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कुरआन की आयत 2:54 (सूरह अल-बक़ारह) का पूर्ण विस्तृत विवरण

 

1. पूरी आयत अरबी में:

وَإِذْ قَالَ مُوسَىٰ لِقَوْمِهِ يَا قَوْمِ إِنَّكُمْ ظَلَمْتُمْ أَنفُسَكُم بِاتِّخَاذِكُمُ الْعِجْلَ فَتُوبُوا إِلَىٰ بَارِئِكُمْ فَاقْتُلُوا أَنفُسَكُمْ ذَٰلِكُمْ خَيْرٌ لَّكُمْ عِندَ بَارِئِكُمْ فَتَابَ عَلَيْكُمْ ۚ إِنَّهُ هُوَ التَّوَّابُ الرَّحِيمُ


2. अरबी शब्दों के अर्थ (Word-to-Word Meaning):

  • وَإِذْ: और (वह समय) याद करो जब

  • قَالَ: कहा

  • مُوسَىٰ: मूसा (अलैहिस्सलाम) ने

  • لِقَوْمِهِ: अपनी कौम से

  • يَا قَوْمِ: हे मेरी कौम

  • إِنَّكُمْ: निश्चय ही तुमने

  • ظَلَمْتُمْ: ज़ुल्म किया

  • أَنفُسَكُم: अपने आप पर

  • بِاتِّخَاذِكُمُ: बना लेने के कारण

  • الْعِجْلَ: बछड़े को

  • فَتُوبُوا: तो तौबा करो

  • إِلَىٰ: की ओर

  • بَارِئِكُمْ: तुम्हारे बनाने वाले (अल्लाह) की

  • فَاقْتُلُوا: तो मार डालो

  • أَنفُسَكُمْ: अपने आप को

  • ذَٰلِكُمْ: वह (काम)

  • خَيْرٌ: बेहतर है

  • لَّكُمْ: तुम्हारे लिए

  • عِند: के नज़दीक

  • بَارِئِكُمْ: तुम्हारे बनाने वाले के

  • فَتَابَ: तो उसने तौबा क़बूल की

  • عَلَيْكُمْ: तुम पर

  • إِنَّهُ: निश्चय ही वह

  • هُوَ: वही है

  • التَّوَّابُ: बार-बार तौबा क़बूल करने वाला

  • الرَّحِيمُ: बड़ा मेहरबान


3. पूर्ण विवरण (Full Explanation)

संदर्भ (Context):

यह आयत बनी इस्राईल के इतिहास की सबसे कठोर और गहन घटनाओं में से एक का वर्णन करती है। यह घटना बछड़े की पूजा करने के भयंकर गुनाह के बाद की है। अल्लाह ने उन्हें माफ कर दिया था (जैसा कि आयत 2:52 में है), लेकिन इस माफी से पहले एक गहरी पवित्रता और पश्चाताप की प्रक्रिया से गुजरना जरूरी था। यह आयत उसी प्रक्रिया का विवरण है।

आयत के भागों का विश्लेषण:

भाग 1: "और (वह समय) याद करो जब मूसा ने अपनी कौम से कहा: 'हे मेरी कौम! निश्चय ही तुमने बछड़े को अपना पूज्य बना लेने के कारण अपने आप पर बहुत बड़ा ज़ुल्म किया है।'"

  • गुनाह की गंभीरता को समझाना: हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) सबसे पहले उन्हें उनके गुनाह की गंभीरता का एहसास करा रहे हैं। "ज़ुल्म" शब्द का प्रयोग यह दर्शाता है कि शिर्क सबसे बड़ा अत्याचार है, और यह अत्याचार इंसान स्वयं अपने ऊपर करता है।

भाग 2: "'...अतः अपने रचयिता (बारे) के सामने तौबा करो...'"

  • समाधान का पहला चरण: तौबा (पश्चाताप) हर गुनाह की क्षमा की पहली शर्त है। इसमें गुनाह को छोड़ना, उस पर पछतावा करना और भविष्य में न करने का दृढ़ संकल्प शामिल है।

भाग 3: "'...और अपने आप को (आपस में) मार डालो।'"

  • कठोर प्रायश्चित: यह आदेश अत्यंत कठोर लगता है, लेकिन इसके पीछे एक गहरा उद्देश्य था। यह आदेश उन लोगों के लिए था जो बछड़े की पूजा में सबसे आगे थे और जिन्होंने इस गुनाह का नेतृत्व किया था। इसका मतलब यह था कि जिन लोगों ने इस गुनाह में भाग नहीं लिया था, वे उन गुनहगारों को मार डालें। यह एक ऐसी कठोर सजा थी जो उनके दिलों में गुनाह की गंभीरता को गहराई से उतार दे और भविष्य में ऐसा दोबारा न हो।

