1. पूरी आयत अरबी में:
فَوَيْلٌ لِّلَّذِينَ يَكْتُبُونَ الْكِتَابَ بِأَيْدِيهِمْ ثُمَّ يَقُولُونَ هَٰذَا مِنْ عِندِ اللَّهِ لِيَشْتَرُوا بِهِ ثَمَنًا قَلِيلًا ۖ فَوَيْلٌ لَّهُم مِّمَّا كَتَبَتْ أَيْدِيهِمْ وَوَيْلٌ لَّهُم مِّمَّا يَكْسِبُونَ
2. अरबी शब्दों का अर्थ (Word-to-Word Meaning):
فَوَيْلٌ: तो हानि/विनाश है
لِّلَّذِينَ: उन लोगों के लिए
يَكْتُبُونَ: लिखते हैं
الْكِتَابَ: किताब को
بِأَيْدِيهِمْ: अपने हाथों से
ثُمَّ: फिर
يَقُولُونَ: कहते हैं
هَٰذَا: यह
مِنْ عِندِ: की तरफ से है
اللَّهِ: अल्लाह के
لِيَشْتَرُوا: ताकि वे खरीद लें
بِهِ: इसके बदले
ثَمَنًا: मूल्य
قَلِيلًا: थोड़ा
فَوَيْلٌ: तो हानि/विनाश है
لَّهُم: उनके लिए
مِّمَّا: उससे
كَتَبَتْ: लिखा
أَيْدِيهِمْ: उनके हाथों ने
وَوَيْلٌ: और हानि/विनाश है
لَّهُم: उनके लिए
مِّمَّा: उससे
يَكْسِبُونَ: वे कमाते हैं
3. पूर्ण विवरण (Full Explanation)
संदर्भ (Context):
यह आयत बनी इस्राईल के धार्मिक नेताओं और विद्वानों पर सबसे कड़ा आरोप लगाती है। यह उनके सबसे घृणित अपराध - ईश्वरीय ग्रंथों में जानबूझकर छेड़छाड़ - का खुलासा करती है। यह आयत पिछली आयतों में वर्णित उनकी बुराइयों (ज्ञान छिपाना, पाखंड) का चरम बिंदु है।
आयत के भागों का विश्लेषण:
भाग 1: "तो हानि (विनाश) है उन लोगों के लिए जो किताब को अपने हाथों से लिखते हैं..."
"वैल" का अर्थ: "वैल" एक भयानक दंड, विनाश और दुख की स्थिति का वाचक है। यह आखिरत की एक भयावह सजा को दर्शाता है।
"अपने हाथों से लिखते हैं": इसका सीधा अर्थ है कि वे लोग ईश्वरीय ग्रंथ (तौरात) में अपनी ओर से बातें जोड़ रहे थे, उसे बदल रहे थे, या अपनी मनगढ़ंत बातों को लिखकर उसे पवित्र ग्रंथ का रूप दे रहे थे।
भाग 2: "...फिर कहते हैं: 'यह अल्लाह की ओर से है'..."
