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कुरआन की आयत 3:99 की पूरी व्याख्या

﴿قُلْ يَا أَهْلَ الْكِتَابِ لِمَ تَصُدُّونَ عَن سَبِيلِ اللَّهِ مَنْ آمَنَ تَبْغُونَهَا عِوَجًا وَأَنتُمْ شُهَدَاءُ ۗ وَمَا اللَّهُ بِغَافِلٍ عَمَّا تَعْمَلُونَ﴾

(Surah Aal-e-Imran, Ayat 99)


अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning):

  • قُلْ (Qul): (आप) कह दीजिए।

  • يَا أَهْلَ الْكِتَابِ (Yaa Ahlal-Kitaab): ऐ अहले-किताब!

  • لِمَ (Lima): क्यों?

  • تَصُدُّونَ (Tasuddoon): तुम रोकते हो।

  • عَن سَبِيلِ اللَّهِ (An Sabeelillah): अल्लाह के मार्ग से।

  • مَنْ آمَنَ (Man Aamana): उसको जो ईमान लाया।

  • تَبْغُونَهَا (Tabghoonaha): तुम चाहते हो उसे (सच्चाई को)।

  • عِوَجًا (Iwajan): टेढ़ा, विकृत।

  • وَأَنتُمْ شُهَدَاءُ (Wa antum shuhadaa): और (खुद) तुम गवाह हो।

  • وَمَا اللَّهُ بِغَافِلٍ (Wa mallaahu bi-ghaafilin): और अल्लाह बेखबर नहीं है।

  • عَمَّا تَعْمَلُونَ (Amma ta'maloon): उससे जो तुम करते हो।


पूरी तफ्सीर (व्याख्या) और अर्थ (Full Explanation):

इस आयत का पूरा अर्थ है: "आप कह दें: 'ऐ अहले-किताब! तुम उसे, जो ईमान लाया है, अल्लाह के मार्ग से क्यों रोकते हो, जबकि तुम (खुद भी उसकी सच्चाई के) गवाह हो? तुम (सच्चाई को) टेढ़ा करना चाहते हो। और अल्लाह उससे जो तुम कर रहे हो, बिल्कुल बेखबर नहीं है।'"

यह आयत पिछली आयत (3:98) के तर्क को और आगे बढ़ाती है। पहले उनके व्यक्तिगत इनकार पर सवाल उठाया गया था, अब उनकी सक्रिय रूप से दूसरों को गुमराह करने की हरकत पर चोट की जा रही है।

  1. "अल्लाह के मार्ग से क्यों रोकते हो?": यहाँ "रोकने" के कई मायने हैं:

    • प्रचार द्वारा: झूठा प्रचार करके और इस्लाम के बारे में गलतफहमियाँ फैलाकर।

    • डरा-धमकाकर: नए मुसलमानों को सामाजिक या आर्थिक दबाव डालकर डराना।

    • भ्रम पैदा करके: जानबूझकर धार्मिक बहसों में उलझाकर और सच्चाई को जटिल बनाकर।

  2. "जबकि तुम खुद गवाह हो": यह इस आयत की सबसे मजबूत दलील है। अहले-किताब (यहूदी और ईसाई) अपनी किताबों (तौरात और इंजील) से अच्छी तरह वाकिफ थे। उनकी उन्हीं किताबों में हज़रत मुहम्मद ﷺ के आने की भविष्यवाणी और उनके गुणों का स्पष्ट वर्णन था। इसलिए, वे जानते थे कि यही सच्चा मार्ग है, फिर भी वे लोगों को इससे रोक रहे थे। यह उनकी जानबूझकर की गई गलती (दुराग्रह) को दर्शाता है।

  3. "तुम सच्चाई को टेढ़ा करना चाहते हो": यह उनके इरादे को उजागर करता है। उनकी कोशिश यह नहीं थी कि सच्चाई को ढूंढा जाए, बल्कि यह थी कि सच्चाई को ही अपनी मनमानी के अनुसान मोड़ दिया जाए ताकि वह उनकी दुनियावी इच्छाओं और नेतृत्व को बनाए रखने के अनुकूल हो सके।

  4. "और अल्लाह तुम्हारे कर्मों से बेखबर नहीं है": यह पिछली आयत के "अल्लाह गवाह है" वाले वाक्य का ही विस्तार है। यह एक स्पष्ट चेतावनी है कि तुम्हारी यह साजिश, यह षडयंत्र अल्लाह की नजरों से छिपा हुआ नहीं है। उसका हिसाब-किताब तैयार है।


सबक और शिक्षा (Lesson and Guidance):

  • जिम्मेदारी का बोध: ज्ञान रखने वालों की यह जिम्मेदारी है कि वे दूसरों को सच्चाई तक पहुँचने से रोकें नहीं, बल्कि उनकी मदद करें। जानबूझकर सच्चाई को छुपाना सबसे बड़े पापों में से एक है।

  • ईमान की रक्षा: मुसलमानों को सीख मिलती है कि ईमान लाने के बाद भी इसे बचाए रखना एक संघर्ष है। बाहरी लोगों के प्रभावों और हमलों से अपने ईमान की रक्षा करनी होगी।

  • दुराग्रह (हठ) की बुराई: आयत स्पष्ट करती है कि सच्चाई को जान लेने के बाद भी दुनियावी लाभ, प्रतिष्ठा या जातिगत अहंकार के कारण उसे न मानना एक गंभीर अपराध है।


अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):

  • अतीत (Past) में: यह आयत मदीना के उन यहूदी नेताओं और विद्वानों के लिए एक सीधी चुनौती और पर्दाफ़ाश थी, जो नए-नए मुसलमान हो रहे लोगों को डरा-धमकाकर या गलत जानकारी देकर इस्लाम से दूर करने की कोशिश कर रहे थे, भले ही वे खुद अपनी किताबों से इसकी सच्चाई जानते थे।

  • वर्तमान (Present) में: आज के दौर में यह आयत बेहद प्रासंगिक है:

    • इस्लामोफोबिया (इस्लाम के प्रति डर): आज भी कुछ लोग और ताकतें, जो इस्लाम के बारे में जानते हैं, फिर भी जानबूझकर गलत सूचनाएँ फैलाकर (Fake News) लोगों को इस्लाम को समझने और अपनाने से रोकते हैं।

    • धर्मांतरण विरोधी अभियान: कई जगहों पर, लोगों को अपनी मर्जी से किसी धर्म को अपनाने से रोका जाता है, जो कि इस आयत में बताई गई "रोक" का एक आधुनिक रूप है।

    • वैचारिक पूर्वाग्रह: आज भी लोग सच्चाई को तब तक नहीं स्वीकार करते जब तक कि वह उनकी राजनीतिक विचारधारा या सामाजिक मान्यताओं से मेल नहीं खाती। वे सच को "टेढ़ा" करके ही देखते हैं।

  • भविष्य (Future) के लिए: यह आयत हमेशा एक चेतावनी के रूप में रहेगी कि सच्चाई को दबाने या रोकने की कोशिशें हमेशा विफल होती हैं, क्योंकि अल्लाह उन सबको देख रहा है। यह हर उस व्यक्ति के लिए एक सबक है जो दूसरों को सच्चाई तक पहुँचने से रोकने का दुष्प्रयास करता है।