1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)
أُولَٰئِكَ الَّذِينَ حَبِطَتْ أَعْمَالُهُمْ فِي الدُّنْيَا وَالْآخِرَةِ وَمَا لَهُم مِّن نَّاصِرِينَ
2. अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning)
أُولَٰئِكَ (उलाइका): वही लोग हैं।
الَّذِينَ (अल्लज़ीना): जिनके।
حَبِطَتْ (हबितत): बर्बाद/रद्द/व्यर्थ हो गईं।
أَعْمَالُهُمْ (आमालुहुम): उनके (सारे) अच्छे काम।
فِي (फ़ी): में।
الدُّنْيَا (अद-दुनया): दुनिया।
وَ (व): और।
الْآخِرَةِ (अल-आखिरह): आखिरत।
وَمَا (व मा): और नहीं है।
لَهُم (लहुम): उनके लिए।
مِّن (मिन): कोई।
نَّاصِرِينَ (नासिरीन): मदद करने वाला।
3. पूर्ण व्याख्या (Full Explanation in Hindi)
यह आयत पिछली आयत (3:21) में वर्णित उन जघन्य अपराधियों के भयानक परिणाम को अंतिम रूप देती है। यह बताती है कि सिर्फ सज़ा का वादा ही नहीं, बल्कि उनकी सारी मेहनत और पूंजी भी बर्बाद हो जाएगी।
इस आयत के तीन मुख्य और गंभीर परिणाम बताए गए हैं:
1. उलाइकल्लज़ीना हबितत आमालुहुम (वही लोग हैं जिनके सारे अच्छे काम बर्बाद हो गए):
"हबितत" (बर्बाद होना) एक बहुत ही मजबूत शब्द है। इसका मतलब है कि उनके सारे अच्छे काम, चाहे वे कितने भी बड़े क्यों न हों, बिल्कुल शून्य और बेकार हो गए। जैसे कोई किसान मेहनत से फसल उगाए और वह जलकर राख हो जाए।
यहाँ "आमाल" (काम) से तात्पर्य उन सभी apparent good deeds (प्रत्यक्ष रूप से अच्छे कर्मों) से है जो वे लोग कर सकते थे, जैसे दान-पुण्य, सामाजिक कार्य आदि। लेकिन कुफ्र (इनकार) और हत्या जैसे घोर पापों ने उन सबको पूरी तरह से रद्द कर दिया।
2. फिद-दुनया वल-आखिरह (दुनिया और आखिरत दोनों में):
यह बर्बादी सिर्फ आखिरत तक सीमित नहीं है।
दुनिया में: उनकी सारी कोशिशें, योजनाएँ और सांसारिक सफलताएँ अल्लाह की बरकत और मंजूरी के बिना अंततः बेकार और निरर्थक साबित होंगी। उन्हें दुनिया में भी अपने किए का दंड मिल सकता है।
आखिरत में: यह तो निश्चित है। वहाँ तो उनके नाम कोई नेकी का बचा ही नहीं होगा। वह सब कुछ जला दिया जाएगा।
3. व मा लहुम मिन नासिरीन (और उनका कोई मददगार नहीं होगा):
यह सबसे बड़ी विपत्ति है। कयामत के दिन जब वह सज़ा पाने लगेंगे, तो:
न कोई देवता उनकी मदद करेगा।
न कोई पैगंबर उनकी सिफारिश करेगा।
न कोई दोस्त या रिश्तेदार उनके काम आएगा।
वह पूरी तरह से अकेले और बेसहारा होंगे। अल्लाह की पकड़ से बचाने वाला कोई नहीं होगा।
4. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral)
ईमान: अच्छे कर्मों की स्वीकार्यता की शर्त: इस आयत से सबसे बड़ी शिक्षा यह है कि बिना ईमान के, कोई भी अच्छा काम अल्लाह के यहाँ स्वीकार नहीं होता। ईमान वह आधार है जिस पर नेकियों की इमारत खड़ी होती है। अगर आधार ही गलत है, तो इमारत कितनी भी सुंदर क्यों न हो, गिर जाएगी।
कर्मों का वास्तविक मूल्य: इंसान को यह समझना चाहिए कि उसके कर्मों का असली मूल्य अल्लाह के यहाँ तभी है जब वह तौहीद (अल्लाह की एकता) और रिसालत (पैगंबरों पर विश्वास) के सिद्धांत पर आधारित हों।
अंतिम परिणाम से सावधानी: इंसान को हमेशा अपने कर्मों के अंतिम परिणाम के बारे में सोचना चाहिए। क्या वह ऐसा काम कर रहा है जो उसकी पूरी ज़िंदगी की मेहनत को बर्बाद कर देगा?
5. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)
अतीत में प्रासंगिकता (Relevancy to the Past):
अहले-किताब के लिए चेतावनी: यह आयत विशेष रूप से उन यहूदियों और ईसाइयों के लिए थी जो अपने पूर्वजों के कत्ल-ए-अंबिया (पैगंबरों की हत्या) के अपराध के बावजूद, अपने आपको "अल्लाह के चहेते" समझते थे और सोचते थे कि उनके पूर्वजों के कर्म उनके लिए काफी हैं। इस आयत ने उनके इस भ्रम को तोड़ दिया।
मक्का के मुशरिक: मक्का के काफिर भी हज और दान जैसे कर्म करते थे। यह आयत उन्हें बताती थी कि कुफ्र की हालत में उनके ये सारे कर्म "हबित" (बर्बाद) हैं।
वर्तमान में प्रासंगिकता (Relevancy to the Present):
भौतिकवादी समाज: आज का समाज सिर्फ "अच्छे कर्म" (जैसे दान, पर्यावरण बचाना, सामाजिक कार्य) पर जोर देता है, बिना यह सोचे कि ईमान उनकी बुनियाद है। यह आयत बताती है कि अल्लाह के यहाँ इन कर्मों का कोई मोल नहीं है अगर वह तौहीद के सिद्धांत पर नहीं हैं।
धार्मिक अहंकार: कुछ लोग सोचते हैं कि वे बहुत धार्मिक कर्म कर रहे हैं, लेकिन अगर उनका अकीदा (विश्वास) खराब है या वे गुनाहों में लिप्त हैं, तो यह आयत उनके लिए एक बड़ी चेतावनी है।
सच्ची सफलता का मापदंड: यह आयत हमें सच्ची सफलता का सही मापदंड बताती है। दुनिया की सफलता असली सफलता नहीं है। असली सफलता वह है जो दुनिया और आखिरत दोनों में काम आए।
भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy to the Future):
शाश्वत न्याय का सिद्धांत: यह आयत एक शाश्वत ईश्वरीय नियम बताती है जो कयामत तक लागू रहेगा: "कुफ्र सारे अच्छे कर्मों को बर्बाद कर देता है।"
भविष्य के लिए मार्गदर्शन: भविष्य में जब भी लोग यह सोचेंगे कि बिना ईमान के भी "अच्छा इंसान" बना जा सकता है, यह आयत उन्हें सही रास्ता दिखाएगी।
आखिरत में निराशा की चेतावनी: यह आयत हर युग के इंसान को यह डर दिलाती रहेगी कि कहीं उसकी पूरी ज़िंदगी की कोशिशें और नेकियाँ "हबित" (बर्बाद) न हो जाएँ। यह डर ही उसे सही ईमान और सही अमल की ओर प्रेरित करेगा।
निष्कर्ष:
क़ुरआन 3:22 कुफ्र के विनाशकारी परिणाम को बहुत ही स्पष्ट शब्दों में बयान करती है। यह बताती है कि कुफ्र इंसान की सारी नेकियों को दुनिया और आखिरत दोनों में बर्बाद कर देता है और उसे अकेला और बेसहारा छोड़ देता है। यह अतीत के अपराधियों के लिए एक फैसला थी, वर्तमान के भ्रमित लोगों के लिए एक चेतावनी है और भविष्य की सभी पीढ़ियों के लिए एक स्थायी मार्गदर्शक सिद्धांत है कि ईमान ही सफलता की पहली और आखिरी शर्त है।