1. पूरी आयत अरबी में:
ثُمَّ عَفَوْنَا عَنكُم مِّن بَعْدِ ذَٰلِكَ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ
2. अरबी शब्दों के अर्थ (Word-to-Word Meaning):
ثُمَّ: फिर / इसके बाद
عَفَوْنَا: हमने क्षमा कर दिया / दोष माफ कर दिया
عَنكُم: तुमसे
مِّن بَعْدِ: बाद में
ذَٰلِكَ: उस (गुनाह के बाद)
لَعَلَّكُمْ: ताकि तुम
تَشْكُرُونَ: शुक्र अदा करो (कृतज्ञ बनो)
3. पूर्ण विवरण (Full Explanation)
संदर्भ (Context):
यह आयत पिछली आयत (2:51) में वर्णित भयंकर गुनाह (बछड़े की पूजा) का अगला चरण बताती है। पिछली आयत में बनी इस्राईल के उस जघन्य अपराध (शिर्क) का जिक्र था जो उन्होंने हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) की अनुपस्थिति में किया था। इस आयत में अल्लाह बताता है कि उसने उस गुनाह के बाद भी उन्हें क्या दिया - माफी।
आयत के भागों का विश्लेषण:
भाग 1: "फिर हमने उस (गुनाह) के बाद तुम्हें माफ कर दिया..."
"सुम्म" (फिर) का महत्व: यह शब्द दर्शाता है कि यह माफी एक क्रमिक घटना है। पहले गुनाह हुआ, फिर अल्लाह की माफी आई। यह अल्लाह की दया के विस्तार को दिखाता है।
"अफव्ना" (हमने माफ किया): यह केवल सजा को टालना नहीं है, बल्कि पूरी तरह से दोष को मिटा देना और अपने पास से हटा देना है। बनी इस्राईल ने शिर्क जैसा सबसे बड़ा गुनाह किया था, फिर भी अल्लाह ने उन्हें माफ कर दिया।
माफी की शर्त: कुरआन की अन्य आयतों से पता चलता है कि यह माफी तब मिली जब बनी इस्राईल ने अपने गुनाह पर पश्चाताप किया और हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) के मार्गदर्शन में वापस लौट आए।
भाग 2: "...ताकि तुम शुक्रगुज़ार बनो।"
माफी का उद्देश्य: अल्लाह माफी देने का अपना उद्देश्य बता रहा है। यह उद्देश्य दंड देना नहीं, बल्कि इंसान को कृतज्ञ बनाना है।
"ला'ल्ल" (ताकि/उम्मीद है कि): यह शब्द अल्लाह की दया और इच्छा को दर्शाता है। अल्लाह चाहता है कि इंसान उसकी माफी के बाद कृतज्ञ बने, लेकिन वह उसे जबरदस्ती नहीं बनाता। यह इंसान के चुनाव पर छोड़ देता है।
शुक्र (कृतज्ञता) का अर्थ: शुक्र का मतलब सिर्फ "थैंक्यू" कहना नहीं है। इसका मतलब है:
दिल से अल्लाह की कृपा को महसूस करना।
जुबान से उसकी तारीफ करना।
अपने अंगों (कार्यों) से उसकी आज्ञाकारिता में लग जाना।
4. सबक (Lessons)
अल्लाह की दया की विशालता: इंसान चाहे कितना भी बड़ा गुनाह क्यों न कर ले, अल्लाह की दया और माफी उससे कहीं बड़ी है। शिर्क जैसे गुनाह के बाद भी माफी संभव है।
तौबा (पश्चाताप) का महत्व: अल्लाह की माफी गुनाहगार के पश्चाताप और लौटने पर निर्भर करती है। जो कोई भी सच्चे दिल से तौबा करता है, अल्लाह उसे माफ कर देता है।
कृतज्ञता ही वास्तविक उद्देश्य है: अल्लाह की नेमतों और माफी का असली मकसद इंसान को एक शुक्रगुज़ार बंदा बनाना है। जो इंसान माफी के बाद भी नाशुक्रा (अकृतज्ञ) रहता है, वह सबसे बड़ा नादान है।
आशा का संदेश: यह आयत हर गुनाहगार इंसान के लिए आशा की किरण है। यह दर्शाता है कि निराश होने की कोई बात नहीं है, बशर्ते इंसान सच्चे मन से अल्लाह की शरण में आ जाए।
5. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevancy: Past, Present & Future)
अतीत (Past) में प्रासंगिकता:
यह आयत बनी इस्राईल को यह याद दिला रही थी कि जिस अल्लाह ने तुम्हें शिर्क जैसे गुनाह के बाद भी माफ किया, उसी के भेजे हुए अंतिम पैगंबर पर ईमान क्यों नहीं लाते?
यह दर्शाता था कि अल्लाह का दरवाज़ा तौबा के लिए हमेशा खुला है।
वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता:
आज के समय में यह आयत बेहद प्रासंगिक और सांत्वनादायक है:
गुनाहों से निराशा: बहुत से लोग इतने गुनाह कर बैठते हैं कि उन्हें लगने लगता है कि अब उनकी माफी संभव नहीं है। यह आयत उन्हें आशा देती है कि अल्लाह ने शिर्क जैसे गुनाह को माफ किया है, तो तुम्हारे गुनाह भी माफ हो सकते हैं।
माफी और कृतज्ञता का चक्र: आज का मुसलमान अक्सर गुनाह करता है और निराश हो जाता है। इस आयत का सबक है कि गुनाह के बाद तौबा करो, अल्लाह की माफी पर यकीन रखो और फिर शुक्रगुज़ार बनकर जियो।
समाज में सहनशीलता: यह आयत हमें सिखाती है कि जिस अल्लाह की इतनी विशाल माफी है, उसके बंदों को भी एक-दूसरे की गलतियों को माफ करना सीखना चाहिए।
भविष्य (Future) में प्रासंगिकता:
जब तक इंसान रहेगा, वह गुनाह करता रहेगा। यह आयत कयामत तक आने वाले हर गुनाहगार इंसान के लिए आशा और मार्गदर्शन का स्रोत बनी रहेगी।
यह आयत हमेशा यह संदेश देती रहेगी कि अल्लाह की दया उसके गुस्से पर भारी है और तौबा का दरवाज़ा मौत से पहले तक खुला है।
यह इंसान को हमेशा यह याद दिलाती रहेगी कि गुनाह से घबराकर भागो मत, बल्कि अल्लाह की शरण में आकर उसकी असीम माफी और कृपा के पात्र बनो। यह इस्लाम के सबसे सुंदर और मानवीय पहलुओं में से एक है।