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क़ुरआन 3:21 (सूरह आले-इमरान, आयत नंबर 21) की पूर्ण व्याख्या

 

1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)

إِنَّ الَّذِينَ يَكْفُرُونَ بِآيَاتِ اللَّهِ وَيَقْتُلُونَ النَّبِيِّينَ بِغَيْرِ حَقٍّ وَيَقْتُلُونَ الَّذِينَ يَأْمُرُونَ بِالْقِسْطِ مِنَ النَّاسِ فَبَشِّرْهُم بِعَذَابٍ أَلِيمٍ

2. अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning)

  • إِنَّ (इन्ना): बेशक।

  • الَّذِينَ (अल्लज़ीना): वे लोग जो।

  • يَكْفُرُونَ (यक्फुरून): इनकार करते हैं।

  • بِآيَاتِ (बि-आयाति): आयतों (निशानियों) से।

  • اللَّهِ (अल्लाह): अल्लाह की।

  • وَيَقْتُلُونَ (व यकतुलून): और जान से मारते हैं।

  • النَّبِيِّينَ (अन-नबिय्यीन): पैगंबरों को।

  • بِغَيْرِ (बि-गैरि): बिना।

  • حَقٍّ (हक्किन): किसी अधिकार के (नाहक़)।

  • وَيَقْتُلُونَ (व यकतुलून): और जान से मारते हैं।

  • الَّذِينَ (अल्लज़ीना): उन लोगों को जो।

  • يَأْمُرُونَ (यामुरून): हुक्म देते हैं (आदेश देते हैं)।

  • بِالْقِسْطِ (बिल-किस्त): इंसाफ (न्याय) का।

  • مِنَ النَّاسِ (मिनन्नास): लोगों में से।

  • فَبَشِّرْهُم (फ़ा बश्शिरहुम): तो (हे पैगंबर!) आप उन्हें खुशखबरी सुना दीजिए।

  • بِعَذَابٍ (बि-अज़ाबिन): एक यातना की।

  • أَلِيمٍ (अलीम): दर्दनाक।

3. पूर्ण व्याख्या (Full Explanation in Hindi)

यह आयत उन लोगों के भयानक अपराधों और उनके भयानक परिणाम की घोषणा करती है, जिन्होंने सत्य का सबसे ज़्यादा विरोध किया है। यह एक बहुत ही कड़ी चेतावनी है।

इस आयत में तीन सबसे बड़े अपराधों की सूची दी गई है:

1. यक्फुरूना बि-आयातिल्लाह (वे अल्लाह की आयतों का इनकार करते हैं):

  • यह सबसे पहला और मौलिक अपराध है। "आयतों" से मतलब है क़ुरआन की आयतें, प्रकृति में अल्लाह की निशानियाँ और पैगंबरों के चमत्कार। इन स्पष्ट प्रमाणों के होते हुए भी इनकार करना सबसे बड़ा अत्याचार (ज़ुल्म) है।

2. व यकतुलूनन-नबिय्यीना बि-गैरि हक्क (और वे पैगंबरों को नाहक़ क़त्ल करते हैं):

  • यह इंसानियत के खिलाफ सबसे जघन्य अपराध है। पैगंबर वे पवित्र व्यक्ति होते हैं जो मानवजाति के भले के लिए आते हैं। उन्हें मारना सिर्फ एक हत्या नहीं, बल्कि अल्लाह के प्रति सीधी चुनौती और मानवता के प्रति सबसे बड़ा अपराध है। ऐतिहासिक रूप से, कई पैगंबरों को उनकी अपनी ही कौमों ने शहीद कर दिया था।

3. व यकतुलूनल्लज़ीना यामुरूना बिल-किस्ति मिनन्नास (और वे उन लोगों को क़त्ल करते हैं जो लोगों को इंसाफ (न्याय) का हुक्म देते हैं):

  • यह दूसरे अपराध का विस्तार है। यहाँ उन सभी नेक लोगों की बात हो रही है जो पैगंबर नहीं हैं, लेकिन समाज में न्याय और भलाई की बात करते हैं, बुराई से रोकते हैं और सत्य का प्रचार करते हैं। उन्हें मारना भी उसी श्रेणी का घोर पाप है।

चेतावनी: फ़ा बश्शिरहुम बि-अज़ाबिन अलीम (तो आप उन्हें एक दर्दनाक यातना की खुशखबरी सुना दीजिए):

