१. पूरी आयत अरबी में:
وَإِذْ أَخَذْنَا مِيثَاقَكُمْ وَرَفَعْنَا فَوْقَكُمُ الطُّورَ خُذُوا مَا آتَيْنَاكُم بِقُوَّةٍ وَاسْمَعُوا ۖ قَالُوا سَمِعْنَا وَعَصَيْنَا وَأُشْرِبُوا فِي قُلُوبِهِمُ الْعِجْلَ بِكُفْرِهِمْ ۚ قُلْ بِئْسَمَا يَأْمُرُكُم بِهِ إِيمَانُكُمْ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ
२. शब्द-दर-शब्द अर्थ (Arabic Words Meaning):
وَإِذْ: और (याद करो) वह समय जब।
أَخَذْنَا: हमने लिया।
مِيثَاقَكُمْ: तुम्हारा वादा/प्रतिज्ञा।
وَرَفَعْنَا: और हमने उठाया।
فَوْقَكُم: तुम्हारे ऊपर।
الطُّورَ: तूर पहाड़।
خُذُوا: तुम ले लो।
مَا آتَيْنَاكُم: जो हमने तुम्हें दिया है।
بِقُوَّةٍ: मजबूती के साथ।
وَاسْمَعُوا: और सुनो (मानो)।
قَالُوا: उन्होंने कहा।
سَمِعْنَا: हमने सुन लिया।
وَعَصَيْنَا: और हम अवज्ञा करते हैं।
وَأُشْرِبُوا: और पिला दिया गया (रच-बस गया)।
فِي قُلُوبِهِم: उनके दिलों में।
الْعِجْلَ: बछड़ा (का प्यार)।
بِكُفْرِهِم: उनके इनकार के कारण।
قُلْ: (हे पैगंबर!) आप कह दें।
بِئْسَمَا: कितना बुरा है वह।
يَأْمُرُكُم: तुम्हें आदेश देता है।
بِهِ: उसका।
إِيمَانُكُمْ: तुम्हारा ईमान।
إِن كُنتُم: यदि तुम हो।
مُّؤْمِنِينَ: ईमान वाले।
३. आयत का पूरा अर्थ (Full Explanation in Hindi):
इस आयत का पूरा अर्थ है: "और (वह समय याद करो) जब हमने तुमसे प्रतिज्ञा ली और तुम्हारे ऊपर तूर पहाड़ को उठा लिया (और कहा): 'जो कुछ हमने तुम्हें दिया है (तौरात) उसे मजबूती से पकड़ लो और (इसके आदेश) सुनो (मानो)।' उन्होंने कहा: 'हमने सुन लिया और हम अवज्ञा करते हैं।' और उनके कुफ्र (इनकार) के कारण बछड़ा (का प्यार) उनके दिलों में रच-बस गया। (हे पैगंबर!) आप कह दें: 'तुम्हारा ईमान तुम्हें जो आदेश देता है, वह कितना बुरा है, अगर तुम सचमुच ईमान वाले हो।'"
गहन व्याख्या:
यह आयत बनी इस्राईल के एक और चौंकाने वाले ऐतिहासिक व्यवहार का वर्णन करती है, जो उनकी जिद और अवज्ञा को दर्शाता है।
1. डरावना दृश्य और पवित्र वचन:
अल्लाह ने बनी इस्राईल से तौरात स्वीकार करने का एक शक्तिशाली वचन लिया। इस वचन को और अधिक गंभीर बनाने के लिए, उनके ऊपर पूरा का पूरा "तूर पहाड़ उठा लिया गया," मानो वह उनपर गिरने वाला हो। यह एक भयानक और डरावना दृश्य था ताकि वे अल्लाह के आदेश की गंभीरता को समझें।
अल्लाह का आदेश स्पष्ट था: "तौरात को मजबूती से पकड़ो और उसके आदेशों को सुनो (मानो)।"
2. अभूतपूर्व जवाब: "हमने सुन लिया और हम अवज्ञा करते हैं"
इस डरावने माहौल और सीधे अल्लाह के आदेश के जवाब में, बनी इस्राईल ने एक अद्भुत और अभूतपूर्व बात कही: "समिन्ना वा असैना" (हमने सुन लिया और हम अवज्ञा करते हैं)।
यह सिर्फ इनकार नहीं था, बल्कि एक खुला विद्रोह और अवज्ञा का ऐलान था। यह उनकी हठधर्मी और जिद का चरम था।
3. दिलों में बसा बछड़ा:
आयत इस अवज्ञा का कारण बताती है। उनके कुफ्र (जिद और इनकार) के कारण "बछड़ा उनके दिलों में रच-बस गया था।"
यानी मूर्ति-पूजा का प्रेम और आसक्ति उनके दिलों में इतनी गहराई से समा गई थी कि वे सीधे अल्लाह के आदेश को भी ठुकरा रहे थे।
4. व्यंग्यपूर्ण प्रश्न:
अल्लाह पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को आदेश देता है कि वे उन यहूदियों से पूछें, जो अपने आप को ईमान वाला कहते हैं: "तुम्हारा ईमान तुम्हें जो आदेश देता है, वह कितना बुरा है!"
