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क़ुरआन की आयत 3:36 की पूर्ण व्याख्या

 

1. पूरी आयत अरबी में:

فَلَمَّا وَضَعَتْهَا قَالَتْ رَبِّ إِنِّي وَضَعْتُهَا أُنثَىٰ وَاللَّهُ أَعْلَمُ بِمَا وَضَعَتْ وَلَيْسَ الذَّكَرُ كَالْأُنثَىٰ ۖ وَإِنِّي سَمَّيْتُهَا مَرْيَمَ وَإِنِّي أُعِيذُهَا بِكَ وَذُرِّيَّتَهَا مِنَ الشَّيْطَانِ الرَّجِيمِ

2. आयत का शब्द-दर-शब्द अर्थ (Word-to-Word Meaning):

  • فَلَمَّا (फ-लम्मा): फिर जब।

  • وَضَعَتْهَا (वदअत-हा): उसने उसे जना (प्रसव किया)।

  • قَالَتْ (क़ालत): उसने कहा।

  • رَبِّ (रब्ब): हे मेरे पालनहार!

  • إِنِّي (इन्नी): निश्चित ही मैंने।

  • وَضَعْتُهَا (वदअतु-हा): जना दी है उसे।

  • أُنثَىٰ (उन्सा): एक लड़की।

  • وَاللَّهُ (वल्लाहु): और अल्लाह।

  • أَعْلَمُ (आ'लमु): सबसे अधिक जानने वाला है।

  • بِمَا (बि-मा): उसके बारे में जो।

  • وَضَعَتْ (वदअत): उसने जना।

  • وَلَيْسَ (व-लैस): और नहीं है।

  • الذَّكَرُ (अज़-ज़करु): पुरुष (लड़का)।

  • كَالْأُنثَىٰ (कल-उन्सा): लड़की के समान।

  • ۖ وَإِنِّي (व-इन्नी): और निश्चित रूप से मैंने।

  • سَمَّيْتُهَا (सम्मैतु-हा): उसका नाम रखा।

  • مَرْيَمَ (मरयम): मरयम।

  • وَإِنِّي (व-इन्नी): और निश्चित ही मैं।

  • أُعِيذُهَا (उईज़ु-हा): मैं पनाह माँगती हूँ उसे।

  • بِكَ (बि-का): तेरे (के सहारे)।

  • وَذُرِّيَّتَهَا (व-ज़ुर्रिय्यता-हा): और उसकी संतान को।

  • مِنَ (मिन): से।

  • الشَّيْطَانِ (अश-शैतान): शैतान के।

  • الرَّجِيمِ (अर-रजीम): धिक्कारे हुए।

3. आयत का पूरा अर्थ (Full Translation):

"फिर जब उस (हन्ना) ने उस (बच्चे) को जना, तो कहा: 'हे मेरे पालनहार! मैंने इसको लड़की जना है।' और अल्लाह भली-भाँति जानता था कि उसने क्या जना है। (उस समय के रिवाज के अनुसार) लड़का, लड़की के समान नहीं होता (क्योंकि लड़की मस्जिद की सेवा के लिए उपयुक्त नहीं समझी जाती थी)। 'और मैंने इसका नाम 'मरयम' रखा है और मैं इसको और इसकी संतान को धिक्कारे हुए शैतान से तेरी पनाह में देती हूँ।'"


4. पूर्ण व्याख्या और तफ्सीर (Full Explanation & Tafseer):

यह आयत हन्ना (इमरान की पत्नी) की कहानी को आगे बढ़ाती है। पिछली आयत में उन्होंने अपने गर्भ में पल रहे बच्चे को अल्लाह की सेवा के लिए समर्पित कर दिया था। अब वह प्रसव के बाद की स्थिति और उनकी भावनाओं को दर्शाती है।

  • प्रसव के बाद की प्रतिक्रिया (The Post-Birth Reaction): हन्ना का कहना "इन्नी वदअतुहा उन्सा" (मैंने इसे लड़की जना है) एक आश्चर्य, थोड़ी सी निराशा, लेकिन अल्लाह के फैसले पर पूर्ण सहमति का मिश्रण है। वह जानती थीं कि उस समय बनी इस्राइल की परंपरा में मस्जिद की सेवा का काम आमतौर पर पुरुष ही करते थे। उनकी मन्नत पूरी नहीं होती दिख रही थी।

