1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)
أَلَمْ تَرَ إِلَى الَّذِينَ أُوتُوا نَصِيبًا مِّنَ الْكِتَابِ يُدْعَوْنَ إِلَىٰ كِتَابِ اللَّهِ لِيَحْكُمَ بَيْنَهُمْ ثُمَّ يَتَوَلَّىٰ فَرِيقٌ مِّنْهُمْ وَهُم مُّعْرِضُونَ
2. अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning)
أَلَمْ تَرَ (अलम तर): क्या आपने नहीं देखा? (ध्यान नहीं दिया?)
إِلَى (इला): की ओर।
الَّذِينَ (अल्लज़ीना): उन लोगों को।
أُوتُوا (उतु): दिया गया था।
نَصِيبًا (नसीबा): एक हिस्सा।
مِّنَ (मिन): में से।
الْكِتَابِ (अल-किताब): किताब (तौरात) का।
يُدْعَوْنَ (युद'औन): बुलाए जाते हैं।
إِلَىٰ (इला): की ओर।
كِتَابِ اللَّهِ (किताबिल्लाह): अल्लाह की किताब (क़ुरआन) की।
لِيَحْكُمَ (लीयहकुमा): ताकि फैसला करे।
بَيْنَهُمْ (बैनहुम): उनके बीच।
ثُمَّ (सुम्म): फिर।
يَتَوَلَّىٰ (यतवल्ला): मुंह मोड़ लेते हैं।
فَرِيقٌ (फ़रीक़ुन): एक समूह।
مِّنْهُمْ (मिनहुम): उनमें से।
وَهُم (व हुम): और वे।
مُّعْرِضُونَ (मु'रिदून): मुंह मोड़ने वाले हैं।
3. पूर्ण व्याख्या (Full Explanation in Hindi)
यह आयत मदीना के यहूदी विद्वानों की उस हठधर्मिता और पक्षपात को उजागर करती है जो सत्य को जानते हुए भी उसे स्वीकार नहीं कर रहे थे। यह एक ऐसी घटना का वर्णन है जो वास्तव में घटित हुई थी।
आयत का विस्तृत अर्थ:
1. अलम तर इलल्लज़ीना उतु नसीबम मिनल किताब (क्या आपने उन लोगों की ओर ध्यान नहीं दिया जिन्हें किताब का एक हिस्सा दिया गया था?):
यहाँ "किताब का हिस्सा पाने वाले" से सीधा मतलब मदीना के यहूदी विद्वानों से है। उनके पास अल्लाह की किताब "तौरात" थी, जिसमें आखिरी पैगंबर (मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के आने की भविष्यवाणी थी। इसलिए उन्हें "ज्ञान का एक हिस्सा" प्राप्त था।
2. युद'औना इला किताबिल्लाहि लीयहकुमा बैनहुम (उन्हें अल्लाह की किताब (क़ुरआन) की ओर बुलाया जाता है ताकि वह उनके बीच फैसला करे):
जब भी यहूदियों के बीच कोई झगड़ा या मामला होता था, खासकर वे मामले जिनका जवाब तौरात में स्पष्ट नहीं था, तो पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास आते थे।
वे स्वयं क़ुरआन की ओर रुजू करते थे ताकि वह उनके बीच अल्लाह के हुक्म के अनुसार फैसला करे। इससे साबित होता है कि वे मानते थे कि क़ुरआन अल्लाह की किताब है।
3. सुम्म यतवल्ला फ़रीक़ुम मिनहुम व हुम मु'रिदून (फिर उनमें से एक समूह मुंह मोड़ लेता है और वे मुंह मोड़ने वाले हैं):
यहाँ उनकी हठधर्मिता और बुरी नीयत सामने आती है।
जब क़ुरआन का फैसला उनकी इच्छा और पक्षपात के खिलाफ होता था, तो उनमें से एक बड़ा समूह उस फैसले को ठुकरा देता था और मुंह मोड़ लेता था।
"व हुम मु'रिदून" (और वे मुंह मोड़ने वाले हैं) इस बात पर जोर देता है कि यह उनकी आदत और स्वभाव बन गया था। वे सत्य को जानबूझकर नकार रहे थे।
4. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral)
