﴿يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا إِن تُطِيعُوا فَرِيقًا مِّنَ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ يَرُدُّوكُم بَعْدَ إِيمَانِكُمْ كَافِرِينَ﴾
(Surah Aal-e-Imran, Ayat 100)
अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning):
- يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا (Yaa ayyuhal-lazeena aamanu): ऐ ईमान वालों! 
- إِن (In): यदि। 
- تُطِيعُوا (Tuti'oo): तुम आज्ञा मानोगे / कहना मानोगे। 
- فَرِيقًا (Fareeqan): एक गिरोह / एक समूह। 
- مِّنَ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ (Minal-lazeena ootul-Kitaaba): उन लोगों में से जिन्हें किताब दी गई थी (यहूदी/ईसाई)। 
- يَرُدُّوكُم (Yaruddookum): वे पलटा/लौटा देंगे तुम्हें। 
- بَعْدَ إِيمَانِكُمْ (Ba'da eemanikum): तुम्हारे ईमान के बाद। 
- كَافِرِينَ (Kaafireen): काफिर बनाकर / ईमान से विमुख करके। 
पूरी तफ्सीर (व्याख्या) और अर्थ (Full Explanation):
इस आयत का पूरा अर्थ है: "ऐ ईमान वालो! अगर तुमने उन लोगों में से किसी गिरोह की बात मानी, जिन्हें किताब दी गई थी, तो वे तुम्हें तुम्हारे ईमान के बाद (फिर से) काफिर बना देंगे।"
यह आयत अब सीधे तौर पर मुसलमानों को संबोधित करती है। पिछली आयतों (98-99) में अहले-किताब के बुरे इरादों और हरकतों को उजागर किया गया था। अब अल्लाह तआला ईमान वालों को सावधान कर रहे हैं कि उनके इन दुश्मनाना प्रयासों से सावधान रहें।
- "ऐ ईमान वालो!": यह संबोधन प्यार और चिंता से भरा हुआ है। अल्लाह अपने बंदों को एक खतरे से आगाह कर रहे हैं, जैसे कोई पिता अपने बच्चों को किसी खतरे से बचाने के लिए चेतावनी देता है। 
- "अगर तुमने किसी गिरोह की बात मानी": यहाँ "गिरोह" शब्द का इस्तेमाल हुआ है, न कि पूरे समुदाय के लिए। इससे पता चलता है कि सभी यहूदी या ईसाई एक जैसे नहीं थे, बल्कि उनमें एक विशेष समूह (उनके नेता और विद्वान) ही ऐसी साजिशें रच रहे थे। 
- "वे तुम्हें तुम्हारे ईमान के बाद काफिर बना देंगे": यह इस आयत की मुख्य चेतावनी है। इसके दो मुख्य अर्थ हैं: - सीधा कुफ्र: वे तुम्हें फिर से मूर्तिपूजा या पिछले गुमराह धर्मों में लौटाने की कोशिश करेंगे। 
- घातक संदेह: वे तुम्हारे दिल और दिमाग में कुरआन, पैग़म्बर ﷺ और इस्लाम के बारे में ऐसे संदेह (शक-शुबहात) पैदा करेंगे जिससे तुम्हारा ईमान कमजोर हो जाए और अंततः तुम ईमान ही खो दो। यह तरीका सीधे इनकार से भी ज्यादा खतरनाक है। 
 
इस आयत का यह मतलब कतई नहीं है कि ईमान वाला आसानी से काफिर हो सकता है, बल्कि इसका मतलब यह है कि दुश्मनों के बहकावे और संदेहों में आने का नतीजा यही होगा कि इंसान धीरे-धीरे ईमान से खिसकता चला जाएगा।
सबक और शिक्षा (Lesson and Guidance):
- दुश्मन के षड्यंत्र से सावधान रहो: ईमान लाने के बाद भी इंसान को चैन से नहीं बैठ जाना चाहिए। उसे हमेशा उन ताकतों से सजग रहना चाहिए जो उसे उसके धर्म से भटकाना चाहती हैं। 
- अंधानुकरण (Blind Following) से बचो: आयत सिखाती है कि हर किसी की बात बिना सोचे-समझे नहीं मान लेनी चाहिए, खासकर उनकी जो तुम्हारे धर्म के विरोधी हैं। 
- ज्ञान की शक्ति: दुश्मन का सबसे बड़ा हथियार संदेह (शक) है और इसका एकमात्र इलाज ज्ञान (इल्म) है। मुसलमानों को अपने धर्म की पक्की समझ होनी चाहिए ताकि कोई उन्हें बहका न सके। 
- सही सोहबत (संगत): इंसान पर उसकी संगत का गहरा असर होता है। बुरी संगत इंसान के ईमान के लिए खतरा बन सकती है। 
अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):
- अतीत (Past) में: यह आयत मदीना के नए मुसलमानों के लिए एक जरूरी चेतावनी थी। वहाँ कुछ यहूदी नेता नए-नए मुसलमानों को धार्मिक बहसों में उलझाकर और झूठे सवाल उठाकर उनके ईमान में संदेह पैदा करने की कोशिश कर रहे थे। यह आयत मुसलमानों को उनकी चालों से आगाह करती थी। 
- वर्तमान (Present) में: आज के दौर में यह आयत अत्यधिक प्रासंगिक है: - आधुनिक संदेह (Modern Propaganda): आज इंटरनेट और सोशल मीडिया के जरिए इस्लाम और मुसलमानों के खिलाफ झूठ और संदेह फैलाने का काम बड़े पैमाने पर हो रहा है। यह आयत हर मुसलमान को सचेत करती है कि वह इन प्रोपेगैंडा और शक-शुबहों का शिकार न बने। 
- धर्मांतरण के प्रयास: कुछ संगठन लोगों को इस्लाम से दूर करने के लिए आर्थिक लालच या दबाव का इस्तेमाल करते हैं। यह आयत उन सभी प्रयासों को "ईमान के बाद काफिर बनाने" की कोशिश ही बताती है। 
- वैचारिक हमला (Ideological Attack): सेक्युलरिज्म (धर्मनिरपेक्षतावाद) और भौतिकवाद के नाम पर लोगों के दिलों से ईमान निकालने की कोशिशें इस आयत में बताई गई चेतावनी का ही एक आधुनिक रूप हैं। 
 
- भविष्य (Future) के लिए: जब तक दुनिया में ईमान और कुफ्र का संघर्ष जारी रहेगा, यह आयत मुसलमानों के लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत बनी रहेगी। यह हमेशा यह याद दिलाती रहेगी कि: - ईमान की रक्षा करना भी उतना ही जरूरी है जितना कि ईमान लाना। 
- दुश्मन के हर बहकावे और हर प्रकार के प्रोपेगैंडा से सजग रहना होगा। 
- अपने धर्म की मजबूत समझ (इल्म) ही ईमान को टिकाए रखने की सबसे बड़ी ताकत है।