Read Quran translation in Hindi with verse-by-verse meaning and time-relevant explanations for deeper understanding.

कुरआन की आयत 3:156 की पूरी व्याख्या

 

1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَكُونُوا كَالَّذِينَ كَفَرُوا وَقَالُوا لِإِخْوَانِهِمْ إِذَا ضَرَبُوا فِي الْأَرْضِ أَوْ كَانُوا غُزًّى لَّوْ كَانُوا عِندَنَا مَا مَاتُوا وَمَا قُتِلُوا لِيَجْعَلَ اللَّهُ ذَٰلِكَ حَسْرَةً فِي قُلُوبِهِمْ ۗ وَاللَّهُ يُحْيِي وَيُمِيتُ ۗ وَاللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌ

2. आयत का शाब्दिक अर्थ (Word-to-Word Meaning)

  • يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا : ऐ ईमान वालो!

  • لَا تَكُونُوا : न बनो

  • كَالَّذِينَ كَفَرُوا : उन लोगों की तरह जिन्होंने इनकार किया

  • وَقَالُوا لِإِخْوَانِهِمْ : और कहते थे अपने भाइयों से

  • إِذَا ضَرَبُوا فِي الْأَرْضِ : जब वे धरती में चले जाते (यात्रा पर)

  • أَوْ كَانُوا غُزًّى : या युद्ध करने वाले होते

  • لَّوْ كَانُوا عِندَنَا : काश वे हमारे पास होते

  • مَا مَاتُوا وَمَا قُتِلُوا : तो न मरते और न मारे जाते

  • لِيَجْعَلَ اللَّهُ ذَٰلِكَ حَسْرَةً فِي قُلُوبِهِمْ : ताकि अल्लाह यह बात उनके दिलों में पछतावा बना दे

  • وَاللَّهُ يُحْيِي وَيُمِيتُ : और अल्लाह ही जिलाता और मारता है

  • وَاللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌ : और अल्लाह तुम्हारे सब कर्मों को देख रहा है

3. सरल अर्थ (Simple Meaning in Hindi)

"ऐ ईमान वालो! तुम उन लोगों की तरह न बनो जिन्होंने इनकार किया और अपने भाइयों से कहते थे, जब वे धरती में यात्रा पर निकलते या युद्ध करने जाते: 'काश वे हमारे पास होते तो न मरते और न मारे जाते।' ताकि अल्लाह यह बात उनके दिलों में पछतावा बना दे। और अल्लाह ही जिलाता और मारता है। और अल्लाह तुम्हारे सब कर्मों को देख रहा है।"


4. आयत की पृष्ठभूमि और सन्दर्भ (Context)

यह आयत उहुद की लड़ाई के बाद के सामाजिक-मनोवैज्ञानिक माहौल को दर्शाती है। जब कुछ मुसलमान शहीद हो गए, तो कुछ लोग (विशेषकर मुनाफिक - ढोंगी) यह कहने लगे कि "अगर यह लोग घर पर बैठे रहते तो न मरते।" यह आयत ऐसी नकारात्मक और भ्रमित करने वाली बातों से मुसलमानों को सावधान करती है और तकदीर (भाग्य) के सही समझ की शिक्षा देती है।


5. आयत से सीख (Lesson from the Verse)

यह आयत कई महत्वपूर्ण शिक्षाएं देती है:

  1. नकरात्मक सोच से बचें: मुसलमानों को काफिरों और मुनाफिकों की नकारात्मक और अज्ञानतापूर्ण बातों से सबक लेना चाहिए, न कि उनकी नकल करनी चाहिए।

  2. तकदीर पर विश्वास: मौत का समय और स्थान अल्लाह ने पहले ही तय कर रखा है। इंसान चाहे कहीं भी हो, अपने निर्धारित वक्त और वजह से ही मरता है।

  3. जिहाद का महत्व: अल्लाह के रास्ते में निकलना और जिहाद करना एक सम्मान की बात है, न कि पछतावे की। शहादत मौत नहीं बल्कि एक शानदार जिंदगी की शुरुआत है।

  4. अल्लाह की निगरानी: अल्लाह हर इंसान के कर्मों और इरादों को देख रहा है, इसलिए हमें हमेशा सही बातें ही कहनी और सोचनी चाहिए।


6. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevance: Past, Present & Future)

वर्तमान में प्रासंगिकता (Contemporary Audience Perspective):

आज के संदर्भ में यह आयत बेहद प्रासंगिक है:

  • मानसिकता और सोशल मीडिया (Mindset & Social Media): आज सोशल मीडिया पर ऐसी बहुत सी नकारात्मक बातें फैलती हैं जो लोगों को अल्लाह के रास्ते से हटाने की कोशिश करती हैं। जैसे: "हज पर जाने से क्या फायदा? पैसे बर्बाद होते हैं," या "जिहाद तो पुरानी बात हो गई।" यह आयत हमें ऐसी बातों से सावधान करती है।

  • सुरक्षा का भ्रम (Illusion of Security): आज का इंसान सोचता है कि घर बैठे रहने या महफूज जगह पर रहने से वह मौत से बच जाएगा। कोरोना काल ने साबित कर दिया कि मौत कभी भी, कहीं भी आ सकती है। यह आयत तकदीर के इसी सत्य को समझाती है।

  • युवाओं के लिए संदेश (Message for Youth): आज का युवा समाज सेवा, देश सेवा, या अल्लाह के रास्ते में काम करने से घबराता है कि "कहीं कुछ हो गया तो?" यह आयत उन्हें हिम्मत देती है कि मौत से डरकर अच्छे काम नहीं छोड़ने चाहिए। शहीदों को "मरा हुआ" नहीं समझना चाहिए बल्कि अल्लाह के पास जिंदा समझना चाहिए।

  • आध्यात्मिक समझ (Spiritual Understanding): यह आयत हमें सिखाती है कि हर मुसीबत और मौत के पीछे अल्लाह की हिकमत (बुद्धिमत्ता) होती है। हमें उसके फैसलों पर संदेह नहीं करना चाहिए।

भविष्य के लिए संदेश:

  • यह आयत भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक स्थाई मार्गदर्शक है कि "मौत से डरकर जिंदगी जीने का सही तरीका नहीं छोड़ना चाहिए।" भविष्य में चाहे दुनिया कितनी भी सुरक्षित और आधुनिक क्यों न हो जाए, तकदीर का सिद्धांत और अल्लाह की मर्जी सदैव कायम रहेगी।


निष्कर्ष (Conclusion)

कुरआन की आयत 3:156 मुसलमानों की मानसिकता को सही दिशा देने वाली एक महत्वपूर्ण आयत है। यह न केवल एक ऐतिहासिक घटना का विवरण है, बल्कि हर युग के मुसलमान के लिए एक व्यावहारिक जीवन-शिक्षा है। यह हमें सिखाती है कि तकदीर पर पूरा विश्वास रखते हुए, अल्लाह के रास्ते में आगे बढ़ते रहना चाहिए। नकारात्मक और भ्रमित करने वाली बातों से दूर रहकर, अल्लाह की मर्जी पर संतुष्ट रहना ही सच्चे ईमान की निशानी है। शहादत को एक सम्मान समझना चाहिए न कि एक त्रासदी।