सबसे बड़ा झूठ: वे न सिर्फ ग्रंथों में छेड़छाड़ करते थे, बल्कि इस सब के बाद यह दावा करते थे कि यह मनगढ़ंत बातें भी अल्लाह का कलाम हैं। यह अल्लाह पर सीधा झूठ बोलना (इफ्तिरा) है, जो इस्लाम में सबसे बड़े पापों में से एक है।
भाग 3: "...ताकि उसके बदले थोड़ा सा मूल्य (दुनिया का लाभ) खरीद लें।"
छेड़छाड़ का उद्देश्य: उनकी इस भयानक हरकत का उद्देश्य सांसारिक लाभ था। "थोड़ा सा मूल्य" से तात्पर्य है:
धन-दौलत
सामाजिक प्रतिष्ठा और पद
लोगों का सम्मान
सत्ता और प्रभाव
भाग 4: "तो उनके लिए हानि है उससे जो उनके हाथों ने लिखा और उनके लिए हानि है उससे जो वे कमाते हैं।"
दोहरा दंड: आयत दो बार "वैल" (विनाश) की चेतावनी देकर दोहरा दंड सुनाती है:
उनके लेखन के कारण: उनकी लिखी हुई झूठी बातों के लिए।
उनकी कमाई के कारण: उस हराम की कमाई के लिए जो उन्होंने इस झूठ के बदले में प्राप्त की।
4. सबक (Lessons)
धार्मिक ग्रंथों की शुद्धता: इस्लाम ईश्वरीय ग्रंथों की शुद्धता और सुरक्षा पर सबसे अधिक जोर देता है। उनमें किसी प्रकार की छेड़छाड़ सबसे बड़ा अपराध है।
धर्म को जीविका का साधन न बनाएँ: धर्म का उपयोग धन या प्रतिष्ठा कमाने के लिए करना एक भयानक पाप है। उलेमा और धार्मिक नेताओं को इससे सख्ती से बचना चाहिए।
अल्लाह पर झूठा आरोप: अल्लाह के नाम पर कोई झूठी बात कहना या लिखना सबसे बड़ा अत्याचार (जुल्म) है।
दुनिया का लालच: दुनिया का थोड़ा सा लालच इंसान को इतना बड़ा पाप करने पर मजबूर कर सकता है। इसलिए लालच से बचना चाहिए।
5. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevancy: Past, Present & Future)
अतीत (Past) में प्रासंगिकता:
यह आयत बनी इस्राईल के विद्वानों द्वारा तौरात में किए गए बदलावों का सीधा खुलासा थी।
यह मुसलमानों को यहूदियों की सच्चाई से अवगत करा रही थी।
वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता:
आधुनिक "किताब लिखने वाले": आज भी कुछ लोग इस्लाम के नाम पर ऐसा ही काम करते हैं:
जाली किताबें: इस्लाम के नाम पर ऐसी किताबें लिखना जिनमें गलत बातें, बिदअतें (नई बातें) और गलत अकीदे हों, और उन्हें "इस्लामी साहित्य" बताना।
गलत तर्सीर (व्याख्या): कुरआन की आयतों की गलत व्याख्या करके अपनी मनमानी बातें पेश करना और कहना कि यही कुरआन का अर्थ है।
फर्जी हदीसें गढ़ना: पैगंबर (सल्ल.) के नाम पर झूठी हदीसें गढ़ना और उन्हें प्रामाणिक बताना।
धार्मिक व्यवसाय: कुछ लोग धर्म को एक व्यवसाय बना लेते हैं। वे टीवी चैनलों पर, सोशल मीडिया पर या मजलिसों में धर्म का ढोंग करके पैसा, शोहरत और political लाभ कमाते हैं। यह आधुनिक "थोड़े से मूल्य" की खरीदारी है।
सच्चे और झूठे विद्वान में अंतर: यह आयत मुसलमानों को सच्चे और झूठे विद्वान में अंतर करना सिखाती है। जो विद्वान दुनिया के लालच में धर्म के साथ खिलवाड़ करे, उससे सावधान रहना चाहिए।
भविष्य (Future) में प्रासंगिकता:
यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी को यह चेतावनी देती रहेगी कि ईश्वरीय ग्रंथों और धार्मिक शिक्षाओं के साथ छेड़छाड़ करने वालों के लिए भयानक दंड है।
यह हमेशा धार्मिक नेताओं और विद्वानों को याद दिलाती रहेगी कि उनकी जिम्मेदारी बहुत बड़ी है और वे दुनिया के थोड़े से लाभ के लिए अपनी आखिरत न बर्बाद करें।
यह आयत कयामत तक एक स्थायी सिद्धांत स्थापित करती है: "धर्म के साथ धोखाधड़ी करके दुनिया का लाभ उठाना सबसे बुरा व्यापार है।"