Read Quran translation in Hindi with verse-by-verse meaning and time-relevant explanations for deeper understanding.

कुरआन की आयत 3:152 की पूरी व्याख्या

 

1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)

وَلَقَدْ صَدَقَكُمُ اللَّهُ وَعْدَهُ إِذْ تَحُسُّونَهُمْ بِإِذْنِهِ ۖ حَتَّىٰ إِذَا فَشِلْتُمْ وَتَنَازَعْتُمْ فِي الْأَمْرِ وَعَصَيْتُمْ مِنْ بَعْدِ مَا أَرَاكُمْ مَا تُحِبُّونَ ۚ مِنْكُمْ مَنْ يُرِيدُ الدُّنْيَا وَمِنْكُمْ مَنْ يُرِيدُ الْآخِرَةَ ۚ ثُمَّ صَرَفَكُمْ عَنْهُمْ لِيَبْتَلِيَكُمْ ۖ وَلَقَدْ عَفَا عَنْكُمْ ۗ وَاللَّهُ ذُو فَضْلٍ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ

2. आयत का शाब्दिक अर्थ (Word-to-Word Meaning)

  • وَلَقَدْ صَدَقَكُمُ اللَّهُ وَعْدَهُ : और निश्चय ही अल्लाह ने अपना वादा तुम्हें सच्चा कर दिखाया

  • إِذْ تَحُसُّونَهُمْ بِإِذْنِهِ : जब तुम उन्हें (दुश्मनों को) उसकी मर्जी से काट रहे थे

  • حَتَّىٰ إِذَا فَشِلْتُمْ : यहाँ तक कि जब तुम हिम्मत हार गए

  • وَتَنَازَعْtُمْ فِي الْأَمْرِ : और मामले में आपस में झगड़ पड़े

  • وَعَصَيْتُمْ : और अवज्ञा की (नाफ़रमानी की)

  • مِنْ بَعْdِ مَا أَرَاكُمْ مَا تُحِبُّونَ : इसके बाद कि उसने तुम्हें वह (जीत) दिखा दी जिससे तुम प्यार करते थे

  • مِنْكُمْ مَنْ يُرِيدُ الدُّنْيَا : तुम में से कुछ वो थे जो दुनिया चाहते थे

  • وَمِنْكُمْ مَنْ يُرِيدُ الْآخِرَةَ : और तुम में से कुछ वो थे जो आखिरत चाहते थे

  • ثُمَّ صَرَفَكُمْ عَنْهُمْ لِيَبْtَلِيَكُمْ : फिर उसने तुम्हें उनसे (जीत से) मोड़ दिया ताकि तुम्हारी परीक्षा ले

  • وَلَقَدْ عَفَا عَنْكُمْ : और निश्चय ही उसने तुम्हें माफ़ कर दिया

  • وَاللَّهُ ذُو فَضْلٍ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ : और अल्लाह ईमान वालों पर बड़ा एहसान करने वाला है

3. सरल अर्थ (Simple Meaning in Hindi)

"और निश्चय ही अल्लाह ने तुमसे अपना वादा पूरा किया, जब तुम उसकी मर्जी से दुश्मनों को काट रहे थे। यहाँ तक कि जब तुम हिम्मत हार गए और आपस में झगड़ पड़े और उस आदेश की अवज्ञा की, उसके बाद कि उसने तुम्हें वह (जीत) दिखा दी जिससे तुम प्यार करते थे। तुम में से कुछ दुनिया चाहते थे और तुम में से कुछ आखिरत चाहते थे। फिर उसने तुम्हें उनसे (जीत से) मोड़ दिया ताकि तुम्हारी परीक्षा ले। और निश्चय ही उसने तुम्हें माफ कर दिया। और अल्लाह ईमान वालों पर बड़ा एहसान करने वाला है।"


4. आयत की पृष्ठभूमि और सन्दर्भ (Context)

