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क़ुरआन 3:24 (सूरह आले-इमरान, आयत नंबर 24) की पूर्ण व्याख्या

 

1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)

ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمْ قَالُوا لَن تَمَسَّنَا النَّارُ إِلَّا أَيَّامًا مَّعْدُودَاتٍ ۖ وَغَرَّهُمْ فِي دِينِهِم مَّا كَانُوا يَفْتَرُونَ

2. अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning)

  • ذَٰلِكَ (ज़ालिका): यह (उनका यह व्यवहार)।

  • بِأَنَّهُمْ (बि-अन्नहुम): इसलिए है क्योंकि वे।

  • قَالُوا (क़ालू): कहते थे।

  • لَن (लन): कभी नहीं।

  • تَمَسَّنَا (तमस्सनान): छुएगी हमें।

  • النَّارُ (अन-नार): आग (जहन्नम)।

  • إِلَّا (इल्ला): सिवाय।

  • أَيَّامًا (अय्यामा): कुछ दिन।

  • مَّعْدُودَاتٍ (मअदुदातिन): गिने-चुने।

  • وَ (व): और।

  • غَرَّهُمْ (ग़र्रहुम): धोखे में डाल दिया उन्हें।

  • فِي (फ़ी): में।

  • دِينِهِم (दीनिहिम): उनके दीन (धर्म) के मामले में।

  • مَّا (मा): वह (चीज़) जो।

  • كَانُوا (कानू): वे करते थे।

  • يَفْتَرُونَ (यफ्तरून): गढ़ लेते थे (झूठ बोलते थे)।

3. पूर्ण व्याख्या (Full Explanation in Hindi)

यह आयत पिछली आयतों में वर्णित यहूदियों की उस हठधर्मिता और सत्य से मुंह मोड़ने के मूल कारण की ओर इशारा करती है। यह बताती है कि आखिर वे लोग अल्लाह के फैसले को क्यों नहीं मान रहे थे।

इस आयत के दो मुख्य कारण बताए गए हैं:

1. क़ालू लन तमस्सनान-नारु इल्ला अय्यामम मअदुदात (वे कहते थे कि हमें आग कभी नहीं छुएगी, सिवाय गिने-चुने कुछ दिनों के):

  • यह एक गलत धारणा (False Belief) थी जो यहूदियों के बीच प्रचलित थी।

  • वे अपने आपको "अल्लाह के चहेते" समझते थे और यह दावा करते थे कि अगर उन्हें जहन्नम में जाना भी पड़ा, तो वहाँ वे सिर्फ 40 दिन या कुछ ऐसे ही गिने-चुने दिन रहेंगे। उसके बाद उनकी सज़ा खत्म हो जाएगी।

  • यह धारणा पूरी तरह से उनकी अपनी ओर से गढ़ी हुई थी और अल्लाह की किसी किताब में इसका कोई आधार नहीं था।

2. व ग़र्रहुम फी दीनिहिम मा कानू यफ्तरून (और उन्होंने अपने दीन के मामले में जो कुछ गढ़ रखा था, उसने उन्हें धोखे में डाल दिया):

  • यह आयत का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह बताता है कि उनकी हठधर्मिता की जड़ क्या थी।

  • "मा कानू यफ्तरून" - "जो कुछ वे गढ़ा (झूठ बोल) करते थे।"

    • इससे मतलब है वे झूठी आस्थाएँ और मनघड़ंत कहानियाँ जो उन्होंने अपने धर्म में शामिल कर ली थीं।

    • उन्होंने तौरात की असली शिक्षाओं को तोड़-मरोड़ दिया था और अपनी मर्जी के हिसाब से नए नियम बना लिए थे।

  • "ग़र्रहुम" - "उसने उन्हें धोखे में डाल दिया।"

    • इन झूठी बातों ने उनके दिलों में एक झूठी सुरक्षा की भावना पैदा कर दी। वे समझने लगे कि चाहे वे कुछ भी कर लें, उनका अंत बुरा नहीं होगा क्योंकि वे "चुने हुए" लोग हैं।

    • यही झूठा भरोसा और गलत धारणा उन्हें सत्य स्वीकार करने से रोक रही थी।

4. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral)