यह एक व्यंग्य है। असल में, अगर उनका ईमान उन्हें अल्लाह की अवज्ञा करने का आदेश दे रहा है, तो वह ईमान नहीं बल्कि कुफ्र है। यह साबित करता है कि उनका दावा खोखला है।
४. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral):
ईमान की असली पहचान आज्ञाकारिता है: सच्चा ईमान अल्लाह और उसके पैगंबर के आदेशों को सुनने और मानने का नाम है। सिर्फ जुबानी दावा काफी नहीं है।
जिद और हठधर्मी का परिणाम: जिद इंसान को इतना अंधा बना देती है कि वह स्पष्ट सच्चाई और अल्लाह के खुले चमत्कारों को भी ठुकरा देता है।
दिल की स्थिति का महत्व: अगर दिल में किसी गलत चीज (जैसे मूर्तिपूजा, दुनिया का प्यार, अहंकार) की पकड़ हो जाए, तो वह इंसान को सच्चाई स्वीकारने से रोक देती है।
ईमान एक कर्म है, सिर्फ वचन नहीं: "हमने सुन लिया" कहना पर्याप्त नहीं है, "हम मानते हैं" कहकर उस पर अमल करना जरूरी है।
५. अतीत, वर्तमान और भविष्य के सा�्त प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):
अतीत (Past) के संदर्भ में:
यह आयत सीधे तौर पर बनी इस्राईल की उस ऐतिहासिक घटना का वर्णन है जब उन्होंने अल्लाह के सामने खुली अवज्ञा का प्रदर्शन किया।
यह पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के समय के यहूदियों के लिए एक चेतावनी थी कि वे अपने पूर्वजों के रास्ते पर न चलें।
वर्तमान (Present) के संदर्भ में:
आधुनिक "सुनना और अवज्ञा करना": आज भी बहुत से लोग इस्लाम के आदेशों को सुनते हैं (जैसे हिजाब, दाढ़ी, ब्याज से परहेज, नमाज़), लेकिन फिर कहते हैं "हम नहीं मानेंगे" या "यह जमाना अलग है"। यह आधुनिक "समिन्ना वा असैना" है।
दिलों के "बछड़े": आज के लोगों के दिलों में पैसा, कैरियर, शोहरत, फैशन जैसे "बछड़े" रच-बस गए हैं, जो उन्हें अल्लाह के आदेशों को मानने से रोकते हैं।
धार्मिक दिखावा: कुछ लोग अपने आप को धार्मिक कहलवाते हैं लेकिन उनका व्यवहार और कर्म इस्लाम के विपरीत होता है। यह आयत ऐसे लोगों से पूछती है कि आखिर तुम्हारा ईमान तुम्हें क्या आदेश दे रहा है?
भविष्य (Future) के संदर्भ में:
आज्ञाकारिता का सिद्धांत: यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी को यह मौलिक सिद्धांत सिखाती रहेगी कि इस्लाम में आज्ञाकारिता (सुनना और मानना) अनिवार्य है।
आत्म-जांच का आह्वान: यह आयत भविष्य के मुसलमानों को हमेशा स्वयं से यह सवाल करने के लिए प्रेरित करेगी: "क्या मैं केवल सुनता हूँ या फिर मानता भी हूँ? क्या मेरे दिल में कोई ऐसी चीज है जो मुझे अल्लाह की अवज्ञा पर उकसा रही है?"
सच्चे ईमान की परिभाषा: यह आयत हमेशा "सच्चे ईमान" और "दिखावटी ईमान" के बीच का अंतर स्पष्ट करती रहेगी।
निष्कर्ष: क़ुरआन की यह आयत मानव इतिहास में अवज्ञा के एक चरम उदाहरण को प्रस्तुत करती है। यह हमें सिखाती है कि ईमान की असली कसौटी आज्ञाकारिता और समर्पण है। यह हमें हमारे दिलों में छिपी हुई "मूर्तियों" (बछड़ों) को पहचानने और उन्हें तोड़ने की प्रेरणा देती है ताकि हम "सुनें" भी और "मानें" भी। यह अतीत का एक सबक, वर्तमान के लिए एक चुनौती और भविष्य के लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत है।