﴿وَلِلَّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ ۚ وَإِلَى اللَّهِ تُرْجَعُ الْأُمُورُ﴾
(Surah Aal-e-Imran, Ayat 109)
अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning):
وَلِلَّهِ (Wa Lillahi): और अल्लाह ही का है।
مَا فِي السَّمَاوَاتِ (Maa fis-samaawaati): जो कुछ आकाशों में है।
وَمَا فِي الْأَرْضِ (Wa maa fil-ardi): और जो कुछ धरती में है।
وَإِلَى اللَّهِ (Wa Ilallaahi): और अल्लाह ही की ओर।
تُرْجَعُ الْأُمُورُ (Turja'ul-umoor): सारे मामले लौटाए जाएँगे (पलटेंगे)।
पूरी तफ्सीर (व्याख्या) और अर्थ (Full Explanation):
इस आयत का पूरा अर्थ है: "और आकाशों और धरती में जो कुछ है, वह सब अल्लाह ही का है। और सारे मामले (अंततः) अल्लाह ही की ओर लौटाए जाएँगे।"
यह आयत पिछली आयतों के गहन और भावनात्मक विषयों (कयामत, जन्नत, जहन्नुम और न्याय) के बाद एक मौलिक और शक्तिशाली सत्य की घोषणा करती है। यह एक तरह से पूरे चर्चा का सारांश और आधार प्रस्तुत करती है।
1. "आकाशों और धरती में जो कुछ है, वह सब अल्लाह ही का है":
सर्वोच्च स्वामित्व (Ultimate Ownership): यह बात हमें बताती है कि इस पूरे ब्रह्मांड का मालिक केवल अल्लाह है। सारे ग्रह, तारे, पहाड़, नदियाँ, जीव-जंतु, इंसान, धन-दौलत, सत्ता और शक्ति – सब कुछ उसी की संपत्ति है।
हुकूमत का असली मालिक: कोई भी राजा, सरकार या ताकत इस दुनिया की असली मालिक नहीं है। वे सब अल्लाह के अधीन हैं और उसी के बनाए हुए नियमों पर चल रहे हैं।
2. "और सारे मामले अल्लाह ही की ओर लौटाए जाएँगे":
अंतिम लौटना (Final Return): इस दुनिया का हर छोटा-बड़ा मामला, हर विवाद, हर न्याय-अन्याय का फैसला आखिरकार अल्लाह के पास ही जाकर होगा। कयामत के दिन हर इंसान, हर समुदाय और हर सभ्यता को अपने कर्मों का हिसाब अल्लाह के सामने देना होगा।
फैसले का अधिकार: चूँकि सब कुछ अल्लाह का है, इसलिए फैसला करने का पूरा अधिकार भी केवल उसी को है। कोई भी इंसान या संस्था अंतिम फैसला नहीं कर सकती।
सबक और शिक्षा (Lesson and Guidance):
विश्वास और आश्वासन: यह आयत मुसलमानों के दिल में यह विश्वास पैदा करती है कि चाहे दुनिया में कितनी भी अराजकता और अन्याय क्यों न हो, आखिरकार सब कुछ उसी के पास लौटकर जाएगा जो पूर्ण न्यायी है। इससे इंसान को धैर्य और सब्र की शक्ति मिलती है।
जिम्मेदारी का एहसास: जब इंसान यह समझ लेता है कि वह अंततः अल्लाह के सामने पेश होगा, तो वह गुनाह और बुराई करने से डरता है और नेकी के काम करने के लिए प्रेरित होता है।
दुनियावी मोह-माया से मुक्ति: यह आयत हमें सिखाती है कि दुनिया और उसकी चीजें असली मालिकाना नहीं हैं, बल्कि एक अमानत हैं। इसलिए इन पर घमंड नहीं करना चाहिए और न ही इनके पीछे पागल होना चाहिए।
अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):
अतीत (Past) में: यह आयत पैगंबर ﷺ और आपके साथियों के लिए एक बहुत बड़ा सहारा थी। जब वे मक्का के काफिरों के जुल्म और ताकत का सामना कर रहे थे, तो यह आयत उन्हें याद दिलाती थी कि असली ताकत और हुकूमत तो अल्लाह की है, और अंत में फैसला भी उसी का होगा। इससे उनका हौसला बढ़ता था।
वर्तमान (Present) में: आज के दौर में यह आयत बेहद प्रासंगिक है:
भौतिकवाद के युग में: आज का इंसान पैसे, सत्ता और विज्ञान को ही सब कुछ मान बैठा है। यह आयत उसे याद दिलाती है कि इन सबका एक मालिक है और एक दिन सब कुछ उसी के सामने पेश होगा।
नैतिक गिरावट: जब लोग यह मानने लगें कि कोई उन्हें देख नहीं रहा और कोई फैसला नहीं होगा, तो वे गुनाह करने से नहीं डरते। यह आयत इसी गलतफहमी को दूर करती है।
अशांति और तनाव: दुनिया में हिंसा, युद्ध और अराजकता देखकर लोग निराश होते हैं। यह आयत उन्हें आश्वस्त करती है कि अंतिम न्याय अवश्य होगा और हर जुल्म का बदला दिया जाएगा।
भविष्य (Future) के लिए: यह आयत कयामत तक आने वाली हर पीढ़ी के लिए एक स्थायी मार्गदर्शक सिद्धांत है। यह हमेशा यह याद दिलाती रहेगी कि:
असली मालिक अल्लाह है।
असली फैसला अल्लाह करेगा।
असली मंजिल आखिरत है।
यह आयत हर मुसलमान के लिए एक दृष्टिकोण (Worldview) बनाने वाली आयत है। यह उसके सोचने, समझने और जीने का तरीका बदल देती है। यह उसे यह एहसास दिलाती है कि वह इस दुनिया में एक जिम्मेदार प्राणी है और उसे एक दिन अपने रब के सामने जवाबदेह होना है।