यह आयत उहुद की लड़ाई के उस महत्वपूर्ण पल का वर्णन करती है जब मुसलमानों को शुरू में जीत मिल रही थी। कुछ धनुर्धरों ने पैगंबर के आदेश की अवज्ञा करके अपनी जिम्मेदारी छोड़ दी, जिससे मुसलमानों की कमर टूट गई और उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ा। यह आयत उस घटना का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करती है।


5. आयत से सीख (Lesson from the Verse)

यह आयत कई गहन शिक्षाएं प्रदान करती है:

  1. अनुशासन का महत्व: एकता और अनुशासन सफलता की कुंजी है। आपसी फूट और आदेश की अवज्ञा निश्चित हार की ओर ले जाती है।

  2. इरादों की शुद्धता: हर कार्य के पीछे इरादा महत्वपूर्ण है। कुछ लोग दुनियावी लालच (लूट का माल) में पड़ गए जबकि कुछ का इरादा आखिरत की सफलता का था।

  3. अल्लाह की माफी: अल्लाह अपने बंदों पर बहुत दयालु है। गलतियों के बावजूद वह माफ कर देता है, बशर्ते इंसान सबक ले और सुधर जाए।

  4. परीक्षा का दर्शन: जीवन में सफलता और असफलता दोनों इंसान की परीक्षा हैं। सफलता में अहंकार न आए और असफलता में हिम्मत न हारे।


6. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevance: Past, Present & Future)

वर्तमान में प्रासंगिकता (Contemporary Audience Perspective):

आज के संदर्भ में यह आयत अत्यधिक प्रासंगिक है:

  • टीम वर्क और लीडरशिप: आज के कॉर्पोरेट जगत, सामाजिक संगठनों या यहाँ तक कि परिवारों में भी अनुशासन और नेतृत्व का पालन सफलता के लिए जरूरी है। आदेश की अवज्ञा पूरी टीम की विफलता का कारण बन सकती है।

  • इरादों की शुद्धता: सोशल मीडिया के दौर में जब लोग दिखावे और लोकप्रियता के पीछे भाग रहे हैं, यह आयत याद दिलाती है कि हमारे कामों के पीछे का इरादा (नीयत) ही हमारी असली सफलता तय करता है। क्या हम सिर्फ दुनिया की 'लाइक्स' चाहते हैं या अल्लाह की रजा?

  • आपसी एकता: मुस्लिम समुदाय सहित विभिन्न समुदायों में आज जो फूट देखने को मिल रही है, उसका मूल कारण इसी आयत में बताया गया है - 'तनाज़ुआ' (झगड़ा)। यह आयत हमें एकता और भाईचारे की महत्ता सिखाती है।

  • आध्यात्मिक सबक: जीवन में मिलने वाली हर सफलता और असफलता अल्लाह की तरफ से एक परीक्षा है। सफलता में शुक्रगुजार और असफलता में सब्र करने वाला बनना चाहिए।

भविष्य के लिए संदेश:

  • यह आयत भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक स्थाई मार्गदर्शक है कि "एकता, अनुशासन और शुद्ध इरादे ही सच्ची सफलता की कुंजी हैं।" चाहे तकनीक कितनी भी विकसित हो जाए, यह मानवीय मूल्य सदैव प्रासंगिक रहेंगे।


निष्कर्ष (Conclusion)

कुरआन की आयत 3:152 मानव व्यवहार का गहन मनोवैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत करती है। यह न केवल एक ऐतिहासिक घटना का विवरण है, बल्कि हर युग के मनुष्य के लिए एक व्यावहारिक जीवन-शिक्षा है। यह हमें सिखाती है कि सामूहिक सफलता व्यक्तिगत लालच से ऊपर उठकर अनुशासन और एकता में निहित है। अल्लाह की माफी और उसका एहसान हमें हमेशा उम्मीद और सुधार का मौका देता है।