  • "बश्शिरहुम" (खुशखबरी सुनाओ) यहाँ व्यंग्य के अर्थ में है। यह एक डरावनी चेतावनी है, जैसे कहा जा रहा हो, "उनके लिए तैयार रहने वाली दर्दनाक सज़ा की 'खुशखबरी' सुना दो।"

  • "अज़ाबुन अलीम" यानी ऐसी यातना जो शारीरिक और आत्मिक दोनों तरह से तीव्र पीड़ा देने वाली होगी।

4. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral)

  1. सत्य का विरोध सबसे बड़ा अपराध: अल्लाह की निशानियों और उसके पैगंबरों का इनकार करना सबसे बड़ा गुनाह है जिसका अंतिम परिणाम बहुत ही भयानक होता है।

  2. न्याय के पक्षधरों का सम्मान: जो लोग समाज में न्याय और सच्चाई की आवाज़ उठाते हैं, उनका सम्मान करना और उनकी रक्षा करना हर मुसलमान का कर्तव्य है। उनके साथ दुर्व्यवहार एक गंभीर पाप है।

  3. ईश्वरीय दंड का भय: इस आयत से पता चलता है कि अल्लाह उन लोगों को कभी बख्शेगा नहीं जो जानबूझकर सत्य का विरोध करते हैं और नेक लोगों का खून बहाते हैं।

5. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)

  • अतीत में प्रासंगिकता (Relevancy to the Past):

    • पिछली कौमों का इतिहास: यह आयत सीधे तौर पर यहूदियों के उन समूहों को संबोधित करती है जिन्होंने हज़रत जकरिया, हज़रत याहया (जॉन द बैप्टिस्ट) जैसे पैगंबरों की हत्या की थी। यह उनके अपराध का ब्यौरा है।

    • पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व.) के विरोधी: मक्का के काफिर भी पैगंबर को मारने की साजिशें रच रहे थे। यह आयत उन्हें उनके भविष्य के बारे में चेतावनी दे रही थी।

  • वर्तमान में प्रासंगिकता (Relevancy to the Present):

    • धार्मिक उत्पीड़न: आज दुनिया के कई हिस्सों में, लोगों को सिर्फ इसलिए प्रताड़ित और मार दिया जाता है क्योंकि वे अपने धर्म (ईमान) पर कायम हैं या न्याय की बात करते हैं। यह आयत उन अत्याचारियों के लिए एक स्पष्ट चेतावनी है।

    • आवाज़ दबाने की कोशिश: जो सरकारें और समूह मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और न्याय के लिए लड़ने वालों को चुप कराने के लिए हिंसा का इस्तेमाल करते हैं, वे इस आयत में बताए गए अपराध को अंजाम दे रहे हैं।

    • इस्लामोफोबिया: जो लोग इस्लाम और पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के खिलाफ नफरत फैलाते हैं और मुसलमानों के खिलाफ हिंसा को भड़काते हैं, वे भी इसी श्रेणी में आते हैं।

  • भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy to the Future):

    • शाश्वत चेतावनी: जब तक दुनिया रहेगी, सत्य और न्याय के दुश्मन पैदा होते रहेंगे। यह आयत हर युग के लिए एक स्थायी चेतावनी बनी रहेगी कि ऐसे लोगों का अंत बहुत ही बुरा होगा।

    • नेक लोगों के लिए सहारा: भविष्य में भी जब नेक लोगों पर अत्याचार होंगे, यह आयत उन्हें यह विश्वास दिलाएगी कि अल्लाह उनके साथ है और उनके अत्याचारियों को जरूर सजा देगा।

    • न्याय की लड़ाई जारी रखने की प्रेरणा: यह आयत भविष्य की पीढ़ियों को यह हिम्मत देगी कि वे न्याय और सच्चाई की बात करना कभी न छोड़ें, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी विपरीत क्यों न हों।

निष्कर्ष:
क़ुरआन 3:21 सत्य के दुश्मनों के तीन सबसे बड़े अपराधों और उनके भयानक परिणाम की घोषणा करती है। यह अतीत के अत्याचारियों का इतिहास है, वर्तमान के ज़ालिमों के लिए एक चेतावनी है और भविष्य में न्याय की लड़ाई लड़ने वालों के लिए एक प्रेरणा और सहारा है। यह आयत बताती है कि अल्लाह की नज़र में सबसे बड़ा अपराध सत्य का इनकार और नेक लोगों की हत्या है।