Read Quran translation in Hindi with verse-by-verse meaning and time-relevant explanations for deeper understanding.

कुरआन की आयत 3:165 की पूरी व्याख्या

 

1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)

أَوَلَمَّا أَصَابَتْكُم مُّصِيبَةٌ قَدْ أَصَبْتُم مِّثْلَيْهَا قُلْتُمْ أَنَّىٰ هَٰذَا ۖ قُلْ هُوَ مِنْ عِندِ أَنفُسِكُمْ ۗ إِنَّ اللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ

2. आयत का शाब्दिक अर्थ (Word-to-Word Meaning)

  • أَوَلَمَّا : क्या (याद नहीं) जब

  • أَصَابَتْكُم : तुम्हें पहुँची

  • مُّصِيبَةٌ : एक मुसीबत (हानि/आपदा)

  • قَدْ أَصَبْتُم : जबकि तुमने पा लिया था

  • مِّثْلَيْهَا : उसके दोगुना (जीत)

  • قُلْتُمْ : तुमने कहा

  • أَنَّىٰ هَٰذَا : यह कहाँ से आया?

  • ۖ قُلْ : आप कह दें

  • هُوَ مِنْ عِندِ أَنفُسِكُمْ : यह तुम्हारी अपनी ओर से है

  • ۗ إِنَّ اللَّهَ : निश्चय ही अल्लाह

  • عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِirٌ : हर चीज़ पर पूरी ताकत रखता है

3. सरल अर्थ (Simple Meaning in Hindi)

"क्या जब तुम्हें वह मुसीबत पहुँची, जबकि तुमने उससे दोगुनी (जीत) पा ली थी (बद्र में), तो तुमने कहा: 'यह (हार) कहाँ से आ गई?' (ऐ पैगंबर!) आप कह दें: 'यह (मुसीबत) तुम्हारी अपनी ओर से है।' निश्चय ही अल्लाह हर चीज़ पर पूरी ताकत रखता है।"


4. आयत की पृष्ठभूमि और सन्दर्भ (Context)

यह आयत उहुद की लड़ाई के बाद के मनोवैज्ञानिक माहौल को दर्शाती है। बद्र की लड़ाई में मुसलमानों को शानदार जीत मिली थी, जहाँ वे कम संख्या में होते हुए भी विजयी हुए। लेकिन उहुद में, अपनी गलतियों के कारण, उन्हें नुकसान उठाना पड़ा। इस पर कुछ लोग हैरान थे कि जीत के बाद हार कैसे आ गई।


5. आयत से सीख (Lesson from the Verse)

यह आयत कई महत्वपूर्ण शिक्षाएं देती है:

  1. कर्मों का परिणाम: हमारी सफलताएँ और असफलताएँ हमारे अपने कर्मों का परिणाम हैं। अल्लाह की मदद हमारी ईमानदारी और अनुशासन पर निर्भर करती है।

  2. आत्म-समीक्षा का महत्व: मुसीबत आने पर दूसरों को दोष देने के बजाय स्वयं के कर्मों को जाँचना चाहिए।

  3. अल्लाह की सत्ता: अल्लाह हर स्थिति में हमारी परीक्षा लेता है। वह जीत भी दिला सकता है और हार भी दे सकता है।

  4. ईमान की परीक्षा: सफलता और असफलता दोनों ईमान की परीक्षा हैं। सफलता में अहंकार न आए और असफलता में धैर्य न खोएं।


6. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevance: Past, Present & Future)

वर्तमान में प्रासंगिकता (Contemporary Audience Perspective):

आज के संदर्भ में यह आयत बेहद प्रासंगिक है:

  • व्यक्तिगत विकास (Personal Development): आज के युवा असफलता आने पर दूसरों या हालात को दोष देते हैं। यह आयत सिखाती है कि हमें अपनी गलतियों से सीखना चाहिए और आत्म-सुधार करना चाहिए।

  • सामाजिक स्थिति (Social Context): मुस्लिम समुदाय की वर्तमान दुर्दशा पर विचार करते समय यह आयत याद दिलाती है कि यह स्थिति हमारे अपने कर्मों का नतीजा है। अल्लाह की मदद पाने के लिए हमें अपने अंदर सुधार करना होगा।

  • मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health): असफलता के बाद लोग अक्सर निराश हो जाते हैं। यह आयत समझाती है कि असफलता हमारी अपनी गलतियों का नतीजा है, और इसे सुधारा जा सकता है। यह निराशा की बजाय सुधार की प्रेरणा देती है।

  • धार्मिक दृष्टिकोण (Religious Perspective): कई लोग प्रार्थना के बाद भी मनचाहा परिणाम न मिलने पर अल्लाह से शिकायत करते हैं। यह आयत समझाती है कि अल्लाह की मदद हमारी ईमानदारी और प्रयासों पर निर्भर करती है।

भविष्य के लिए संदेश:

  • यह आयत भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक स्थाई मार्गदर्शक है कि "सफलता और असफलता का कारण बाहरी नहीं, बल्कि हमारे अपने कर्म हैं।" भविष्य में चाहे समाज कितना भी आधुनिक क्यों न हो जाए, यह सिद्धांत सदैव प्रासंगिक रहेगा।


निष्कर्ष (Conclusion)

कुरआन की आयत 3:165 मानव जीवन के एक मौलिक सिद्धांत को समझाती है। यह न केवल एक ऐतिहासिक घटना का विवरण है, बल्कि हर युग के इंसान के लिए एक व्यावहारिक जीवन-शिक्षा है। यह हमें सिखाती है कि हमारी सफलताएँ और असफलताएँ हमारे अपने कर्मों का परिणाम हैं। मुसीबत आने पर दूसरों को दोष देने के बजाय हमें अपने अंदर झाँककर देखना चाहिए और आत्म-सुधार करना चाहिए। अल्लाह की शक्ति पर पूरा विश्वास रखते हुए, हमें अपनी जिम्मेदारियों को समझना चाहिए। यह आयत आज के युग में हमारे लिए आत्म-विश्लेषण और सुधार का एक शक्तिशाली उपकरण है।