1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)
إِنَّ الَّذِينَ تَوَلَّوْا مِنكُمْ يَوْمَ الْتَقَى الْجَمْعَانِ إِنَّمَا اسْتَزَلَّهُمُ الشَّيْطَانُ بِبَعْdِ مَا كَسَبُوا ۖ وَلَقَدْ عَفَا اللَّهُ عَنْهُمْ ۗ إِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ حَلِيمٌ
2. आयत का शाब्दिक अर्थ (Word-to-Word Meaning)
إِنَّ الَّذِينَ تَوَلَّوْا مِنكُمْ : निश्चय ही तुम में से जो लोग पीठ फेरकर भागे
يَوْمَ الْتَقَى الْجَمْعَانِ : उस दिन जब दोनों समूह (मुसलमान और काफिर) आमने-सामने हुए
إِنَّمَا اسْتَزَلَّهُمُ : उन्हें तो फिसलाया
الشَّيْطَانُ : शैतान ने
بِبَعْضِ مَا كَسَبُوا : उनके कुछ किए के कारण
وَلَقَدْ عَفَا اللَّهُ عَنْهُمْ : और निश्चय ही अल्लाह ने उन्हें माफ कर दिया
إِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ حَلِيمٌ : निश्चय ही अल्लाह बड़ा माफ करने वाला, धैर्य रखने वाला है
3. सरल अर्थ (Simple Meaning in Hindi)
"निश्चय ही तुम में से जो लोग उस दिन पीठ फेरकर भाग गए जब दोनों समूह (उहुद में) आमने-सामने हुए, उन्हें तो शैतान ने उनके कुछ किए (पिछले गुनाहों) के कारण फिसला दिया था। और निश्चय ही अल्लाह ने उन्हें माफ कर दिया। निश्चय ही अल्लाह बड़ा माफ करने वाला, धैर्य रखने वाला है।"
4. आयत की पृष्ठभूमि और सन्दर्भ (Context)
यह आयत उहुद की लड़ाई में भागने वाले उन मुसलमानों के बारे में है जो युद्ध के मैदान से पीठ फेरकर भाग गए थे। यह आयत उनकी इस गलती के मूल कारण को समझाती है और साथ ही अल्लाह की दया और क्षमा का भी वर्णन करती है।
5. आयत से सीख (Lesson from the Verse)
यह आयत कई महत्वपूर्ण शिक्षाएं देती है:
शैतानी प्रभाव: शैतान इंसान को उसकी कमजोरियों और पिछली गलतियों के जरिए ही फुसला पाता है। वह सीधे तौर पर नहीं, बल्कि धीरे-धीरे फिसलाता है।
अल्लाह की दया: अल्लाह की माफी और रहमत बहुत विशाल है। वह लोगों की कमजोरियों को जानते हुए भी माफ कर देता है, बशर्ते इंसान सुधर जाए।
जिम्मेदारी का भाव: हमारे कर्मों का परिणाम हमें भुगतना पड़ता है। पिछली गलतियाँ अगर सुधारी न जाएँ तो भविष्य में बड़ी गलतियों का कारण बन सकती हैं।
तौबा का दरवाजा: कोई भी गलती अल्लाह की माफी से बड़ी नहीं है। गलती के बाद निराश नहीं होना चाहिए बल्कि तौबा करके सुधर जाना चाहिए।
6. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevance: Past, Present & Future)
वर्तमान में प्रासंगिकता (Contemporary Audience Perspective):
आज के संदर्भ में यह आयत बेहद प्रासंगिक है:
मानसिक और नैतिक फिसलन (Moral Slippery Slope): आज के समय में लोग छोटी-छोटी गलतियों को नजरअंदाज करते हैं - जैसे झूठ बोलना, धोखा देना, गलत कमाई। यह आयत चेतावनी देती है कि ये छोटी गलतियाँ शैतान के लिए सीढ़ी का काम करती हैं और एक दिन बड़ी गलती करवा सकती हैं।
आध्यात्मिक सफाई (Spiritual Cleansing): हम अक्सर अपनी गलतियों को छिपाने की कोशिश करते हैं। यह आयत सिखाती है कि गलती स्वीकार करके अल्लाह से माफी मांगने में ही भलाई है। यह एक प्रकार की आत्मिक शुद्धि है।
समाज में माफी का महत्व (Importance of Forgiveness in Society): आज के दौर में जहाँ लोग एक-दूसरे की गलतियों को माफ नहीं करते, अल्लाह का यह गुण हमें सिखाता है कि दूसरों की गलतियों को माफ करना और खुद की गलतियों के लिए माफी मांगना दोनों ही महत्वपूर्ण हैं।
युवाओं के लिए संदेश (Message for Youth): आज का युवा असफलता से घबराकर हिम्मत हार जाता है। यह आयत उन्हें सिखाती है कि गलती हो जाने पर निराश नहीं होना चाहिए, बल्कि सबक लेकर आगे बढ़ना चाहिए।
भविष्य के लिए संदेश:
यह आयत भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक स्थाई मार्गदर्शक है कि "गलतियाँ इंसान से होती हैं, लेकिन सुधार और माफी का दरवाजा हमेशा खुला है।" भविष्य में चाहे समाज कितना भी आधुनिक क्यों न हो जाए, मानवीय कमजोरियाँ तो रहेंगी ही और अल्लाह की माफी की जरूरत भी बनी रहेगी।
निष्कर्ष (Conclusion)
कुरआन की आयत 3:155 मानवीय कमजोरियों और अल्लाह की दया के बीच के संबंध को बहुत खूबसूरती से समझाती है। यह न केवल एक ऐतिहासिक घटना का विवरण है, बल्कि हर युग के इंसान के लिए एक व्यावहारिक जीवन-शिक्षा है। यह हमें सिखाती है कि गलतियों से डरना नहीं चाहिए, बल्कि उनसे सीखकर आगे बढ़ना चाहिए। अल्लाह की गफूर (माफ करने वाला) और हलीम (धैर्यवान) होने का गुण हर मुसलमान के लिए आशा और सुधार का स्रोत है।