﴿يَوْمَ تَبْيَضُّ وُجُوهٌ وَتَسْوَدُّ وُجُوهٌ ۚ فَأَمَّا الَّذِينَ اسْوَدَّتْ وُجُوهُهُمْ أَكَفَرْتُم بَعْدَ إِيمَانِكُمْ فَذُوقُوا الْعَذَابَ بِمَا كُنتُمْ تَكْفُرُونَ﴾
(Surah Aal-e-Imran, Ayat 106)
अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning):
يَوْمَ (Yauma): उस दिन (कयामत के दिन)।
تَبْيَضُّ (Tabyazzu): चमक उठेंगे, उज्ज्वल हो जाएँगे।
وُجُوهٌ (Wujoohun): चेहरे।
وَتَسْوَدُّ (Wa taswaddu): और काली/स्याह हो जाएँगी।
وُجُوهٌ (Wujoohun): चेहरे।
فَأَمَّا (Fa amma): तो जिन (लोगों) के।
الَّذِينَ اسْوَدَّتْ وُجُوهُهُمْ (Allazeena swaddat wujoohuhum): जिनके चेहरे काले हो गए।
أَكَفَرْتُم (A-kafartum): क्या तुमने इनकार किया?
بَعْدَ إِيمَانِكُمْ (Ba'da eemanikum): अपने ईमान के बाद।
فَذُوقُوا (Fa dhooqoo): तो चखो।
الْعَذَابَ (Al-azaaba): यातना (सज़ा) को।
بِمَا كُنتُمْ تَكْفُرُونَ (Bimaa kuntum takfuroon): उस (कुफ्र) के कारण जो तुम करते थे।
पूरी तफ्सीर (व्याख्या) और अर्थ (Full Explanation):
इस आयत का पूरा अर्थ है: "जिस दिन कुछ चेहरे चमक उठेंगे और कुछ चेहरे काले हो जाएँगे। फिर जिन लोगों के चेहरे काले हुए, (उनसे कहा जाएगा) क्या तुमने अपने ईमान लाने के बाद इनकार किया? तो जो यातना तुम इनकार करने के कारण भोगते थे, उसे (अब) चखो।"
यह आयत कयामत के दिन के एक भयावह और दृश्यमान दृश्य का वर्णन करती है। यह पिछली आयतों में दी गई चेतावनियों (फूट, बिखराव और अवज्ञा) का अंतिम परिणाम दिखाती है।
1. "जिस दिन कुछ चेहरे चमक उठेंगे और कुछ चेहरे काले हो जाएँगे":
यह कयामत के दिन लोगों की आंतरिक स्थिति का बाहरी प्रतीक है।
चमकते हुए चेहरे: यह ईमान, तक्वा (अल्लाह का भय) और अच्छे अमलों की सफलता का प्रतीक है। ये चेहरे खुशी, रौनक और उम्मीद से चमक रहे होंगे क्योंकि उन्हें जन्नत का शुभ समाचार मिलेगा।
काले पड़े हुए चेहरे: यह कुफ्र, गुनाह और निराशा का प्रतीक है। यह डर, शर्मिंदगी और हताशा से उपजी कालिख है। ये चेहरे जहन्नुम की घोषणा सुनकर कालिख की तरह काले पड़ जाएँगे।
2. "क्या तुमने अपने ईमान के बाद इनकार किया?":
यह एक तल्ख और डरावना सवाल होगा। यह उन लोगों से पूछा जाएगा जिन्होंने जीवन में कभी ईमान को जाना-समझा, लेकिन फिर उसे छोड़ दिया या उसके साथ विश्वासघात किया।
इसके दायरे में वे लोग आते हैं जो:
पहले मुसलमान थे लेकिन बाद में मurtad (धर्मत्यागी) हो गए।
वे जो ऊपरी तौर पर तो मुसलमान थे लेकिन उनके कर्म काफिरों जैसे थे (जैसे जानबूझकर अल्लाह के हुक्मों को तोड़ना)।
वे जिन्होंने ईमान लाने का दावा तो किया लेकिन फूट और गुनाह में पड़कर अपने ईमान को कमजोर कर दिया।
3. "तो उस यातना को चखो, जो तुम्हारे इनकार के कारण है":
यह कोई साधारण सजा नहीं होगी। यह वही यातना है जिससे वे दुनिया में चेतावनी पाते रहे थे।
"चखो" शब्द का इस्तेमाल इस बात को दर्शाता है कि सजा का स्वाद उन्हें वास्तव में और पूरी तरह से महसूस होगा। यह एक दर्दनाक वास्तविकता होगी।
सबक और शिक्षा (Lesson and Guidance):
अंतिम परिणाम को याद रखो: हर इंसान को अपने हर कर्म के लिए एक दिन जवाबदेह होना है। यह आयत उस अंतिम दिन की एक झलक दिखाकर हमें सचेत करती है।
ईमान की हिफाजत जरूरी है: सिर्फ ईमान लाना ही काफी नहीं है, बल्कि उसे अपनी आखिरी सांस तक बचाए रखना है। ईमान के बाद किया गया इनकार सबसे बड़ी विफलता है।
कर्म ही फल देते हैं: कयामत के दिन चेहरों का उजला या काला होना कोई मनमानी बात नहीं होगी। यह सीधे तौर पर इंसान के अपने कर्मों, उसके ईमान और उसके इनकार का नतीजा होगा।
अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):
अतीत (Past) में: यह आयत मक्का के उन नए मुसलमानों के लिए एक सांत्वना और शक्ति का स्रोत थी जिन पर कुरैश के लोगों ने ईमान छोड़ने के लिए जुल्म ढहाए। यह आयत उन्हें दृढ़ रहने की प्रेरणा देती थी कि अंत में चमकने वाले चेहरे तुम्हारे होंगे। साथ ही, यह उन लोगों के लिए एक चेतावनी थी जो ईमान लाने के बाद दबाव में आकर उसे छोड़ रहे थे।
वर्तमान (Present) में: आज के दौर में यह आयत बेहद प्रासंगिक है:
आस्था का संकट: आज कई लोग, खासकर युवा, धर्मनिरपेक्षता और भौतिकवाद के प्रभाव में आकर अपने ईमान से दूर हो रहे हैं। यह आयत उन्हें उस भयानक परिणाम की याद दिलाती है।
औपचारिक ईमान का खतरा: बहुत से लोग मुसलमान घर में पैदा होने को ही काफी समझते हैं, जबकि उनके कर्म और विश्वास ईमान के अनुकूल नहीं होते। यह आयत उन्हें चेतावनी देती है कि सिर्फ दावा काफी नहीं है।
नैतिक मार्गदर्शन: यह आयत हर मुसलमान को यह याद दिलाती है कि उसका अंतिम लक्ष्य कयामत के दिन एक चमकता हुआ चेहरा पाना है। यह लक्ष्य उसे गुनाह और गुमराही से बचाता है।
भविष्य (Future) के लिए: यह आयत कयामत तक सभी मनुष्यों के लिए एक स्थायी चेतावनी और मार्गदर्शन बनी रहेगी। यह हमेशा यह याद दिलाती रहेगी कि:
हर कर्म का लेखा-जोखा है।
असली सफलता कयामत के दिन के चमकते चेहरे हैं।
ईमान के साथ विश्वासघात सबसे बड़ी हानि है।
यह आयत हर इंसान से यह सवाल करती है: "तुम्हारा चेहरा किस श्रेणी में होगा?"