1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)
وَلِيَعْلَمَ الَّذِينَ نَافَقُوا ۚ وَقِيلَ لَهُمْ تَعَالَوْا قَاتِلُوا فِي سَبِيلِ اللَّهِ أَوِ ادْفَعُوا ۖ قَالُوا لَوْ نَعْلَمُ قِتَالًا لَّاتَّبَعْنَاكُمْ ۗ هُمْ لِلْكُفْرِ يَوْمَئِذٍ أَقْرَبُ مِنْهُمْ لِلْإِيمَانِ ۚ يَقُولُونَ بِأَفْوَاهِهِم مَّا لَيْسَ فِي قُلُوبِهِمْ ۗ وَاللَّهُ أَعْلَمُ بِمَا يَكْتُمُونَ
2. आयत का शाब्दिक अर्थ (Word-to-Word Meaning)
وَلِيَعْلَمَ الَّذِينَ نَافَقُوا : और ताकि पहचान ले उन्हें जो ढोंग करते थे
ۚ وَقِيلَ لَهُمْ : और कहा गया उनसे
تَعَالَوْا : आओ
قَاتِلُوا فِي سَبِيلِ اللَّهِ : लड़ो अल्लाह के रास्ते में
أَوِ ادْفَعُوا : या (कम से कम) रोको (दुश्मन को)
ۖ قَالُوا : उन्होंने कहा
لَوْ نَعْلَمُ قِتَالًا : यदि हम लड़ाई जानते
لَّاتَّبَعْنَاكُمْ : तो अवश्य तुम्हारा साथ देते
ۗ هُمْ لِلْkُفْرِ يَوْمَئِذٍ أَقْرَبُ : वे उस दिन कुफ्र के ज्यादा करीब थे
مِنْهُمْ لِلْإِيمَانِ : ईमान से
ۚ يَقُولُونَ بِأَفْوَاهِهِم : वे कहते हैं अपने मुँह से
مَّا لَيْسَ فِي قُلُوبِهِمْ : वह जो उनके दिलों में नहीं है
ۗ وَاللَّهُ أَعْلَمُ بِمَا يَكْتُمُونَ : और अल्लाह भली-भाँति जानता है जो वे छिपाते हैं
3. सरल अर्थ (Simple Meaning in Hindi)
"और ताकि उन ढोंगियों को पहचान ले जाए। और उनसे कहा गया: 'आओ, अल्लाह के रास्ते में लड़ो या (कम से कम) दुश्मन को रोको।' उन्होंने कहा: 'यदि हमें लड़ाई आती तो हम तुम्हारा साथ देते।' वे उस दिन ईमान से ज्यादा कुफ्र के करीब थे। वे अपने मुँह से वह कहते हैं जो उनके दिलों में नहीं होता। और अल्लाह उस चीज़ को भली-भाँति जानता है जो वे छिपाते हैं।"
4. आयत की पृष्ठभूमि और सन्दर्भ (Context)
यह आयत उहुद की लड़ाई के समय के मुनाफिकीन (ढोंगी मुसलमानों) के व्यवहार का वर्णन करती है। जब मुसलमानों को उहुद में चुनौती मिली, तो मुनाफिकीन ने बहाने बनाकर धर्मयुद्ध से पीछे हटने की कोशिश की। यह आयत उनकी असलियत को उजागर करती है।
5. आयत से सीख (Lesson from the Verse)
यह आयत कई महत्वपूर्ण शिक्षाएं देती है:
कर्मों की पहचान: मुश्किल वक्त में इंसान का असली चरित्र सामने आता है। ढोंगी हमेशा बहाने बनाते हैं।
ईमान की हकीकत: ईमान सिर्फ दावे का नाम नहीं, बल्कि अमल और कुर्बानी का नाम है।
अल्लाह की जानकारी: अल्लाह हर इंसान के दिल के राज जानता है। ढोंग और बहानेबाजी उससे छिपी नहीं है।
सच्चाई का महत्व: मुँह और दिल की एकता ईमान की निशानी है। जुबान और दिल का फर्क मुनाफिक़ी की पहचान है।
6. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevance: Past, Present & Future)
वर्तमान में प्रासंगिकता (Contemporary Audience Perspective):
आज के संदर्भ में यह आयत बेहद प्रासंगिक है:
धार्मिक ढोंग का पर्दाफाश: आज भी कई लोग धर्म के नाम पर दिखावा करते हैं लेकिन जब इस्लाम के लिए कुर्बानी की बात आती है तो बहाने बनाने लगते हैं। यह आयत ऐसे लोगों की पहचान कराती है।
सोशल मीडिया और दिखावा: सोशल मीडिया पर लोग बड़ी-बड़ी इस्लामी बातें करते हैं लेकिन व्यवहार में इस्लाम के मुताबिक अमल नहीं करते। यह आयत याद दिलाती है कि अल्लाह हमारे दिलों की हालत जानता है।
समाज सेवा में ईमानदारी: आज कई लोग समाज सेवा और धार्मिक कामों में सिर्फ दिखावे और नाम कमाने के लिए शामिल होते हैं। यह आयत हमें इरादों की शुद्धता की याद दिलाती है।
युवाओं के लिए संदेश: आज का युवा इस्लामी जिम्मेदारियों से बचने के लिए तरह-तरह के बहाने बनाता है। यह आयत उन्हें याद दिलाती है कि अल्लाह उनके बहानों को जानता है।
भविष्य के लिए संदेश:
यह आयत भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक स्थाई मार्गदर्शक है कि "असली ईमान दिल और जुबान की एकता में है।" भविष्य में चाहे समाज कितना भी आधुनिक क्यों न हो जाए, ईमान की यह परिभाषा सदैव प्रासंगिक रहेगी।
निष्कर्ष (Conclusion)
कुरआन की आयत 3:167 मुनाफिकीन (ढोंगी मुसलमानों) के चरित्र का बहुत स्पष्ट चित्रण करती है। यह न केवल एक ऐतिहासिक घटना का विवरण है, बल्कि हर युग के मुसलमान के लिए एक चेतावनी है। यह हमें सिखाती है कि ईमान सिर्फ दावे का नाम नहीं है, बल्कि उसके लिए कुर्बानी और संघर्ष भी है। हमें अपने इरादों को शुद्ध रखना चाहिए और दिखावे से बचना चाहिए क्योंकि अल्लाह हमारे दिलों के राज जानता है। यह आयत आज के दिखावे भरे युग में हमारे लिए एक आईने का काम करती है।