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कुरआन की आयत 2:53 (सूरह अल-बक़ारह) का पूर्ण विस्तृत विवरण

 

1. पूरी आयत अरबी में:

وَإِذْ آتَيْنَا مُوسَى الْكِتَابَ وَالْفُرْقَانَ لَعَلَّكُمْ تَهْتَدُونَ


2. अरबी शब्दों के अर्थ (Word-to-Word Meaning):

  • وَإِذْ: और (वह समय) याद करो जब

  • آتَيْنَا: हमने दिया

  • مُوسَى: मूसा (अलैहिस्सलाम) को

  • الْكِتَابَ: किताब (तौरात)

  • وَالْفُرْقَانَ: और फुरकान (सच और झूठ में अंतर करने वाला)

  • لَعَلَّكُمْ: ताकि तुम

  • تَهْتَدُونَ: हिदायत पाओ / सीधे मार्ग पर आ जाओ


3. पूर्ण विवरण (Full Explanation)

संदर्भ (Context):

यह आयत बनी इस्राईल पर अल्लाह के एहसानों की सूची जारी रखती है। पिछली आयतों में फिरौन से मुक्ति, समुद्र का चीर्ण होना और बछड़े की पूजा के बाद माफी का जिक्र हुआ था। अब अल्लाह एक और सबसे बड़े एहसान की ओर इशारा कर रहा है - हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) को किताब (तौरात) और फुरकान देकर मार्गदर्शन प्रदान करना। यह आयत बताती है कि माफी के बाद अल्लाह ने उन्हें फिर से मार्गदर्शन दिया।

आयत के भागों का विश्लेषण:

भाग 1: "और (वह समय) याद करो जब हमने मूसा को किताब और फुरकान दिया..."

  • "अल-किताब" (किताब): इससे मतलब तौरात (Torah) से है, जो एक संपूर्ण दैवीय ग्रंथ है जिसमें आस्था, नियम, कानून और जीवन जीने का तरीका बताया गया है।

  • "अल-फुरकान" (फुरकान): यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण शब्द है। इसके तीन मुख्य अर्थ हैं:

    1. सत्य और असत्य के बीच अंतर करने वाला: तौरात हक (सच) और बातिल (झूठ), हलाल और हराम, पाप और पुण्य के बीच स्पष्ट अंतर करती है।

    2. मुक्ति का साधन: फुरकान का एक अर्थ "मुक्ति" भी है। जिस तरह अल्लाह ने बनी इस्राईल को फिरौन से मुक्ति दिलाकर एक फुरकान (मुक्ति) प्रदान किया, उसी तरह तौरात का ज्ञान उन्हें अज्ञानता और गुमराही से मुक्ति दिलाने वाला था।

    3. चमत्कार: कुछ टीकाकारों के अनुसार, फुरकान से तात्पर्य वे चमत्कार भी हैं जो हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) को दिए गए थे, जो सच्चाई को झूठ से अलग करते थे।

भाग 2: "...ताकि तुम हिदायत पाओ (सीधे मार्ग पर आ जाओ)।"

  • मार्गदर्शन का उद्देश्य: अल्लाह स्पष्ट करता है कि किताब और फुरकान देने का उद्देश्य केवल किताबी ज्ञान देना नहीं था। इसका वास्तविक उद्देश्य था "हिदायत" - सीधे रास्ते की ओर मार्गदर्शन।

  • "ला'ल्ल" (ताकि): यह शब्द फिर से अल्लाह की दया और इच्छा को दर्शाता है। अल्लाह चाहता है कि इंसान हिदायत पाए, लेकिन वह उसे जबरदस्ती सही रास्ते पर नहीं डालता। इंसान की इच्छा और प्रयास भी जरूरी है।


4. सबक (Lessons)

  1. मार्गदर्शन का स्रोत: अल्लाह की ओर से उतरी हुई किताबें ही सच्चे मार्गदर्शन का स्रोत हैं। इंसानी विचारधाराएँ और दर्शन पूर्ण हिदायत नहीं दे सकते।

  2. जीवन में मानदंड की आवश्यकता: इंसान के पास जीवन के हर पहलू (नैतिकता, अर्थव्यवस्था, समाज) के लिए एक "फुरकान" (मानदंड) होना चाहिए जो सही और गलत में अंतर कर सके। यह मानदंड केवल दैवीय किताब ही प्रदान कर सकती है।

  3. अकृतज्ञता से बचो: बनी इस्राईल को इतना बड़ा एहसान (तौरात) मिलने के बाद भी वे गुमराह हुए। इससे सीख मिलती है कि केवल किताब होना ही काफी नहीं है, उस पर अमल करना और उसके प्रति कृतज्ञ रहना भी जरूरी है।

  4. माफी के बाद नया अवसर: अल्लाह ने बनी इस्राईल को बछड़े की पूजा के गुनाह के बाद न सिर्फ माफ किया, बल्कि उन्हें फिर से मार्गदर्शन (तौरात) दिया। यह दर्शाता है कि तौबा करने वाले को अल्लाह नया मौका देता है।


5. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevancy: Past, Present & Future)

अतीत (Past) में प्रासंगिकता:

  • यह आयत बनी इस्राईल को याद दिला रही थी कि जिस अल्लाह ने तुम्हें तौरात जैसी किताब दी, उसी ने मुहम्मद (सल्ल.) पर कुरआन उतारा है। इसलिए उस पर ईमान लाओ।

  • यह स्पष्ट करती थी कि तौरात का असली उद्देश्य लोगों को हिदायत देना था, न कि सिर्फ एक पवित्र वस्तु बनकर रह जाना।

वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता:

आज के संदर्भ में यह आयत बहुत महत्वपूर्ण है:

  • मुसलमानों और कुरआन: मुसलमानों के पास कुरआन के रूप में "अल-किताब" और "अल-फुरकान" मौजूद है। कुरआन स्पष्ट रूप से हक और बातिल, हलाल और हराम में फर्क करता है। सवाल यह है कि क्या हम वास्तव में इसे अपने जीवन का मार्गदर्शक बनाते हैं?

  • आधुनिक भ्रम का समाधान: आज का इंसान सच्चाई और झूठ, नैतिक और अनैतिक के बीच भ्रमित है। LGBTQ, Gender समस्याएं, ब्याज, अश्लीलता जैसे मुद्दों पर दुनिया के अपने मानदंड हैं। इस आयत का संदेश है कि असली "फुरकान" केवल अल्लाह की किताब है।

  • कृतज्ञता का अभाव: बनी इस्राईल की तरह आज का मुसलमान भी कुरआन जैसे एहसान को भुला चुका है। उसने कुरआन को तो महत्व दिया, लेकिन उसके मार्गदर्शन को अपने जीवन से अलग कर दिया।

भविष्य (Future) में प्रासंगिकता:

  • जब तक दुनिया रहेगी, इंसान को मार्गदर्शन और सही-गलत के मानदंड (फुरकान) की जरूरत रहेगी। यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी को यह याद दिलाती रहेगी कि असली मार्गदर्शन केवल अल्लाह की किताब में है।

  • यह आयत हमेशा यह संदेश देगी कि अल्लाह चाहता है कि उसके बंदे हिदायत पाएं, और इसीलिए उसने किताबें उतारी हैं। यह एक स्थायी और सार्वभौमिक सत्य है।