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कुरआन की आयत 2:80 (सूरह अल-बक़ारह) का पूर्ण विस्तृत विवरण

 

1. पूरी आयत अरबी में:

وَقَالُوا لَن تَمَسَّنَا النَّارُ إِلَّا أَيَّامًا مَّعْدُودَةً ۚ قُلْ أَتَّخَذْتُمْ عِندَ اللَّهِ عَهْدًا فَلَن يُخْلِفَ اللَّهُ عَهْدَهُ ۖ أَمْ تَقُولُونَ عَلَى اللَّهِ مَا لَا تَعْلَمُونَ


2. अरबी शब्दों का अर्थ (Word-to-Word Meaning):

  • وَقَالُوا: और उन्होंने कहा

  • لَن: कदापि नहीं

  • تَمَسَّنَا: छुएगी हमें

  • النَّارُ: आग (जहन्नम)

  • إِلَّا: सिवाय

  • أَيَّامًا: दिनों

  • مَّعْدُودَةً: गिने-चुने

  • قُل: (हे पैगंबर!) आप कह दीजिए

  • أَتَّخَذْتُمْ: क्या तुमने ले लिया

  • عِندَ: पास

  • اللَّهِ: अल्लाह का

  • عَهْدًا: कोई वादा

  • فَلَن: तो कदापि नहीं

  • يُخْلِفَ: तोड़ेगा

  • اللَّهُ: अल्लाह

  • عَهْدَهُ: अपना वादा

  • أَم: या फिर

  • تَقُولُونَ: तुम कहते हो

  • عَلَى: पर

  • اللَّهِ: अल्लाह

  • مَا: ऐसी बात

  • لَا: नहीं

  • تَعْلَمُونَ: जानते हो


3. पूर्ण विवरण (Full Explanation)

संदर्भ (Context):

यह आयत बनी इस्राईल की एक और खतरनाक धारणा का पर्दाफाश करती है। वे अपने आप को अल्लाह की विशेष सन्तान समझते थे और इस गलतफहमी में थे कि चाहे वे कितने भी बड़े गुनाह क्यों न कर लें, उन्हें जहन्नम में सिर्फ कुछ ही दिनों के लिए रहना होगा। यह आयत उनकी इस झूठी सुरक्षा की भावना को चुनौती देती है।

आयत के भागों का विश्लेषण:

भाग 1: "और उन्होंने कहा: 'हमें आग (जहन्नम) कदापि नहीं छुएगी, सिवाय गिने-चुने दिनों के।'"

  • झूठा विश्वास: बनी इस्राईल का यह दावा उनके अहंकार और गुमान का प्रतीक था। वे सोचते थे कि केवल इस्राईली होने के नाते उन्हें विशेष छूट प्राप्त है।

  • "गिने-चुने दिन": उनका मानना था कि उन्हें सिर्फ सात या चालीस दिनों के लिए ही जहन्नम में रहना होगा, उसके बाद वे मुक्त हो जाएंगे।

भाग 2: "(हे पैगंबर!) आप कह दीजिए: 'क्या तुमने अल्लाह के पास से कोई वादा ले लिया है? तो अल्लाह कदापि अपना वादा नहीं तोड़ेगा...'"

  • तार्किक चुनौती: अल्लाह पैगंबर (सल्ल.) को उनसे एक सीधा और तार्किक सवाल पूछने का आदेश दे रहा है। यह सवाल उनकी धारणा की जड़ पर प्रहार करता है।

  • अल्लाह के वादे की सच्चाई: अगर उनके पास वास्तव में अल्लाह का कोई वादा है, तो निश्चित रूप से वह पूरा होगा, क्योंकि अल्लाह अपने वादों के विपरीत कभी नहीं करता।

भाग 3: "'...या तुम अल्लाह पर ऐसी बात कहते हो जो तुम नहीं जानते?'"

  • दूसरा, अधिक कठोर विकल्प: अगर पहला विकल्प सच नहीं है (यानी उनके पास कोई वादा नहीं है), तो फिर केवल एक ही विकल्प बचता है - वे जानबूझकर अल्लाह पर झूठ बोल रहे हैं।

  • सबसे बड़ा आरोप: "अल्लाह पर ऐसी बात कहना जो तुम नहीं जानते" इस्लाम में एक बहुत बड़ा पाप है (इफ्तिरा)। इसका अर्थ है अल्लाह के नाम पर झूठ गढ़ना।


4. सबक (Lessons)

  1. झूठी सुरक्षा की भावना से बचें: कोई भी समुदाय, जाति या परिवार अपने आप को अल्लाह की सजा से सुरक्षित नहीं समझ सकता। नस्लीय श्रेष्ठता का दंभ खतरनाक है।

  2. अल्लाह पर झूठा आरोप न लगाएँ: अल्लाह के नाम पर बिना ज्ञान के कोई बात कहना या उसके धर्म में मनमाने विश्वास गढ़ना सबसे बड़े पापों में से एक है।

  3. व्यक्तिगत जिम्मेदारी: हर इंसान अपने कर्मों के लिए जिम्मेदार है। किसी के साथियों, बाप-दादा या समुदाय के कारण उसे छूट नहीं मिल सकती।

  4. अल्लाह के वादे सत्य हैं: अल्लाह के वादे (जैसे गुनाहगारों के लिए सजा का वादा) हमेशा सत्य होते हैं। उनमें कोई परिवर्तन नहीं होता।


5. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevancy: Past, Present & Future)

अतीत (Past) में प्रासंगिकता:

  • यह आयत बनी इस्राईल के गुमान और झूठे विश्वास को तोड़ने के लिए थी।

  • यह उन्हें यह समझाने का प्रयास था कि उनकी यह धारणा पूरी तरह से निराधार है।

वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता:

  • आधुनिक "गिने-चुने दिन" की मानसिकता: आज के कई मुसलमानों में भी यही मानसिकता देखने को मिलती है। वे सोचते हैं:

    • "हम मुसलमान हैं, इसलिए जहन्नम में हमेशा नहीं रहेंगे।"

    • "रमजान के रोजे, जुमे की नमाज़, या किसी बुजुर्ग की दुआ से हमारे सारे गुनाह माफ हो जाएंगे।"

    • वे गुनाह करते हैं और आसानी से तौबा करने का इरादा रखते हैं, मानो यह एक छोटी सी बात हो।

  • सम्प्रदायवाद और गुमान: कुछ लोग अपने सम्प्रदाय या तरीक़े को ही एकमात्र सही मानकर यह समझते हैं कि केवल वही बचेंगे और बाकी सब जहन्नम में जाएंगे। यह एक प्रकार का आधुनिक "हमें आग नहीं छुएगी" का गुमान है।

  • बिना ज्ञान के धार्मिक बातें कहना: आज भी लोग बिना ज्ञान के इस्लाम के बारे में तरह-तरह की बातें कहते हैं, हलाल-हराम के फतवे देते हैं, और अल्लाह के नाम पर झूठे वादे करते हैं।

भविष्य (Future) में प्रासंगिकता:

  • यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी को यह चेतावनी देती रहेगी कि अल्लाह की सजा से बचने का कोई शॉर्टकट नहीं है।

  • यह हमेशा मानवता को यह संदेश देगी कि अल्लाह के नाम पर बिना ज्ञान के कोई बात कहना सबसे बड़ा धोखा है।

  • यह आयत कयामत तक एक स्थायी सत्य स्थापित करती है: "अल्लाह के सामने हर इंसान अपने कर्मों का जवाबदेह है, और कोई भी झूठी सुरक्षा की दीवार उसे बचा नहीं सकती।"