Read Quran translation in Hindi with verse-by-verse meaning and time-relevant explanations for deeper understanding.

क़ुरआन 2:91 (सूरह अल-बक़राह) - पूर्ण व्याख्या

 

१. पूरी आयत अरबी में:

وَإِذَا قِيلَ لَهُمْ آمِنُوا بِمَا أَنزَلَ اللَّهُ قَالُوا نُؤْمِنُ بِمَا أُنزِلَ عَلَيْنَا وَيَكْفُرُونَ بِمَا وَرَاءَهُ وَهُوَ الْحَقُّ مُصَدِّقًا لِّمَا مَعَهُمْ ۗ قُلْ فَلِمَ تَقْتُلُونَ أَنبِيَاءَ اللَّهِ مِن قَبْلُ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ

२. शब्द-दर-शब्द अर्थ (Arabic Words Meaning):

  • وَإِذَا: और जब।

  • قِيلَ لَهُمْ: उनसे कहा जाता है।

  • آمِنُوا: ईमान लाओ।

  • بِمَا: उस पर।

  • أَنزَلَ اللَّهُ: जो अल्लाह ने उतारा।

  • قَالُوا: वे कहते हैं।

  • نُؤْمِنُ: हम ईमान लाते हैं।

  • بِمَا: उस पर।

  • أُنزِلَ عَلَيْنَا: जो हम पर उतारा गया।

  • وَيَكْفُرُونَ: और इनकार करते हैं।

  • بِمَا: उसका।

  • وَرَاءَهُ: उस (तौरात) के अलावा।

  • وَهُوَ: और वह (क़ुरआन)।

  • الْحَقُّ: सच्चाई है।

  • مُصَدِّقًا: पुष्टि करने वाला।

  • لِّمَا: उसकी।

  • مَعَهُمْ: उनके पास है।

  • قُلْ: (हे पैगंबर!) आप कह दीजिए।

  • فَلِمَ: तो क्यों।

  • تَقْتُلُونَ: तुम मार डालते हो।

  • أَنبِيَاءَ اللَّهِ: अल्लाह के पैगंबरों को।

  • مِن قَبْلُ: पहले।

  • إِن كُنتُم: यदि तुम हो।

  • مُّؤْمِنِينَ: ईमान वाले।

३. आयत का पूरा अर्थ (Full Explanation in Hindi):

इस आयत का पूरा अर्थ है: "और जब उन (यहूदियों) से कहा जाता है कि जो कुछ अल्लाह ने उतारा है उसपर ईमान लाओ, तो वे कहते हैं: 'हम उसपर ईमान लाते हैं जो हमपर उतारा गया (यानी सिर्फ तौरात पर),' और उस (तौरात) के अलावा जो कुछ (उतारा गया) है उसका इनकार करते हैं, हालाँकि वह (क़ुरआन) सच्चाई है और उस (तौरात) की पुष्टि करने वाला है जो उनके पास है। (हे पैगंबर!) आप कह दीजिए: तो (अगर तुम सच्चे ईमान वाले हो) तो तुम अल्लाह के पैगंबरों को पहले क्यों मार डालते थे?"

गहन व्याख्या:
यह आयत बनी इस्राईल की एक और गहरी विसंगति (Contradiction) को उजागर करती है।

१. चुनिन्दा आस्तिकता (Selective Belief):

  • जब यहूदियों से कहा गया कि अल्लाह के सभी नबियों और किताबों पर ईमान लाओ, तो उन्होंने एक संकीर्ण और स्वार्थपूर्ण जवाब दिया।

  • उनका दावा: "हम सिर्फ उसपर ईमान लाते हैं जो हमपर उतारा गया (यानी तौरात)।"

  • उनका इनकार: उन्होंने तौरात के बाद आने वाली हर चीज़ - चाहे वह ईसा (अलैहिस्सलाम) की इंजील हो या मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का क़ुरआन - का इनकार कर दिया।

२. तार्किक प्रमाण (Logical Proof):

  • अल्लाह उनके इस इनकार को बेबुनियाद ठहराते हुए दो तर्क देता है:

    • "हालाँकि वह (क़ुरआन) सच्चाई है" - यानी उसमें कोई संदेह नहीं है।

    • "और उस (तौरात) की पुष्टि करने वाला है" - यानी क़ुरआन तौरात में दिए गए मूल सिद्धांतों (एकेश्वरवाद, नबुव्वत, आखिरत) की पुष्टि करता है। वह उनकी अपनी किताब का समर्थन कर रहा है।

३. ऐतिहासिक अपराध का स्मरण (Reminder of Historical Crime):

  • फिर अल्लाह पैगंबर को आदेश देता है कि वह उनसे एक कठोर और चुनौतीपूर्ण सवाल पूछे: "तो तुम अल्लाह के पैगंबरों को पहले क्यों मार डालते थे?"

