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क़ुरआन 3:25 (सूरह आले-इमरान, आयत नंबर 25) की पूर्ण व्याख्या

 

1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)

فَكَيْفَ إِذَا جَمَعْنَاهُمْ لِيَوْمٍ لَّا رَيْبَ فِيهِ وَوُفِّيَتْ كُلُّ نَفْسٍ مَّا كَسَبَتْ وَهُمْ لَا يُظْلَمُونَ

2. अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning)

  • فَكَيْفَ (फ़ा-कैफ़): तो कैसा (भयानक) होगा।

  • إِذَا (इज़ा): जब कि।

  • جَمَعْنَاهُمْ (जमअनाहुम): हम एकत्र करेंगे उन्हें।

  • لِيَوْمٍ (ली-यौमिन): एक ऐसे दिन के लिए।

  • لَّا رَيْبَ فِيهِ (ला रैबा फ़ीहि): जिसमें कोई संदेह नहीं है।

  • وَ (व): और।

  • وُفِّيَتْ (वुफ़्फियत): पूरा दिया जाएगा।

  • كُلُّ (कुल्लु): हर।

  • نَفْسٍ (नफ़सिन): जान (व्यक्ति) को।

  • مَّا (मा): जो कुछ।

  • كَسَبَتْ (कसबत): उसने कमाया था।

  • وَ (व): और।

  • هُمْ (हुम): वे।

  • لَا يُظْلَمُونَ (ला युज़लमून): उन पर कोई ज़ुल्म नहीं किया जाएगा।

3. पूर्ण व्याख्या (Full Explanation in Hindi)

यह आयत पिछली आयत (3:24) में वर्णित उन लोगों के लिए एक भयानक और दृश्यात्मक चेतावनी है जो अपनी झूठी धारणाओं (जैसे जहन्नम में कम दिन रहने का भरोसा) में मग्न थे। अल्लाह उनसे एक डरावना सवाल पूछकर उनकी नींद से जगाने की कोशिश कर रहा है।

इस आयत में कयामत के दिन के तीन मुख्य दृश्य दिखाए गए हैं:

1. फ़ा-कैफ़ा इज़ा जमअनाहुम ली-यौमिल ला रैबा फ़ीह (तो कैसा होगा जब हम उन्हें एक ऐसे दिन के लिए एकत्र करेंगे जिसमें कोई संदेह नहीं है?):

  • "फ़ा-कैफ़" (तो कैसा होगा?) एक rhetorical question (अलंकारिक प्रश्न) है जो भय और दहशत पैदा करता है। यह ऐसा पूछना है जैसे कहा जा रहा हो, "क्या तुमने सोचा है कि उस दिन तुम्हारी क्या हालत होगी?"

  • "जिस दिन में कोई संदेह नहीं" – यह कयामत के दिन की पूर्ण निश्चितता पर जोर देता है। यह कोई कल्पना नहीं, बल्कि एक सुनिश्चित सत्य है।

2. व वुफ़्फियत कुल्लु नफ़सिम मा कसबत (और हर व्यक्ति को जो कुछ उसने कमाया था, पूरा-पूरा दे दिया जाएगा):

  • यह आयत का केंद्रीय सिद्धांत है – पूर्ण और न्यायसंगत बदला।

  • "वुफ़्फियत" का अर्थ है पूरा, बिना किसी कमी-बेशी के देना। इंसान के अच्छे-बुरे हर कर्म का लेखा-जोखा रखा गया है।

  • "मा कसबत" (जो कुछ उसने कमाया) बताता है कि इंसान को उसके अपने कर्मों का फल मिलेगा। कोई किसी के गुनाह का बोझ नहीं उठाएगा।

3. व हुम ला युज़लमून (और उन पर ज़रा भी ज़ुल्म नहीं किया जाएगा):

  • यह अल्लाह के पूर्ण न्याय को दर्शाता है। अल्लाह किसी पर एक सुई के नोक के बराबर भी ज़ुल्म नहीं करेगा।

  • अगर किसी को सज़ा मिलेगी, तो वह उसके अपने कर्मों की वजह से होगी। अगर किसी को इनाम मिलेगा, तो वह अल्लाह की दया से ज़्यादा होगा। किसी के साथ कोई अन्याय नहीं होगा।

4. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral)