  1. झूठी धारणाओं से सावधान: इंसान को अपनी धार्मिक मान्यताओं की हमेशा जाँच-पड़ताल करते रहना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि हम किसी झूठी और मनगढ़ंत बात पर भरोसा किए बैठे हों जो हमें अल्लाह की सच्चाई से दूर कर दे।

  2. धर्म में नवाचार (बिदअत) का खतरा: धर्म में अपनी तरफ से कुछ जोड़ना (बिदअत) एक बहुत बड़ा खतरा है। यह इंसान को धोखे में डालकर उसके असली ईमान को बर्बाद कर देता है।

  3. आखिरत के प्रति गंभीरता: इंसान को आखिरत और अल्लाह के अज़ाब से बेखबर नहीं रहना चाहिए। यह सोचकर कि "हम बच जाएंगे" या "सज़ा बहुत कम मिलेगी," गुनाह करना एक भयंकर भूल है।

5. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)

  • अतीत में प्रासंगिकता (Relevancy to the Past):

    • यहूदियों की ऐतिहासिक मान्यता: ऐतिहासिक रूप से, यहूदी यह मानते थे कि जहन्नम में सिर्फ गैर-यहूदी ही हमेशा रहेंगे, जबकि यहूदी सिर्फ एक limited period (सीमित अवधि) के लिए वहाँ रहेंगे। यह आयत उसी झूठी धारणा को उजागर करती है।

    • पैगंबर के समय में चेतावनी: यह आयत मदीना के यहूदियों को उनकी इस खतरनाक गलतफहमी से सावधान करती थी।

  • वर्तमान में प्रासंगिकता (Relevancy to the Present):

    • आज के यहूदी और ईसाई: आज भी कुछ यहूदी और ईसाई समूह इसी तरह की exclusivist (अनन्य) मानसिकता रखते हैं, यह सोचकर कि उनका जन्म ही उन्हें जन्नत का हकदार बना देता है, भले ही उनके अमल कैसे भी हों।

    • मुसलमानों में गलत धारणाएँ: कुछ मुसलमान भी इसी तरह की झूठी सुरक्षा की भावना में जीते हैं। वे सोचते हैं कि सिर्फ कलिमा पढ़ लेने या एक मुसलमान घर में पैदा होने से वे जहन्नम से सुरक्षित हैं, भले ही वे नमाज़ न पढ़ें, गुनाह करते रहें और इस्लामी शरीयत को न मानें। यह आयत ऐसे सभी लोगों के लिए एक जगाने वाली घंटी है।

    • धर्म के नाम पर अंधविश्वास: आज भी हर समाज में लोगों ने धर्म के नाम पर तरह-तरह के अंधविश्वास और मनगढ़ंत रीति-रिवाज गढ़ रखे हैं जो उन्हें असली इस्लामी तौहीद से दूर ले जाते हैं।

  • भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy to the Future):

    • शाश्वत चेतावनी: जब तक दुनिया है, लोग अपने धर्म के बारे में झूठी धारणाएँ और आरामदायक झूठ गढ़ते रहेंगे। यह आयत हमेशा उन्हें यह चेतावनी देती रहेगी कि ऐसा करना उन्हें धोखे में डालकर उनकी आखिरat बर्बाद कर देगा।

    • सच्चे ईमान की कसौटी: यह आयत भविष्य के हर मुसलमान के लिए एक कसौटी बनी रहेगी कि वह अपने अकीदे (विश्वास) की जाँच करे और उसे केवल क़ुरआन और सही हदीस से ही ले, न कि अपनी ओर से गढ़ी हुई बातों से।

निष्कर्ष:
क़ुरआन 3:24 झूठी धार्मिक धारणाओं के खतरनाक परिणाम को उजागर करती है। यह अतीत के यहूदियों की उस मानसिकता का विश्लेषण है जो उन्हें सत्य स्वीकार करने से रोक रही थी, वर्तमान के सभी लोगों (मुसलमानों सहित) के लिए एक चेतावनी है कि वे अपने दिलों में झूठी सुरक्षा की भावना न पालें, और भविष्य के लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत है कि धर्म में सच्चाई और गंभीरता बरतनी चाहिए। यह आयत सिखाती है कि झूठे भरोसे इंसान को अल्लाह के अज़ाब से नहीं बचा सकते।