَرْبَعِينَ: चालीस

  • لَيْلَةً: रातें

  • ثُمَّ: फिर / इसके बाद

  • اتَّخَذْتُمُ: तुमने बना लिया / अपना लिया

  • الْعِجْلَ: बछड़े (की मूर्ति) को

  • مِن بَعْدِهِ: उन (मूसा) के बाद

  • وَأَنتُمْ: और तुम

  • ظَالِمُونَ: ज़ालिम (अन्यायी, गुनहगार) थे


3. पूर्ण विवरण (Full Explanation)

संदर्भ (Context):

यह आयत बनी इस्राईल के इतिहास में एक और काले अध्याय की ओर इशारा करती है। पिछली आयतों में अल्लाह ने उन पर किए गए दो बड़े एहसानों (फिरौन से मुक्ति और समुद्र को चीरना) का जिक्र किया था। अब अल्लाह उस घटना का वर्णन कर रहा है जब उन्होंने मूसा (अलैहिस्सलाम) के रहते ही शिर्क (अल्लाह के साथ साझीदार ठहराना) का भयंकर गुनाह किया। यह उनकी अकृतज्ञता और आस्था की कमजोरी को दर्शाता है।

आयत के भागों का विश्लेषण:

भाग 1: "और (वह समय) याद करो जब हमने मूसा से चालीस रातों का वादा किया..."

  • तौरेत के उतरने का समय: यह वह घटना है जब हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) को तौरेत (Torah) प्राप्त करने के लिए कोह-ए-तूर (Mount Tur) पर बुलाया गया। यह 40 दिनों का एक आध्यात्मिक सफर था जहाँ अल्लाह ने सीधे मूसा से बातचीत की।

  • आध्यात्मिक प्रशिक्षण: यह अवधि मूसा (अलैहिस्सलाम) के लिए एक विशेष प्रशिक्षण और तैयारी का समय था।

भाग 2: "...फिर उन (मूसा) के जाने के बाद तुमने बछड़े (की मूर्ति) को (पूज्य) बना लिया..."

  • समय की संवेदनशीलता: मूसा (अलैहिस्सलाम) का महज 40 दिनों का गायब होना ही बनी इस्राईल के लिए एक बड़ी परीक्षा बन गया।

  • "अत्तखज़तुम" (तुमने बना लिया): इस शब्द में एक तीखी फटकार है। इसका मतलब सिर्फ एक मूर्ति बनाना नहीं, बल्कि उसे अपना पूज्य (माबूद) बना लेना, उसे दिल से स्वीकार कर लेना है।

  • "अल-इज्ल" (बछड़ा): यह एक सामिरी (Samaritan) नामक व्यक्ति द्वारा बनाया गया सोने का बछड़ा था, जो आवाज़ करता था। बनी इस्राईल ने उसे अपना इलाह (पूज्य) मान लिया और उसकी पूजा शुरू कर दी।

भाग 3: "...और तुम (स्पष्ट) ज़ालिम (अन्यायी) थे।"

  • सीधा आरोप: अल्लाह स्पष्ट शब्दों में उनके कर्म को "ज़ुल्म" (अत्याचार) बता रहा है।

  • ज़ुल्म का अर्थ: इस्लाम में सबसे बड़ा ज़ुल्म शिर्क (अल्लाह के साथ साझीदार ठहराना) है। उन्होंने वही काम किया जिससे मुक्ति के लिए फिरौन को दंडित किया गया था। उन्होंने अल्लाह के सबसे बड़े एहसानों को भुलाकर, उसी के साथ शिर्क किया, जो सबसे बड़ा अत्याचार है।


4. सबक (Lessons)

  1. आस्था की नाजुकता: इंसान का ईमान बहुत नाजुक होता है। महज 40 दिनों में एक ऐसा समुदाय जिसने अल्लाह के सबसे बड़े चमत्कार देखे थे, वह मूर्तिपूजा में लिप्त हो गया। इससे सीख मिलती है कि ईमान की सुरक्षा के लिए लगातार जद्दोजहद और सतर्कता जरूरी है।

  2. नेतृत्व का महत्व: एक धार्मिक नेता (मूसा अलैहिस्सलाम) की अनुपस्थिति में समुदाय कितनी जल्दी गुमराह हो सकता है। इसलिए ऐसे नेतृत्व की जरूरत है जो अल्लाह की किताब और सुन्नत से जुड़ा हो।

  3. शिर्क का खतरा: शिर्क सिर्फ पत्थर की मूर्तियाँ पूजने का नाम नहीं है। यह किसी भी चीज को अल्लाह के बराबर या उससे ऊपर रखना है (जैसे पैसे, शौहरत, नेता की पूजा आदि)। यह सबसे बड़ा गुनाह है।

  4. अकृतज्ञता का परिणाम: अल्लाह की नेमतों को भुला देना और उसकी निशानियों के बावजूद गुनाह करना सबसे बड़ी अकृतज्ञता (कुफ्रान-ए-नियमत) है।


5. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevancy: Past, Present & Future)

अतीत (Past) में प्रासंगिकता:

  • यह आयत बनी इस्राईल को उनकी एक और बड़ी गलती याद दिला रही थी ताकि वे अपने अहंकार को छोड़कर सच्चाई को स्वीकार करें।

  • यह इस बात का प्रमाण था कि चमत्कार देखने के बाद भी इंसान का ईमान मजबूत नहीं होता अगर उसके दिल में हक (सच) स्वीकार करने की इच्छा न हो।

वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता:

यह आयत आज के मुसलमानों और इंसानों के लिए एक शक्तिशाली चेतावनी है:

  • आधुनिक "बछड़े": आज इंसान ने पैसे, शौहरत, करियर, सोशल मीडिया लाइक्स, राजनीतिक नेताओं, और दुनियावी सुखों को अपना "बछड़ा" (इलाह) बना लिया है। ये सभी आधुनिक शिर्क के रूप हैं जब इन्हें अल्लाह से ऊपर प्राथमिकता दी जाती है।

  • धार्मिक अज्ञानता: आज कई मुसलमान औलिया और पीर-फकीरों को अल्लाह का दर्जा देने लगते हैं, उनकी कब्रों पर सजदा करते हैं, और उनसे मदद माँगते हैं। यह स्पष्ट शिर्क है, ठीक वैसे ही जैसे बछड़े की पूजा।

  • नेतृत्व का संकट: आज उम्माह में सच्चे इस्लामी नेतृत्व (जो कुरआन-सुन्नत पर चले) की कमी है, जिसके कारण कई मुसलमान गुमराही का शिकार हो रहे हैं और विचारधाराओं के "बछड़ों" की पूजा कर रहे हैं।

भविष्य (Future) में प्रासंगिकता:

  • जब तक दुनिया रहेगी, इंसान की यह प्रवृत्ति रहेगी कि वह किसी न किसी चीज को पूजने लगेगा। यह आयत भविष्य की पीढ़ियों को हमेशा यह चेतावनी देती रहेगी कि अल्लाह के अलावा किसी की पूजा न करो।

  • यह आयत हमेशा यह संदेश देगी कि सच्चा ईमान अल्लाह के साथ किसी भी प्रकार की साझेदारी (शिर्क) को स्वीकार नहीं करता। यह तौहीद (एकेश्वरवाद) का शाश्वत सिद्धांत है जो कभी नहीं बदलेगा।