भाग 4: "'...यही तुम्हारे रचयिता के यहाँ तुम्हारे लिए बेहतर है।'"

  • प्रायश्चित का लाभ: हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) समझा रहे हैं कि दुनिया की यह कठोर सजा, आखिरत की सजा से बेहतर है। यह कठोर प्रक्रिया उन्हें पूरी तरह शुद्ध कर देगी और अल्लाह की रहमत के योग्य बना देगी।

भाग 5: "फिर अल्लाह ने तुमपर (अपनी विशेष) दया की। निश्चय ही वह तौबा क़बूल करने वाला, दयावान है।"

  • अल्लाह की दया का अंतिम चरण: जब बनी इस्राईल ने इस कठोर आदेश को मानने का संकल्प किया और आपस में मार-मारकर प्रायश्चित करना शुरू किया, तो अल्लाह ने उन पर दया की और उनकी तौबा को कबूल कर लिया। उन्हें वास्तव में एक-दूसरे को मारने की नौबत नहीं आने दी। यह अल्लाह के दो सुंदर नामों पर समाप्त होता है:

    • अत-तव्वाब: वह जो बार-बार तौबा को कबूल करता है।

    • अर-रहीम: अत्यंत दयावान।


4. सबक (Lessons)

  1. शिर्क की गंभीरता: इस्लाम में शिर्क (अल्लाह के साथ साझीदार ठहराना) सबसे बड़ा और अक्षम्य गुनाह है, अगर उस पर तौबा न की जाए।

  2. तौबा का महत्व: कोई भी गुनाह, चाहे वह कितना ही बड़ा क्यों न हो, अल्लाह की दया से बाहर नहीं है, बशर्ते इंसान सच्चे दिल से तौबा करे।

  3. पाप का प्रायश्चित: कभी-कभी गुनाह का एहसास दिल में बैठाने के लिए एक कठोर प्रायश्चित या कुरबानी की आवश्यकता होती है।

  4. अल्लाह की दया की विजय: अंत में, अल्लाह की दया ही सबसे बड़ी विजयी होती है। वह अपने बंदों को क्षमा करना चाहता है, भले ही उसके लिए एक कठोर प्रक्रिया से गुजरना पड़े।


5. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevancy: Past, Present & Future)

अतीत (Past) में प्रासंगिकता:

  • यह आयत बनी इस्राईल को उनके इतिहास की सबसे शर्मनाक और शिक्षाप्रद घटना याद दिला रही थी, ताकि वे अपनी गलतियों से सीखें और पैगंबर मुहम्मद (सल्ल.) पर ईमान ले आएं।

  • यह दर्शाती है कि अल्लाह ने उन्हें माफ करने से पहले उनकी आस्था की कसौटी ली।

वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता:

  • आधुनिक शिर्क: आज के मुसलमानों के लिए यह आयत एक चेतावनी है कि शिर्क सिर्फ बछड़े की पूजा नहीं है। कब्रपूजा, औलिया को अल्लाह का दर्जा देना, पैसे, शौहरत या किसी इंसान को अल्लाह से ऊपर रखना - ये सभी आधुनिक शिर्क के रूप हैं।

  • तौबा की आवश्यकता: आज का मुसलमान गुनाहों में डूबा हुआ है लेकिन तौबा की गंभीरता को नहीं समझता। इस आयत से पता चलता है कि तौबा सिर्फ माफी माँगना नहीं, बल्कि गुनाह को छोड़ना और उसके लिए पछतावा करना है।

  • गुनाह की गंभीरता का एहसास: आज लोग गुनाहों को हल्के में लेते हैं। इस आयत से सीख मिलती है कि हर गुनाह, खासकर शिर्क, अपने ऊपर किया गया एक बड़ा जुल्म है।

भविष्य (Future) में प्रासंगिकता:

  • यह आयत हमेशा मुसलमानों को शिर्क के खतरे से आगाह करती रहेगी और तौबा के दरवाजे की याद दिलाती रहेगी।

  • यह भविष्य की पीढ़ियों को यह संदेश देगी कि अल्लाह की दया हमेशा उसके गुस्से पर भारी रहती है, और सच्ची तौबा हर गुनाह को धो सकती है।