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क़ुरआन 2:94 (सूरह अल-बक़राह) - पूर्ण व्याख्या

 

१. पूरा आयत अरबी में:

قُلْ إِن كَانَتْ لَكُمُ الدَّارُ الْآخِرَةُ عِندَ اللَّهِ خَالِصَةً مِّن دُونِ النَّاسِ فَتَمَنَّوُا الْمَوْتَ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ

२. शब्द-दर-शब्द अर्थ (Arabic Words Meaning):

  • قُلْ: (हे पैगंबर!) आप कह दीजिए।

  • إِن كَانَتْ: यदि है।

  • لَكُم: तुम्हारे लिए।

  • الدَّارُ الْآخِرَةُ: आख़िरत का घर (जन्नत)।

  • عِندَ اللَّهِ: अल्लाह के यहाँ।

  • خَالِصَةً: ख़ास, विशेष रूप से।

  • مِّن دُونِ: के सिवाय।

  • النَّاس: लोगों (दूसरों) के।

  • فَتَمَنَّوُا: तो तुम मृत्यु की कामना करो।

  • الْمَوْتَ: मौत की।

  • إِن كُنتُمْ: यदि तुम हो।

  • صَادِقِينَ: सच्चे (अपने दावे में)।

३. आयत का पूरा अर्थ (Full Explanation in Hindi):

इस आयत का पूरा अर्थ है: "(हे पैगंबर!) आप कह दीजिए: यदि अल्लाह के यहाँ आख़िरत (परलोक) का घर (जन्नत) दूसरे लोगों को छोड़कर सिर्फ तुम्हारे लिए ही है, तो तुम मौत की कामना करो, यदि तुम सच्चे हो।"

गहन व्याख्या:
यह आयत बनी इस्राईल (यहूदियों) के एक और गर्वोक्ति पूर्ण दावे का जवाब है। वे दावा करते थे कि वे "अल्लाह के चुने हुए लोग" हैं और जन्नत में सिर्फ उन्हीं का प्रवेश होगा, बाकी सभी लोग वंचित रह जाएंगे।

अल्लाह तआला पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को आदेश देता है कि वे उनकी इस दावे की हकीकत को एक सीधी और तार्किक चुनौती के जरिए परखने को कहें।

चुनौती का तर्क:

  • अगर जन्नत में जाना सचमुच सिर्फ तुम्हारा ही विशेषाधिकार है, जैसा कि तुम दावा करते हो...

  • ...और तुम्हें यकीन है कि मरने के बाद तुम्हारा सीधा जन्नत में प्रवेश होगा...

  • ...तो फिर तुम्हें इस दुनिया में रहने से क्या डर? तुम्हें तो मौत की इच्छा करनी चाहिए ताकि जल्दी से जल्दी तुम अपने इस "विशेषाधिकार" का आनंद ले सको।

यह चुनौती उनके झूठे दावे की पोल खोल देती है। वास्तव में, वे मौत से डरते थे क्योंकि उन्हें अपने कर्मों का ज्ञान था और पता था कि उनके दावे झूठे हैं। उनकी यह हालत साबित करती है कि उन्हें खुद अपने भविष्य पर कोई भरोसा नहीं था।

४. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral):

  • दावों की कसौटी: केवल जुबानी दावे महत्वपूर्ण नहीं हैं। दावों की सच्चाई को कर्मों और आंतरिक विश्वास से परखा जाता है।

  • जातीय अहंकार का खंडन: अल्लाह के यहाँ किसी जाति या वंश का कोई विशेषाधिकार नहीं है। इंसामान का मूल्य उसके तक़वा (ईश-भय) और अच्छे कर्मों से है।

  • मौत की इच्छा का मापदंड: किसी की आस्था की सच्चाई का एक पैमाना यह है कि वह मौत के प्रति क्या दृष्टिकोण रखता है। एक सच्चा मोमिन मौत से नहीं डरता क्योंकि उसे अल्लाह की रहमत और जन्नत की उम्मीद होती है।

  • तर्क और बुद्धि का उपयोग: इस्लाम तर्क और बुद्धि के माध्यम से सच्चाई को स्थापित करने का समर्थन करता है।

५. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):

  • अतीत (Past) के संदर्भ में:

    • यह आयत सीधे तौर पर मदीना के यहूदियों के उस दावे का जवाब थी जो वे जातीय श्रेष्ठता के आधार पर करते थे।

    • ऐतिहासिक रूप से, जब यह चुनौती दी गई तो उन्होंने मौत की कामना करने से स्पष्ट इनकार कर दिया, जिससे उनके दावे की झूठी पोल खुल गई।

  • वर्तमान (Present) के संदर्भ में:

    • नस्लवाद और समूहवाद: आज भी दुनिया में नस्लवाद, जातिवाद और सांप्रदायिक श्रेष्ठता के दावे मौजूद हैं। कोई समुदाय यह दावा करता है कि केवल उन्हीं का मोक्ष होगा। यह आयत ऐसे सभी दावों को चुनौती देती है।

    • धार्मिक कट्टरता: कुछ धार्मिक समूह दूसरे धर्मों के लोगों को "नरक का ईंधन" घोषित करते हैं। यह आयत उनसे पूछती है कि अगर तुम्हें यकीन है तो मौत की इच्छा क्यों नहीं करते?

    • दिखावटी धर्मिकता: बहुत से लोग धार्मिक होने का दावा तो करते हैं लेकिन उनका जीवन पूरी तरह से दुनिया में डूबा हुआ है। वे मौत की बात सुनकर भी घबरा जाते हैं। यह इस बात का सबूत है कि उनका दावा और उनकी हकीकत में बहुत फर्क है।

    • मनोवैज्ञानिक परीक्षण: यह आयत हर व्यक्ति के लिए एक मनोवैज्ञानिक परीक्षण है। क्या हम वास्तव में आखिरत पर इतना विश्वास रखते हैं कि मौत को एक सुखद संक्रमण के रूप में देख सकें?

  • भविष्य (Future) के संदर्भ में:

    • सार्वभौमिक समानता का संदेश: भविष्य के वैश्विक समाज के लिए यह आयत समानता और भाईचारे का संदेश देती है, जो किसी भी प्रकार की जातीय या धार्मिक श्रेष्ठता को अस्वीकार करती है।

    • आस्था की वास्तविकता का मापदंड: यह आयत भविष्य की पीढ़ियों के लिए हमेशा एक कसौटी बनी रहेगी कि वे अपनी और दूसरों की आस्था की सच्चाई को परख सकें।

    • जीवन का उद्देश्य: यह संदेश सदैव प्रासंगिक रहेगा कि मुसलमान का लक्ष्य आखिरत है और उसे दुनिया से मोह नहीं, बल्कि मौत के बाद के जीवन की तैयारी करनी चाहिए।

निष्कर्ष: क़ुरआन की यह आयत "झूठे दावों" और "जातीय अहंकार" के खिलाफ एक अद्भुत तार्किक और मनोवैज्ञानिक प्रहार है। यह सिखाती है कि सच्ची आस्था वह है जो इंसान को मौत के प्रति निर्भय बनाती है और आखिरत पर पूरा भरोसा दिलाती है। यह अतीत के दंभ का खंडन, वर्तमान के लिए एक आत्म-परीक्षण और भविष्य के लिए सच्ची आस्तिकता की पहचान है।