ज्ञान की ज़िम्मेदारी: जिसे अल्लाह ने ज्ञान दिया है, उसकी बड़ी ज़िम्मेदारी है कि वह उस पर अमल करे। सिर्फ ज्ञान रखने से कुछ नहीं होता, उसे स्वीकार करना और उसके अनुसार चलना ज़रूरी है।
हठधर्मिता का परिणाम: इंसान की सबसे बड़ी कमजोरी उसकी हठधर्मिता और पक्षपात है। इंसान सच्चाई को जानते हुए भी अपनी जाति, धर्म, स्वार्थ या अहंकार के कारण उसे स्वीकार नहीं करता।
सत्य के प्रति ईमानदारी: जब सत्य सामने आ जाए, तो उसे स्वीकार करने में देरी नहीं करनी चाहिए, भले ही वह हमारी personal desire (निजी इच्छा) के खिलाफ क्यों न हो।
5. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)
अतीत में प्रासंगिकता (Relevancy to the Past):
मदीना के यहूदी: यह आयत सीधे तौर पर मदीना के यहूदी गोत्र बनू कुरैजा और बनू नज़ीर आदि के बारे में उतरी, जो तौरात के जानकार होने के बावजूद पैगंबर के फैसले को मानने से इनकार कर देते थे जब वह उनके खिलाफ जाता था।
एक ऐतिहासिक उदाहरण: इसका एक प्रसिद्ध उदाहरण एक यहूदी का ज़िना (व्यभिचार) का मामला था, जहाँ क़ुरआन ने तौरात के असली हुक्म के अनुसार फैसला सुनाया।
वर्तमान में प्रासंगिकता (Relevancy to the Present):
आधुनिक विद्वानों की मानसिकता: आज भी कई लोग (चाहे वे किसी भी धर्म के हों) ज्ञान और तर्क से परिचित होते हैं, लेकिन जब बात उनकी मान्यताओं, स्वार्थों या political correctness (राजनीतिक शुद्धता) पर आती है, तो वे स्पष्ट सत्य को भी ठुकरा देते हैं।
क़ुरआन के नियमों से पलायन: आज कई मुसलमान भी जानते हैं कि क़ुरआन का हुक्म क्या है, लेकिन जब वह हुक्म उनकी सुविधा, उनके व्यवसाय या उनकी इच्छाओं के खिलाफ होता है, तो वे उससे मुंह मोड़ लेते हैं और तर्क ढूंढने लगते हैं।
विज्ञान और धर्म: कुछ लोग वैज्ञानिक तथ्यों (जैसे सृष्टि का आरंभ) को भी इसलिए नहीं मानते क्योंकि वह उनकी नास्तिक विचारधारा के खिलाफ है। यह भी उसी "इराद" (मुंह मोड़ने) की प्रवृत्ति है।
भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy to the Future):
शाश्वत मानवीय स्वभाव: जब तक दुनिया है, लोगों में यह प्रवृत्ति रहेगी कि वे अपने पक्षपात और हठ के कारण स्पष्ट सत्य को ठुकराते रहेंगे। यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी को इस मानसिकता से सावधान करती रहेगी।
न्याय के लिए एक मानदंड: यह आयत हमेशा याद दिलाएगी कि न्याय और फैसले का एकमात्र सही आधार अल्लाह की किताब है, न कि इंसान की इच्छा या पक्षपात।
निष्कर्ष:
क़ुरआन 3:23 हठधर्मिता और सत्य के प्रति जानबूझकर उपेक्षा के एक ठोस ऐतिहासिक उदाहरण को प्रस्तुत करती है। यह अतीत के यहूदी विद्वानों के व्यवहार का चित्रण है, वर्तमान के उन सभी लोगों के लिए एक आईना है जो जानते-बूझते सत्य से मुंह मोड़ते हैं, और भविष्य के लिए एक चेतावनी है कि ऐसा व्यवहार अल्लाह के यहाँ अत्यंत निंदनीय है। यह आयत सिखाती है कि असली ज्ञानी वह है जो सत्य को पहचानकर उसे गले लगाता है, न कि उससे मुंह मोड़ता है।