  • यह सवाल उनके दावे की पोल खोल देता है। अगर वे सच्चे ईमान वाले हैं और अल्लाह की किताब का सम्मान करते हैं, तो उन्होंने अपने ही पैगंबरों की हत्या क्यों की? यह साबित करता है कि उनका "ईमान" महज एक दिखावा और जातीय अहंकार है, सच्ची आस्था नहीं।

४. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral):

  • ईमान संपूर्ण होता है: सच्चा ईमान अल्लाह के सभी पैगंबरों और सभी आसमानी किताबों पर विश्वास करने का नाम है। चुनिन्दा ईमान, असल में ईमान ही नहीं है।

  • दावों और कर्मों में अंतर: लोग अक्सर बड़े-बड़े दावे करते हैं, लेकिन उनके कर्म उन दावों के विपरीत होते हैं। असली कसौटी कर्मों की है।

  • अहंकार अंधा कर देता है: जातीय या धार्मिक अहंकार इंसान को इतना अंधा बना देता है कि वह अपनी ही किताब में लिखी सच्चाई को भी झुठला देता है।

  • सत्य को स्वीकार करो, स्रोत को नहीं देखो: सच्चाई को उसके स्रोत (कौन लाया) के आधार पर नहीं, बल्कि उसकी सच्चाई के आधार पर स्वीकार करना चाहिए।

५. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):

  • अतीत (Past) के संदर्भ में:

    • यह आयत मदीना के यहूदियों की उस मानसिकता को दर्शाती है जो पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को मानने को तैयार नहीं थी, भले ही वह उनकी अपनी भविष्यवाणियों को पूरा कर रहे थे।

    • यह उनके पूर्व इतिहास में पैगंबरों की हत्या के अपराध की ओर भी इशारा करती है।

  • वर्तमान (Present) के संदर्भ में:

    • धार्मिक कट्टरता: आज भी कई यहूदी और ईसाई समुदाय सिर्फ अपने अपने धर्मग्रंथों को ही अंतिम मानते हैं और दूसरों को स्वीकार नहीं करते, भले ही उनके अपने ग्रंथ ही अगले पैगंबर की भविष्यवाणी करते हों।

    • इस्लामिक सेक्टेरियनवाद: मुसलमानों के भीतर भी कुछ समूह दूसरे समूहों को "काफिर" ठहराने लगते हैं, जो एक तरह की संकीर्ण मानसिकता है।

    • बौद्धिक अहंकार: आज का "बुद्धिजीवी" वर्ग भी अक्सर सिर्फ अपनी बुद्धि और विचारधारा को ही सच मानता है और ईश्वरीय मार्गदर्शन को सिरे से खारिज कर देता है। यह "हम सिर्फ वही मानते हैं जो हमारे पास है" वाली ही मानसिकता है।

    • दिखावटी धर्मिकता: लोग मस्जिद में नमाज़ तो पढ़ते हैं लेकिन व्यापार में झूठ और धोखा करते हैं। यह आयत हमें हमारे दावों और कर्मों के बीच के अंतर को देखने की सीख देती है।

  • भविष्य (Future) के संदर्भ में:

    • सहिष्णुता और संवाद: भविष्य के वैश्विक समाज के लिए जरूरी है कि लोग दूसरे धर्मों और विचारों के प्रति सम्मान रखें। यह आयत संकीर्णता को दूर करने का संदेश देती है।

    • सत्य की एकता: यह आयत भविष्य की पीढ़ियों को सिखाएगी कि सच्चाई एक है और वह अलग-अलग समय पर अलग-अलग पैगंबरों के माध्यम से आती रही है। उन सभी को स्वीकार करना ही तर्कसंगत है।

    • आत्म-अवलोकन का महत्व: यह आयत हमेशा लोगों को यह याद दिलाती रहेगी कि अपने दावों की जाँच खुद अपने कर्मों से करें। अगर कर्म और दावे मेल नहीं खाते, तो ईमान अधूरा है।

निष्कर्ष: क़ुरआन की यह आयत "दिखावटी आस्तिकता" और "जातीय अहंकार" के खिलाफ एक शक्तिशाली प्रहार है। यह सिखाती है कि सच्चा ईमान विनम्र, संपूर्ण और कर्मों में झलकने वाला होता है। यह अतीत के पाखंड का पर्दाफाश, वर्तमान के लिए एक आईना और भविष्य के लिए सच्ची आस्तिकता की परिभाषा है।