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कुरआन की आयत 3:115 की पूरी व्याख्या

 

﴿وَمَا يَفْعَلُوا مِنْ خَيْرٍ فَلَن يُكْفَرُوهُ ۗ وَاللَّهُ عَلِيمٌ بِالْمُتَّقِينَ﴾

(Surah Aal-e-Imran, Ayat 115)


अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning):

  • وَمَا يَفْعَلُوا (Wa maa yaf'aloo): और जो (भी) कुछ वे करें।

  • مِنْ خَيْرٍ (Min khairin): भलाई में से।

  • فَلَن يُكْفَرُوهُ (Falan yukfaroohu): तो वह कभी अकारथ (अस्वीकृत) नहीं किया जाएगा।

  • وَاللَّهُ عَلِيمٌ (Wallahu 'Aleemun): और अल्लाह जानने वाला है।

  • بِالْمُتَّقِينَ (Bil-Muttaqeen): डर रखने वालों (मुत्तकीन) के बारे में।


पूरी तफ्सीर (व्याख्या) और अर्थ (Full Explanation):

इस आयत का पूरा अर्थ है: "और वे जो भी भलाई करेंगे, उसे कभी अकारथ (बेकार) नहीं किया जाएगा। और अल्लाह डर रखने वालों (मुत्तकीन) को भली-भाँति जानता है।"

यह आयत पिछली दो आयतों (3:113-114) में वर्णित उस विशेष समूह (अहले-किताब के सच्चे ईमान वालों) के लिए एक शानदार आश्वासन और पुरस्कार की घोषणा है। यह अल्लाह की न्यायप्रियता और उदारता को दर्शाती है।

1. "वे जो भी भलाई करेंगे, उसे कभी अकारथ नहीं किया जाएगा":

  • यह एक सार्वभौमिक सिद्धांत है, लेकिन यहाँ यह विशेष रूप से उन लोगों के लिए है जो सच्चाई को पहचानकर ईमान ले आए।

  • "भलाई" (खैर) का दायरा बहुत व्यापक है। इसमें शामिल है:

    • ईमान लाना: सबसे बड़ी भलाई।

    • इबादत करना: नमाज, रोजा, दुआ आदि।

    • नेक अमल: दान-पुण्य, लोगों की मदद करना, ज्ञान बाँटना।

    • अम्र बिल मारूफ: भलाई का आदेश देना और बुराई से रोकना।

  • "अकारथ नहीं किया जाएगा" का मतलब है कि अल्लाह उनके किसी भी अच्छे काम को बर्बाद, अस्वीकृत या कम नहीं आंकेगा। उन्हें उनकी भलाई का पूरा-पूरा बदला मिलेगा।

2. "और अल्लाह डर रखने वालों को भली-भाँति जानता है":

  • यह वाक्य अल्लाह के गहन ज्ञान को दर्शाता है। अल्लाह सिर्फ बाहरी कर्म ही नहीं देखता, बल्कि:

    • नीयत (इरादा) को जानता है: वह जानता है कि उनका ईमान और अमल कितना सच्चा है।

    • कठिनाइयों को जानता है: वह जानता है कि उन्होंने अपने ही समुदाय में रहकर सच्चाई को अपनाने के लिए कितनी कुर्बानियाँ दीं।

    • तक्वा (अल्लाह का भय) को पहचानता है: वह उनके दिलों में छिपे अल्लाह के डर और उसकी महब्बत को पूरी तरह जानता है।


सबक और शिक्षा (Lesson and Guidance):

  • अल्लाह की दया का विस्तार: अल्लाह की रहमत और न्याय किसी एक समुदाय तक सीमित नहीं है। कोई भी व्यक्ति, किसी भी पृष्ठभूमि से, अगर सच्चे दिल से ईमान लाए और नेकी करे, तो उसका पुरस्कार अल्लाह के यहाँ सुरक्षित है।

  • न्याय का आश्वासन: इंसान को यह विश्वास रखना चाहिए कि उसका कोई भी अच्छा काम, चाहे वह कितना ही छोटा क्यों न हो, बेकार नहीं जाएगा। यह ईमान वालों के लिए एक बहुत बड़ी प्रेरणा है।

  • तक्वा की अहमियत: अल्लाह के यहाँ असली कद्र उस इंसान की है जिसके दिल में तक्वा (उसका भय) है। बाहरी दिखावा नहीं, बल्कि दिल की हालत मायने रखती है।


अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):

  • अतीत (Past) में: यह आयत उन लोगों के लिए एक बहुत बड़ी सांत्वना और प्रोत्साहन थी जो यहूदी या ईसाई समुदाय से आकर इस्लाम अपना रहे थे। उन्हें अपने परिवार और समुदाय से विरोध और कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था। यह आयत उन्हें आश्वस्त करती थी कि उनकी कुर्बानियाँ और उनका ईमान अल्लाह के यहाँ बिल्कुल बर्बाद नहीं जाएगा।

  • वर्तमान (Present) में: आज के दौर में यह आयत बेहद प्रासंगिक है:

    • गैर-मुस्लिमों के लिए संदेश: यह आयत गैर-मुस्लिमों के लिए एक खुला निमंत्रण और आश्वासन है कि अगर वे सच्चाई की तलाश करें और ईमान ले आएँ, तो अल्लाह उनके पिछले सारे अच्छे कामों को क़बूल करेगा और उन्हें पूरा बदला देगा।

    • नव-मुसलमानों के लिए ढाढस: आज भी दुनिया भर में जो लोग इस्लाम कबूल करते हैं, उन्हें कई बार सामाजिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। यह आयत उनके हौसले को बुलंद करती है।

    • सभी मुसलमानों के लिए प्रेरणा: यह आयत हर मुसलमान को यह याद दिलाती है कि उसका हर छोटा-बड़ा नेक अमल अल्लाह के यहाँ दर्ज हो रहा है और उसे उसका पूरा प्रतिफल मिलेगा। यह उन्हें और अधिक नेकी करने के लिए प्रेरित करती है।

  • भविष्य (Future) के लिए: यह आयत कयामत तक सभी मनुष्यों के लिए एक स्थायी आशा और न्याय का सिद्धांत बनी रहेगी। यह हमेशा यह याद दिलाती रहेगी कि:

    • अल्लाह का न्याय पूर्णतः न्यायसंगत है।

    • किसी की मेहनत बेकार नहीं जाएगी।

    • अल्लाह की दृष्टि में इंसान की पृष्ठभूमि नहीं, बल्कि उसका तक्वा और उसके कर्म मायने रखते हैं।

यह आयत हर इंसान के दिल में यह भरोसा पैदा करती है: "ऐ अल्लाह, तू हर नेकी को क़बूल करने वाला और हर इन्साफ करने वाला है।"