Read Quran translation in Hindi with verse-by-verse meaning and time-relevant explanations for deeper understanding.

कुरआन की आयत 3:168 की पूरी व्याख्या

 

1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)

الَّذِينَ قَالُوا لِإِخْوَانِهِمْ وَقَعَدُوا لَوْ أَطَاعُونَا مَا قُتِلُوا ۗ قُلْ فَادْرَءُوا عَنْ أَنفُسِكُمُ الْمَوْتَ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ

2. आयत का शाब्दिक अर्थ (Word-to-Word Meaning)

  • الَّذِينَ قَالُوا : जिन्होंने कहा

  • لِإِخْوَانِهِمْ : अपने भाइयों के बारे में

  • وَقَعَدُوا : और बैठे रहे (लड़ाई से दूर)

  • لَوْ أَطَاعُونَا : यदि वे हमारी बात मानते

  • مَا قُتِلُوا : तो न मारे जाते

  • ۗ قُلْ : (ऐ पैगंबर) आप कह दें

  • فَادْرَءُوا عَنْ أَنفُسِكُمُ الْمَوْتَ : तो अपने आप को मौत से बचा लो

  • إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ : यदि तुम सच्चे हो

3. सरल अर्थ (Simple Meaning in Hindi)

"जो लोग (ढोंगी) अपने भाइयों (शहीदों) के बारे में कहते हैं, जबकि वे स्वयं (लड़ाई से) बैठे रहे, कि 'यदि वे हमारी बात मानते तो न मारे जाते।' (ऐ पैगंबर!) आप कह दें: 'तो अपने आप को मौत से बचा लो, यदि तुम सच्चे हो।'"


4. आयत की पृष्ठभूमि और सन्दर्भ (Context)

यह आयत उहुद की लड़ाई के बाद के माहौल में उतरी। कुछ मुनाफिकीन (ढोंगी) जो लड़ाई से बचकर बैठे रहे थे, वे शहीदों के बारे में यह कह रहे थे कि अगर वे उनकी सलाह मानकर घर बैठे रहते तो न मारे जाते। यह आयत उनकी इस नकारात्मक और भ्रमित करने वाली बात का जवाब देती है।


5. आयत से सीख (Lesson from the Verse)

यह आयत कई महत्वपूर्ण शिक्षाएं देती है:

  1. नकारात्मक टिप्पणियों से बचें: दूसरों की कुर्बानियों पर नकारात्मक टिप्पणी करना गलत है, खासकर जब खुद कोई योगदान न दिया हो।

  2. तकदीर का सही समझ: मौत का समय और स्थान अल्लाह ने पहले ही तय कर रखा है। कोई भी अपने निर्धारित वक्त से पहले नहीं मर सकता।

  3. व्यवहारिक चुनौती: अल्लाह ने मुनाफिकीन को एक तर्कसंगत चुनौती दी कि अगर वे सच्चे हैं तो मौत से बचकर दिखाएँ।

  4. कर्म की महत्ता: सिर्फ बातें बनाना आसान है, लेकिन असली बात है कर्म करके दिखाना।


6. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevance: Past, Present & Future)

वर्तमान में प्रासंगिकता (Contemporary Audience Perspective):

आज के संदर्भ में यह आयत बेहद प्रासंगिक है:

  • आलोचनात्मक मानसिकता (Critical Mentality): आज सोशल मीडिया पर लोग बिना कुछ किए दूसरों के कामों की आलोचना करते रहते हैं। यह आयत सिखाती है कि जब तक हम खुद कुछ नहीं करते, दूसरों की कुर्बानियों और कोशिशों पर टिप्पणी करने का हक नहीं रखते।

  • सकारात्मक सोच (Positive Thinking): नकारात्मक टिप्पणियाँ समाज के मनोबल को तोड़ती हैं। यह आयत हमें सकारात्मक और रचनात्मक सोच अपनाने की शिक्षा देती है।

  • भाग्यवादिता (Concept of Destiny): आज के वैज्ञानिक युग में लोग भाग्य के सिद्धांत को भूल रहे हैं। यह आयत याद दिलाती है कि मौत का वक्त पहले से तय है, इसलिए अल्लाह के रास्ते में निकलने से डरना नहीं चाहिए।

  • व्यक्तिगत जिम्मेदारी (Personal Responsibility): आज लोग दूसरों को दोष देकर अपनी जिम्मेदारी से बचना चाहते हैं। यह आयत सिखाती है कि हर इंसान को अपने कर्मों की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।

भविष्य के लिए संदेश:

  • यह आयत भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक स्थाई मार्गदर्शक है कि "आलोचना करना आसान है, लेकिन कर्म करके दिखाना मुश्किल।" भविष्य में चाहे समाज कितना भी आधुनिक क्यों न हो जाए, यह सिद्धांत सदैव प्रासंगिक रहेगा।


निष्कर्ष (Conclusion)

कुरआन की आयत 3:168 नकारात्मक सोच और आलोचनात्मक रवैये के खिलाफ एक स्पष्ट चेतावनी है। यह न केवल एक ऐतिहासिक घटना का विवरण है, बल्कि हर युग के इंसान के लिए एक व्यावहारिक जीवन-शिक्षा है। यह हमें सिखाती है कि दूसरों की कुर्बानियों और कोशिशों का सम्मान करना चाहिए, खासकर तब जब हम खुद उनमें शामिल न हों। अल्लाह ने मुनाफिकीन को जो चुनौती दी वह आज भी उतनी ही प्रासंगिक है - अगर तुम सच्चे हो तो मौत से बचकर दिखाओ। यह आयत आज के आलोचनात्मक युग में हमारे लिए एक दर्पण का काम करती है।