  1. कर्मों का पूर्ण बदला: इस आयत से सबसे बड़ी शिक्षा यह है कि इंसान को अपने हर छोटे-बड़े कर्म के लिए जवाबदेह ठहराया जाएगा। कोई कर्म बेकार नहीं जाएगा।

  2. अल्लाह का पूर्ण न्याय: अल्लाह का न्याय इतना सटीक और न्यायसंगत है कि उसमें किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव या अन्याय नहीं होगा। यह विश्वास इंसान को दुनिया के अत्याचारों में भी सब्र और आशा देता है।

  3. झूठे भरोसों का खंडन: यह आयत उन लोगों के झूठे भरोसों को तोड़ती है जो यह सोचते हैं कि वे बिना कर्मों के बच जाएंगे या उन्हें कम सज़ा मिलेगी। हर किसी को उसके कर्मों का पूरा हिसाब देना होगा।

5. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)

  • अतीत में प्रासंगिकता (Relevancy to the Past):

    • यहूदियों के लिए चेतावनी: यह आयत सीधे तौर पर उन यहूदियों के लिए थी जो अपनी झूठी धारणा ("हमें कम दिन की सज़ा मिलेगी") में मग्न थे। यह उन्हें बता रही थी कि तुम्हारा हिसाब तुम्हारे कर्मों के अनुसार पूरा-पूरा होगा।

    • सभी पैगंबरों का संदेश: हर पैगंबर ने अपनी कौम को आखिरत के दिन और पूर्ण बदले की चेतावनी दी थी। यह आयत उसी सार्वभौमिक संदेश की पुष्टि करती है।

  • वर्तमान में प्रासंगिकता (Relevancy to the Present):

    • नैतिक जिम्मेदारी का एहसास: आज का इंसान अक्सर यह सोचता है कि उसके गुनाह का कोई गवाह नहीं है। यह आयत उसे याद दिलाती है कि हर कर्म दर्ज हो रहा है और उसका पूरा हिसाब होगा। यह भ्रष्टाचार, बेईमानी और गुनाह से रोकने का सबसे बड़ा उपाय है।

    • अत्याचारों के शिकार लोगों के लिए सांत्वना: दुनिया में जो लोग अत्याचार सह रहे हैं और न्याय नहीं मिल पा रहा, उनके लिए यह आयत एक सहारा है। यह बताती है कि अंतिम न्याय का दिन ज़रूर आएगा, जहाँ हर अत्याचारी को उसके कर्म का पूरा बदला मिलेगा और किसी पर ज़ुल्म नहीं होगा।

    • व्यक्तिग्र जीवन में सजगता: यह आयत हर मुसलमान को उसकी नमाज़, रोज़ा, व्यवहार और लेन-देन में सजग करती है, क्योंकि उसे पता है कि हर चीज़ का लेखा-जोखा है।

  • भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy to the Future):

    • शाश्वत न्याय का वादा: कयामत तक, यह आयत मानवजाति के लिए न्याय के अंतिम स्रोत का वादा बनी रहेगी। चाहे दुनिया कितनी भी अन्यायपूर्ण क्यों न हो जाए, अंत में पूर्ण न्याय ज़रूर होगा।

    • तकनीकी युग में नैतिकता: भविष्य में AI और Virtual Reality जैसी तकनीकों के साथ, नैतिक सवाल और भी जटिल होंगे। यह आयत हर युग के इंसान को यही याद दिलाती रहेगी कि उसके हर "वर्चुअल" कर्म का भी "असली" हिसाब होगा।

    • मानवीय प्रयासों का सही मूल्यांकन: यह आयत भविष्य की पीढ़ियों को सिखाती रहेगी कि इंसान की सच्ची कामयाबी दुनिया की दौलत और शोहरत में नहीं, बल्कि उन नेक कर्मों में है जिनका पूरा बदला आखिरत में मिलेगा।

निष्कर्ष:
क़ुरआन 3:25 आखिरत के पूर्ण न्याय और पारदर्शी हिसाब-किताब का एक स्पष्ट चित्रण है। यह अतीत के लिए एक चेतावनी थी, वर्तमान के लिए नैतिकता और सांत्वना का स्रोत है और भविष्य के लिए एक शाश्वत वादा है कि हर इंसान को उसके कर्मों का पूरा और न्यायसंगत बदला मिलकर रहेगा। यह आयत झूठे भरोसों को तोड़ती है और इंसान को उसकी जिम्मेदारी का एहसास कराती है।