1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)
مَّا كَانَ اللَّهُ لِيَذَرَ الْمُؤْمِنِينَ عَلَىٰ مَا أَنتُمْ عَلَيْهِ حَتَّىٰ يَمِيزَ الْخَبِيثَ مِنَ الطَّيِّبِ ۗ وَمَا كَانَ اللَّهُ لِيُطْلِعَكُمْ عَلَى الْغَيْبِ وَلَٰكِنَّ اللَّهَ يَجْتَبِي مِن رُّسُلِهِ مَن يَشَاءُ ۖ فَآمِنُوا بِاللَّهِ وَرُسُلِهِ ۚ وَإِن تُؤْمِنُوا وَتَتَّقُوا فَلَكُمْ أَجْرٌ عَظِيمٌ
2. आयत का शाब्दिक अर्थ (Word-to-Word Meaning)
مَّا كَانَ اللَّهُ : अल्लाह ऐसा नहीं है
لِيَذَرَ الْمُؤْمِنِينَ : कि छोड़ दे ईमान वालों को
عَلَىٰ مَا أَنتُمْ عَلَيْهِ : उस स्थिति पर जिसपर तुम हो
حَتَّىٰ يَمِيزَ : जब तक अलग न कर दे
الْخَبِيثَ مِنَ الطَّيِّبِ : बुरे को अच्छे से
وَمَا كَانَ اللَّهُ : और अल्लाह ऐसा नहीं है
لِيُطْلِعَكُمْ عَلَى الْغَيْبِ : कि तुम्हें ग़ैब (अदृश्य) की जानकारी दे
وَلَٰكِنَّ اللَّهَ : लेकिन अल्लाह
يَجْتَبِي مِن رُّسُلِهِ : चुन लेता है अपने रसूलों में से
مَن يَشَاءُ : जिसे चाहता है
فَآمِنُوا بِاللَّهِ وَرُسُلِهِ : तो ईमान लाओ अल्लाह और उसके रसूलों पर
وَإِن تُؤْمِنُوا وَتَتَّقُوا : और यदि तुम ईमान लाओ और तक्वा करो
فَلَكُمْ أَجْرٌ عَظِيمٌ : तो तुम्हारे लिए बड़ा बदला है
3. सरल अर्थ (Simple Meaning in Hindi)
"अल्लाह ऐसा नहीं है कि ईमान वालों को उसी स्थिति पर छोड़ दे जिस पर तुम हो, जब तक कि वह बुरे को अच्छे से अलग न कर दे। और अल्लाह ऐसा नहीं है कि तुम्हें ग़ैब (अदृश्य) की जानकारी दे दे, लेकिन अल्लाह अपने रसूलों में से जिसे चाहता है चुन लेता है। तो ईमान लाओ अल्लाह और उसके रसूलों पर, और यदि तुम ईमान लाओगे और तक्वा करोगे तो तुम्हारे लिए बड़ा बदला है।"
4. आयत की पृष्ठभूमि और सन्दर्भ (Context)
यह आयत उहुद की लड़ाई के बाद के माहौल में उतरी। जब मुनाफिक (ढोंगी) और सच्चे मोमिनीन एक साथ थे, तो अल्लाह ने परीक्षाओं के माध्यम से उनमें अंतर स्पष्ट किया। यह आयत बताती है कि अल्लाह मोमिनीन को उनकी मौजूदा स्थिति में नहीं छोड़ेगा बल्कि परीक्षाओं के जरिए सच्चे और झूठे को अलग करेगा।
5. आयत से सीख (Lesson from the Verse)
यह आयत कई महत्वपूर्ण शिक्षाएं देती है:
परीक्षा का उद्देश्य: मुश्किलें और परीक्षाएँ सच्चे और झूठे ईमान में अंतर करने के लिए होती हैं।
ग़ैब का ज्ञान: ग़ैब (अदृश्य) का ज्ञान सिर्फ अल्लाह के पास है, वह जिसे चाहे उसे ही इसका ज्ञान देता है।
ईमान और तक्वा का महत्व: ईमान और तक्वा (अल्लाह का डर) ही असली सफलता की कुंजी हैं।
रसूलों का चुनाव: रसूलों का चुनाव अल्लाह की मर्जी से होता है, इसमें किसी इंसान की कोई दखल नहीं।
6. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevance: Past, Present & Future)
वर्तमान में प्रासंगिकता :
आज के संदर्भ में यह आयत बेहद प्रासंगिक है:
समाज में पहचान का संकट: आज मुस्लिम समुदाय में सच्चे मोमिन और दिखावे के मुसलमानों में अंतर करना मुश्किल हो गया है। यह आयत समझाती है कि अल्लाह परीक्षाओं के माध्यम से इस अंतर को स्पष्ट कर देता है।
आध्यात्मिक परीक्षाएँ: आज की आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक चुनौतियाँ मुसलमानों की आस्था की परीक्षा हैं। इनसे सच्चे ईमान वालों की पहचान होती है।
ग़ैब के ज्ञान की लालसा: आज कई लोग ग़ैब के ज्ञान के पीछे भागते हैं। यह आयत स्पष्ट करती है कि ग़ैब का ज्ञान सिर्फ अल्लाह के पास है।
युवाओं के लिए मार्गदर्शन: आज का युवा जीवन की चुनौतियों में घबरा जाता है। यह आयत समझाती है कि ये चुनौतियाँ उसके ईमान की परीक्षा हैं और इनसे उसके ईमान की सच्चाई साबित होती है।
भविष्य के लिए संदेश:
यह आयत भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक स्थाई मार्गदर्शक है कि "परीक्षाएँ सच्चे और झूठे ईमान में अंतर करने के लिए होती हैं।" भविष्य में चाहे चुनौतियाँ कितनी भी बड़ी क्यों न हों, यह सिद्धांत सदैव प्रासंगिक रहेगा।
निष्कर्ष (Conclusion)
कुरआन की आयत 3:179 मोमिनीन के लिए एक गहन शिक्षा और आश्वासन लेकर आती है। यह न केवल एक ऐतिहासिक घटना का विवरण है, बल्कि हर युग के मुसलमान के लिए एक व्यावहारिक जीवन-शिक्षा है। यह हमें सिखाती है कि अल्लाह हमें हमारी मौजूदा स्थिति में नहीं छोड़ेगा बल्कि परीक्षाओं के माध्यम से सच्चे और झूठे ईमान में अंतर करेगा। ग़ैब का ज्ञान सिर्फ अल्लाह के पास है और वह अपने रसूलों को ही इसका ज्ञान देता है। हमारा काम है अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान लाना और तक्वा करना, इसके बदले में हमें बड़ा बदला मिलेगा। यह आयत आज की जटिल और चुनौतीपूर्ण दुनिया में हमारे लिए मार्गदर्शन और आशा का स्रोत है।