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कुरआन की आयत 3:114 की पूरी व्याख्या

 

﴿يُؤْمِنُونَ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ وَيَأْمُرُونَ بِالْمَعْرُوفِ وَيَنْهَوْنَ عَنِ الْمُنكَرِ وَيُسَارِعُونَ فِي الْخَيْرَاتِ وَأُولَٰئِكَ مِنَ الصَّالِحِينَ﴾

(Surah Aal-e-Imran, Ayat 114)


अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning):

  • يُؤْمِنُونَ (Yu'minoon): वे ईमान लाते हैं।

  • بِاللَّهِ (Billahi): अल्लाह पर।

  • وَالْيَوْمِ الْآخِرِ (Wal-Yawmil Aakhiri): और आख़िरत के दिन पर।

  • وَيَأْمُرُونَ بِالْمَعْرُوفِ (Wa yaamuroona bil-Ma'roofi): और अच्छाई का आदेश देते हैं।

  • وَيَنْهَوْنَ عَنِ الْمُنكَرِ (Wa yanhawna 'anil-Munkari): और बुराई से रोकते हैं।

  • وَيُسَارِعُونَ (Wa yusaari'oon): और वे जल्दी करते हैं (तेज़ी दिखाते हैं)।

  • فِي الْخَيْرَاتِ (Fil-Khairaati): भलाइयों की ओर।

  • وَأُولَٰئِكَ (Wa ulaaika): और ऐसे ही लोग।

  • مِنَ الصَّالِحِينَ (Minas-Saaliheen): नेक लोगों में से हैं।


पूरी तफ्सीर (व्याख्या) और अर्थ (Full Explanation):

इस आयत का पूरा अर्थ है: "वे अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान लाते हैं, अच्छाई का आदेश देते हैं और बुराई से रोकते हैं, और भलाइयों में एक-दूसरे से आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं। और ऐसे ही लोग नेक लोगों में से हैं।"

यह आयत पिछली आयत (3:113) में वर्णित उस विशेष समूह (अहले-किताब के सच्चे ईमान वालों) के चरित्र और गुणों का विस्तार से वर्णन करती है। यह बताती है कि उनकी पहचान सिर्फ इबादत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उनके पूरे जीवन और समाज में एक सक्रिय भूमिका है।

इस समूह के पाँच मुख्य गुण:

  1. "वे अल्लाह पर ईमान लाते हैं": यह उनके विश्वास की नींव है। उनका ईमान सिर्फ जुबानी नहीं, बल्कि दिल से है। वे अल्लाह की एकता, उसके गुणों और हुक्मों पर पूरा विश्वास रखते हैं।

  2. "और आख़िरत के दिन पर ईमान लाते हैं": यह ईमान का दूसरा महत्वपूर्ण स्तंभ है। आख़िरत पर ईमान का मतलब है कि वे मानते हैं कि एक दिन हर इंसान को अपने कर्मों का हिसाब देना होगा। यह विश्वास उन्हें दुनिया में जिम्मेदार बनाता है।

  3. "अच्छाई का आदेश देते हैं": वे समाज में नेकी, सच्चाई, न्याय और हर प्रकार के भले काम को फैलाने की कोशिश करते हैं। वे दूसरों को भी अच्छे काम करने के लिए प्रेरित करते हैं।

  4. "बुराई से रोकते हैं": वे समाज में फैली बुराइयों, गुनाह और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाते हैं। वे चुपचाप देखकर नहीं बैठते।

  5. "भलाइयों में एक-दूसरे से आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं": यह उनके जज्बे और उत्साह को दिखाता है।

    • "युसारिऊन" शब्द में जल्दबाजी और प्रतिस्पर्धा का भाव है।

    • वे नेक काम करने में देरी नहीं करते।

    • वे दूसरों से आगे निकलने की कोशिश करते हैं, लेकिन दुनियावी चीजों में नहीं, बल्कि "अल-खैरात" (सभी प्रकार की भलाइयों) में।

परिणाम: "और ऐसे ही लोग नेक लोगों में से हैं":
अल्लाह तआला खुद उनकी तस्दीक करते हुए फरमाता है कि ये वास्तव में सालेह (नेक और ईमानदार) लोग हैं। यह अल्लाह की तरफ से उनके लिए सबसे बड़ी प्रशंसा है।


सबक और शिक्षा (Lesson and Guidance):

  • एक संपूर्ण मुसलमान का चरित्र: यह आयत हर मुसलमान के लिए एक आदर्श चरित्र चित्रण (Blueprint) पेश करती है। सच्चा ईमान सिर्फ नमाज-रोजे तक सीमित नहीं, बल्कि एक सक्रिय सामाजिक भूमिका की माँग करता है।

  • प्रतिस्पर्धा का सही क्षेत्र: मुसलमानों को दुनिया की दौड़ में नहीं, बल्कि नेकी के कामों में आगे बढ़ने की प्रतिस्पर्धा करनी चाहिए।

  • अम्र बिल मारूफ का महत्व: समाज का निर्माण और सुधार हर मोमिन की जिम्मेदारी है। चुप रहकर बुराई को देखना ईमान की कमजोरी है।


अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):

  • अतीत (Past) में: यह आयत उन अहले-किताब के लिए एक श्रद्धांजलि थी जिन्होंने सच्चाई स्वीकार की, जैसे अब्दुल्लाह बिन सलाम (रज़ि.)। साथ ही, यह मदीना के नए मुस्लिम समाज के लिए एक मार्गदर्शक थी कि एक आदर्श इस्लामी समुदाय के गुण क्या होने चाहिए।

  • वर्तमान (Present) में: आज के दौर में यह आयत बेहद प्रासंगिक है:

    • सक्रिय नागरिक का दायित्व: आज समाज में भ्रष्टाचार, अनैतिकता और जुल्म बढ़ रहे हैं। यह आयत हर मुसलमान से कहती है कि वह इसके खिलाफ आवाज उठाए और भलाई को बढ़ावा दे।

    • नेकी की दौड़: आज का माहौल भौतिकवाद और स्वार्थ की दौड़ का है। यह आयत हमें याद दिलाती है कि हमारी दौड़ दान, इबादत, ज्ञान और समाज-सेवा में आगे बढ़ने की होनी चाहिए।

    • व्यावहारिक इस्लाम: बहुत से लोग ईमान को सिर्फ एक निजी मामला मानते हैं। यह आयत स्पष्ट करती है कि ईमान का सीधा संबंध समाज से है और एक मुसलमान का समाज में एक सकारात्मक और सक्रिय भूमिका होनी चाहिए।

  • भविष्य (Future) के लिए: यह आयत कयामत तक मानवता के लिए एक स्थायी आदर्श बनी रहेगी। यह हमेशा यह याद दिलाती रहेगी कि:

    • सच्ची सफलता अल्लाह और आखिरत पर ईमान और नेक अमल में है।

    • एक आदर्श समाज का निर्माण तभी हो सकता है जब उसके लोग अच्छाई का आदेश दें और बुराई से रोकें।

    • मानवता की प्रगति का असली पैमाना भौतिक विकास नहीं, बल्कि नैतिक और आध्यात्मिक उन्नति है।

यह आयत हर इंसान से एक वादा लेती है: "क्या तुम उन लोगों में शामिल होगे जो भलाइयों में आगे बढ़ने की दौड़ लगाते हैं?"