1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)
وَإِذْ أَخَذَ اللَّهُ مِيثَاقَ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ لَتُبَيِّنُنَّهُ لِلنَّاسِ وَلَا تَكْتُمُونَهُ فَنَبَذُوهُ وَرَاءَ ظُهُورِهِمْ وَاشْتَرَوْا بِهِ ثَمَنًا قَلِيلًا ۖ فَبِئْسَ مَا يَشْتَرُونَ
2. आयत का शाब्दिक अर्थ (Word-to-Word Meaning)
وَإِذْ أَخَذَ اللَّهُ : और (याद करो) जब अल्लाह ने लिया
مِيثَاقَ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ : उन लोगों से वचन जिन्हें किताब दी गई
لَتُبَيِّنُنَّهُ لِلنَّاسِ : कि तुम उसे लोगों के सामने स्पष्ट करोगे
وَلَا تَكْtُمُونَهُ : और उसे छिपाओगे नहीं
فَنَبَذُوهُ : तो उन्होंने फेंक दिया उसे
وَرَاءَ ظُهُورِهِمْ : अपनी पीठ के पीछे
وَاشْتَرَوْا بِهِ : और खरीद लिया उसके बदले
ثَمَنًا قَلِيلًا : थोड़ी सी कीमत
ۖ فَبِئْسَ مَا يَشْتَرُونَ : तो बहुत बुरा है जो वे खरीदते हैं
3. सरल अर्थ (Simple Meaning in Hindi)
"और (याद करो) जब अल्लाह ने उन लोगों से वचन लिया जिन्हें किताब दी गई थी कि तुम उसे लोगों के सामने स्पष्ट करोगे और उसे छिपाओगे नहीं, तो उन्होंने उसे (वचन को) अपनी पीठ के पीछे फेंक दिया और उसके बदले थोड़ी सी कीमत खरीद ली। तो बहुत बुरा है जो वे खरीदते हैं।"
4. आयत की पृष्ठभूमि और सन्दर्भ (Context)
यह आयत यहूदियों और ईसाइयों के बारे में है जिन्हें तौरात और इंजील जैसी आसमानी किताबें दी गई थीं। अल्लाह ने उनसे वचन लिया था कि वे इन किताबों में दिए गए सत्य को लोगों के सामने स्पष्ट करेंगे और नहीं छिपाएंगे, लेकिन उन्होंने इस वचन को तोड़ दिया और दुनिया के थोड़े से फायदे के लिए सत्य को छिपा लिया।
5. आयत से सीख (Lesson from the Verse)
यह आयत कई महत्वपूर्ण शिक्षाएं देती है:
अमानत की जिम्मेदारी: ज्ञान और सत्य एक अमानत है, उसे छिपाना नहीं चाहिए।
वचन का पालन: अल्लाह से लिए गए वचन का पालन करना हर मोमिन का कर्तव्य है।
सत्य का प्रचार: सत्य को स्पष्ट करना और फैलाना एक धार्मिक दायित्व है।
दुनिया का धोखा: दुनिया की थोड़ी सी कमाई के लिए सत्य को छिपाना बहुत बड़ी हानि है।
6. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevance: Past, Present & Future)
वर्ततमान में प्रासंगिकता :
आज के संदर्भ में यह आयत बेहद प्रासंगिक है:
धार्मिक नेताओं की जिम्मेदारी: आज के धार्मिक नेता और विद्वान भी कुरआन और हदीस के ज्ञान को स्पष्ट रूप से लोगों तक पहुँचाने के लिए जिम्मेदार हैं। उन्हें इस ज्ञान को नहीं छिपाना चाहिए।
सोशल मीडिया की भूमिका: आज सोशल मीडिया के ज़माने में हर मुसलमान की जिम्मेदारी है कि वह इस्लाम के सच्चे संदेश को फैलाए, न कि उसे छिपाए।
आर्थिक लालच: आज भी कुछ लोग धार्मिक ज्ञान को पैसे कमाने का जरिया बनाते हैं और सच्चाई को छिपाते हैं। यह आयत उनके लिए चेतावनी है।
शैक्षणिक संस्थान: इस्लामिक स्कूल और कॉलेजों की जिम्मेदारी है कि वे कुरआन और इस्लाम की सही शिक्षाएं बिना किसी हेर-फेर के छात्रों तक पहुँचाएँ।
भविष्य के लिए संदेश:
यह आयत भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक स्थाई मार्गदर्शक है कि "सत्य को स्पष्ट करना और फैलाना हमारा धार्मिक दायित्व है, उसे कभी नहीं छिपाना चाहिए।" भविष्य में चाहे समाज कितना भी बदल जाए, यह सिद्धांत सदैव प्रासंगिक रहेगा।
निष्कर्ष (Conclusion)
कुरआन की आयत 3:187 हमें सत्य के प्रचार-प्रसार की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी का एहसास कराती है। यह न केवल एक ऐतिहासिक घटना का विवरण है, बल्कि हर युग के मुसलमान के लिए एक व्यावहारिक जीवन-शिक्षा है। यह हमें सिखाती है कि अल्लाह ने हमसे जो ज्ञान और सत्य दिया है, उसे हमें लोगों तक पहुँचाना चाहिए, न कि छिपाना चाहिए। दुनिया के थोड़े से फायदे के लिए सत्य को छिपाना बहुत बड़ी हानि का सौदा है। यह आयत आज के युग में हमारे लिए एक मार्गदर्शक और चेतावनी दोनों का काम करती है।