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कुरआन की आयत 3:146 की पूरी व्याख्या

 पूर्ण आयत (अरबी में):

وَكَأَيِّن مِّن نَّبِيٍّ قَاتَلَ مَعَهُ رِبِّيُّونَ كَثِيرٌ فَمَا وَهَنُوا لِمَا أَصَابَهُمْ فِي سَبِيلِ اللَّهِ وَمَا ضَعُفُوا وَمَا اسْتَكَانُوا ۗ وَاللَّهُ يُحِبُّ الصَّابِرِينَ

अरबी शब्दों के अर्थ:

  • وَكَأَيِّن مِّن نَّبِيٍّ: और कितने ही नबियों ने

  • قَاتَلَ مَعَهُ رِبِّيُّونَ كَثِيرٌ: उनके साथ बहुत से नेक लोग लड़े

  • فَمَا وَهَنُوا: तो उन्होंने हिम्मत नहीं हारी

  • لِمَا أَصَابَهُمْ فِي سَبِيلِ اللَّهِ: अल्लाह की राह में जो कुछ उन्हें पहुंचा

  • وَمَا ضَعُفُوا: और वे कमजोर नहीं पड़े

  • وَمَا اسْتَكَانُوا: और वे झुके नहीं

  • وَاللَّهُ يُحِبُّ الصَّابِرِينَ: और अल्लाह सब्र करने वालों से प्यार करता है

आयत का पूर्ण और विस्तृत विवरण:

यह आयत उहुद की लड़ाई के संदर्भ में उतरी, जहाँ मुसलमानों को कठिनाइयों और चुनौतियों का सामना करना पड़ा। आयत पिछले नबियों और उनके साथियों के संघर्षों का उदाहरण देती है, जिन्होंने अल्लाह की राह में कठिनाइयों का सामना किया लेकिन हिम्मत नहीं हारी।

मुख्य बिंदुओं की व्याख्या:

  1. पिछले नबियों का इतिहास:

    • अल्लाह बताते हैं कि पहले भी नबियों को संघर्ष करना पड़ा

    • हर नबी के साथ ईमान वाले लड़ते रहे हैं

    • यह संघर्ष की परंपरा रही है

  2. तीन महत्वपूर्ण गुण:

    • वहन न करना (हिम्मत न हारना): मुसीबतों के सामने घुटने न टेकना

    • दुर्बल न होना (कमजोर न पड़ना): शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत रहना

    • झुकना नहीं (आत्मसमर्पण न करना): दबाव में आकर सिद्धांतों से समझौता न करना

  3. अल्लाह का प्यार:

    • सब्र करने वालों के लिए अल्लाह का विशेष प्यार

    • सब्र सिर्फ धैर्य नहीं, बल्कि सक्रिय संघर्ष है

गहरी शिक्षाएं और सबक:

1. ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:

  • संघर्ष इस्लामी दावत का अटूट हिस्सा रहा है

  • सफलता तुरंत नहीं मिलती, संघर्ष जरूरी है

  • पिछले अनुभवों से सीखना चाहिए

2. व्यक्तिगत विकास:

  • मुसीबतों में धैर्य बनाए रखना

  • आंतरिक शक्ति को मजबूत करना

  • नैतिक साहस विकसित करना

अतीत के साथ प्रासंगिकता:

उहुद की लड़ाई में मुसलमानों को शुरुआती सफलता के बाद अस्थायी हार का सामना करना पड़ा। कुछ लोग हताश हो गए, लेकिन इस आयत ने उन्हें पिछले नबियों और उनके अनुयायियों के संघर्षों की याद दिलाकर हिम्मत दी।

वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता:

समकालीन दृष्टिकोण:

1. वर्तमान चुनौतियां:

  • धार्मिक पहचान का संकट: मुसलमानों को दुनिया भर में चुनौतियों का सामना

  • मीडिया और सामाजिक दबाव: इस्लाम के खिलाफ प्रचार का सामना

  • आर्थिक और शैक्षिक पिछड़ापन: समुदाय की विकास चुनौतियां

2. व्यक्तिगत जीवन में अनुप्रयोग:

  • करियर में असफलताएं: नौकरी या व्यवसाय में मुश्किलों का सामना

  • पारिवारिक समस्याएं: रिश्तों में कठिनाइयां

  • स्वास्थ्य संकट: बीमारी या आर्थिक तंगी

3. सामुदायिक विकास:

  • शैक्षिक पिछड़ेपन से लड़ना: शिक्षा में आगे बढ़ना

  • आर्थिक स्वावलंबन: आत्मनिर्भरता की ओर कदम

  • सामाजिक भागीदारी: समाज में सकारात्मक योगदान

भविष्य के लिए मार्गदर्शन:

1. युवा पीढ़ी के लिए:

  • डिजिटल युग में इस्लामी पहचना बनाए रखना

  • ग्लोबलाइजेशन के दौर में धार्मिक मूल्यों पर टिके रहना

  • पेशेवर जीवन में ईमानदारी बनाए रखना

2. समुदाय के लिए:

  • शैक्षिक उन्नति के लिए सामूहिक प्रयास

  • आर्थिक विकास के नए रास्ते खोजना

  • सामाजिक एकजुटता को मजबूत करना

3. वैश्विक संदर्भ:

  • अंतरधार्मिक संवाद को बढ़ावा

  • शांति और सद्भाव का संदेश फैलाना

  • मानवता की सेवा को प्राथमिकता देना

व्यावहारिक सुझाव:

  1. नियमित ईबादत: सब्र की ताकत के लिए नमाज और दुआ

  2. ज्ञान अर्जन: धार्मिक और दुनियावी ज्ञान दोनों प्राप्त करें

  3. सामाजिक सेवा: समुदाय की बेहतरी के लिए काम करें

  4. आर्थिक प्रगति: हलाल रोजगार और व्यवसाय को बढ़ावा

  5. मानसिक मजबूती: प्रतिकूल परिस्थितियों में स्थिर रहना सीखें

सारांश:

यह आयत हमें सिखाती है कि अल्लाह की राह में संघर्ष और कठिनाइयां स्वाभाविक हैं। पिछले नबियों और उनके अनुयायियों ने भी इनका सामना किया और वे हिम्मत नहीं हारे। आज के दौर में भी हमें चुनौतियों का सामना सब्र और दृढ़ता से करना चाहिए। अल्लाह सब्र करने वालों से प्यार करता है और उन्हें सफलता जरूर देता है। हमें अपने व्यक्तिगत, सामाजिक और धार्मिक जीवन में इस शिक्षा को लागू करना चाहिए।