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क़ुरआन 3:2 (सूरह आले-इमरान, आयत नंबर 2) की पूर्ण व्याख्या

 

1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)

اللَّهُ لَا إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ الْحَيُّ الْقَيُّومُ

2. अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning)

  • اللَّهُ (अल्लाह): अल्लाह, ईश्वर का वह पवित्र नाम जो केवल उसी के लिए है।

  • لَا (ला): नहीं है।

  • إِلَٰهَ (इलाहा): कोई पूज्य (सच्चा माबूद)।

  • إِلَّا (इल्ला): सिवाय।

  • هُوَ (हुव): उसके (अल्लाह के)।

  • الْحَيُّ (अल-हय्यु): सदैव जीवित, हमेशा ज़िंदा रहने वाला।

  • الْقَيُّومُ (अल-क़य्यूमु): सारे संसार को संभालने वाला, स्वयं स्थिर रहकर सबको स्थिति प्रदान करने वाला।

3. पूर्ण व्याख्या (Full Explanation in Hindi)

पिछली आयत (3:1) में रहस्यमय अक्षरों ("अलिफ-लाम-मीम") के बाद, यह आयत उस सत्य का स्पष्ट और दृढ़ उद्घोष करती है जिस पर पूरे क़ुरआन की नींव टिकी हुई है – "तौहीद" यानी अल्लाह की एकता।

इस आयत के दो मुख्य भाग हैं:

1. ला इलाहा इल्लल्लाह (अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं):
यह वह मूल मंत्र है जिसके साथ हर पैगंबर आए। यह सृष्टि के सबसे बड़े सत्य को बयान करता है। यह न केवल मूर्तियों के खंडन की बात करता है, बल्कि हर उस चीज़ के खंडन की बात करता है जिसे अल्लाह के बराबर या उससे ऊपर समझा जाता है – चाहे वह धन, शक्ति, विज्ञान, कोई व्यक्ति या कोई विचारधारा हो। यह घोषणा करता है कि पूजा, प्रार्थना, आस्था और आज्ञापालन का अधिकार केवल अल्लाह के लिए है।

2. अल-हय्यु अल-क़य्यूम (सदा जीवित, सबको संभालने वाला):
ये अल्लाह के दो बहुत ही गहन और महत्वपूर्ण नाम (गुण) हैं।

  • अल-हय्यु: अल्लाह की जीवन की सर्वोच्च अवधारणा है। उसका जीवन न तो शुरू हुआ है और न ही कभी खत्म होगा। उसे नींद नहीं आती, न ही वह थकता है। यह गुण हमें यह विश्वास दिलाता है कि हमारी हर प्रार्थना सुनने वाला, हर आह जानने वाला एक सजीव सत्ता मौजूद है।

  • अल-क़य्यूम: यह गुण बताता है कि अल्लाह हर चीज़ का पालन-पोषण करने वाला और संचालक है। आकाश और धरती का कोई भी कार्य उसकी इजाज़त और व्यवस्था के बिना नहीं चल सकता। वह स्वयं स्थिर है और पूरे ब्रह्मांड को स्थिरता प्रदान कर रहा है। वह किसी का मोहताज नहीं, बल्कि सब उसी के मोहताज हैं।

4. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral)

  1. ईमान की नींव: यह आयत हर मुसलमान के ईमान की सबसे मज़बूत नींव है। यह हमें सिखाती है कि हमारा रिश्ता सीधे अल्लाह से है, बिना किसी बिचौलिए के।

  2. पूर्ण भरोसा (तवक्कुल): जब हम यह समझ लेते हैं कि अल्लाह हमेशा जीवित है और हर चीज़ का संचालक है, तो हमारा दिल हर मुसीबत और चिंता में उसी पर भरोसा करने लगता है। हमें यह यकीन हो जाता है कि हमारा रोज़ीदार और हमारा रक्षक वही है।

  3. ग़ुलामी से मुक्ति: "ला इलाहा इल्लल्लाह" का एलान इंसान को हर तरह की ग़ुलामी (शैतान, दुनिया, खुद अपनी इच्छाओं की) से आज़ाद करता है और उसे सच्ची आज़ादी और शांति की ओर ले जाता है।

5. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)

  • अतीत में प्रासंगिकता (Relevancy to the Past):

    • पैगंबरों का संदेश: हज़रत इब्राहीम, मूसा, ईसा (अलैहिस्सलाम) सहित सभी पैगंबरों का केंद्रीय संदेश यही "तौहीद" (अल्लाह की एकता) था। उन्होंने अपनी-अपनी कौमों को इसी सत्य की ओर बुलाया।

    • अज्ञानता के ज़माने में: पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के समय में जब अरब में 360 मूर्तियाँ पूजी जा रही थीं, यह आयत एक क्रांतिकारी संदेश थी जिसने पूरे अरब का चेहरा बदल दिया।

  • वर्तमान में प्रासंगिकता (Relevancy to the Present):

    • भौतिकवाद के युग में: आज का मनुष्य पैसे, करियर, शोहरत और दुनियावी सुखों को अपना माबूद (इलाह) बना चुका है। यह आयत आज के इंसान को याद दिलाती है कि इन चीज़ों की पूजा करना छोड़कर केवल उसी एक अल्लाह की ओर लौटो जो सच्चा "अल-हय्यु अल-क़य्यूम" है।

    • अशांति और तनाव: आज की तनावभरी ज़िंदगी में, यह आयत मन की गहरी शांति का स्रोत है। जब इंसान जान लेता है कि उसका रचयिता और संचालक हर पल जीवित है और सब कुछ संभाल रहा है, तो उसकी चिंताएँ कम हो जाती हैं।

  • भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy to the Future):

    • शाश्वत सत्य: चाहे दुनिया कितनी भी तरक्की कर ले, विज्ञान कितनी भी ऊँचाइयाँ छू ले, यह सत्य हमेशा कायम रहेगा कि "अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं, वह सदा जीवित है और सबको संभालने वाला है।" यह आयत कयामत तक आने वाली हर पीढ़ी के लिए मार्गदर्शन और सत्य का प्रकाश बनी रहेगी।

    • कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के युग में: जब मनुष्य मशीनों को इतना शक्तिशाली बना रहा है, यह आयत यह याद दिलाएगी कि सर्वशक्तिमान तो केवल अल्लाह है। कोई भी मशीन या तकनीक उस "अल-क़य्यूम" की जगह नहीं ले सकती जो पूरे ब्रह्मांड को संचालित कर रहा है।

निष्कर्ष:
सूरह आले-इमरान की दूसरी आयत केवल एक वाक्य नहीं है; यह इस्लामी creed (अक़ीदे) का दिल और आत्मा है। यह अतीत से लेकर भविष्य तक, हर इंसान के लिए सच्चाई, शांति और मार्गदर्शन का स्रोत है।