  • अल्लाह का पूर्ण ज्ञान (Allah's Perfect Knowledge): तुरंत बाद ही वह कहती हैं, "वल्लाहु आ'लमु बिमा वदअत" (और अल्लाह बेहतर जानता है कि उसने क्या जना)। यह उनके ईमान की पकड़ और अल्लाह के फैसले पर पूर्ण भरोसे को दर्शाता है। वह मानती हैं कि अल्लाह का ज्ञान उनकी सीमित समझ से कहीं बढ़कर है।

  • "व-लैस अज़-ज़करु कल-उन्सा" का अर्थ (Meaning of "and the male is not like the female"): यह वाक्यांश अक्सर गलत समझा जाता है। यहाँ इसका संदर्भ उस जमाने की सामाजिक-धार्मिक व्यवस्था से है। हन्ना यह नहीं कह रही हैं कि लड़का लड़की से बेहतर है। बल्कि, वह उस समय की सच्चाई बता रही हैं कि "मेरी मन्नत के मुताबिक, (मस्जिद की सेवा के लिए) एक लड़का, लड़की के समान नहीं होता।" यानी लड़की को वह सेवा करने की इजाजत नहीं दी जाती थी, इसलिए उनकी मन्नत पूरी नहीं हो पा रही थी। लेकिन अल्लाह ने उनकी इस मन्नत को एक अद्भुत तरीके से स्वीकार किया, जैसा कि आगे की आयतों में आता है।

  • नामकरण और दुआ (Naming and Supplication): हन्ना ने अपनी बेटी का नाम "मरयम" रखा, जिसका अर्थ है "इबादत करने वाली" या "अल्लाह की बंदी"। यह नाम ही बच्चे के भविष्य और चरित्र का संकेत देता है। फिर वह अल्लाह से एक अद्वितीय दुआ माँगती हैं: "इन्नी उईज़ुहा बिका व जुर्रिय्यतहा मिनश शैतानिर रजीम" (मैं इसको और इसकी संतान को धिक्कारे हुए शैतान से तेरी पनाह में देती हूँ)। यह दुआ इतनी कारगर साबित हुई कि अल्लाह ने हज़रत मरयम और उनके बेटे हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) दोनों को शैतान के वस्वसे (बुरे प्रभाव) से सुरक्षित रखा।


5. सीख और शिक्षा (Lesson & Moral):

  1. अल्लाह के फैसले पर संतुष्टि (Contentment with Allah's Decree): हन्ना ने सिखाया कि इंसान को अपनी उम्मीदों के विपरीत परिणाम आने पर भी अल्लाह के फैसले पर राजी रहना चाहिए, क्योंकि अल्लाह का ज्ञान और योजना सबसे बेहतर है।

  2. लिंग-आधारित पूर्वाग्रह का खंडन (Rejection of Gender Bias): यह आयत अप्रत्यक्ष रूप से उस सोच की आलोचना करती है जो लड़कियों को कमतर समझती है। अल्लाह ने हन्ना की लड़की (मरयम) को उन सभी लड़कों से श्रेष्ठ बना दिया जो मस्जिद की सेवा में थे।

  3. संतान की अच्छी परवरिश (Good Upbringing of Children): माता-पिता का पहला कर्तव्य है कि वे अपनी संतान को बुराइयों और शैतानी प्रभावों से बचाने की दुआ करें और उन्हें अच्छा नाम दें।

  4. दुआ की ताकत (Power of Prayer): एक माँ की दुआ का क्या असर होता है, यह इस आयत से स्पष्ट है। मरयम और ईसा (अलैहिस्सलाम) दोनों ही शैतान के प्रभाव से मुक्त रहे।


6. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present & Future):

  • अतीत में (In the Past):

    • जाहिलिय्यत की सोच का जवाब: अरब में जाहिलिय्यत के दौर में लड़कियों को जीवित दफन कर दिया जाता था। यह आयत और मरयम का पूरा किस्सा उस निकृष्ट सोच के खिलाफ एक शक्तिशाली प्रहार था।

    • यहूदियों के लिए सबक: यह कहानी बनी इस्राइल को दिखाती थी कि अल्लाह ने एक लड़की को चुनकर उनकी लिंग-आधारित धारणाओं को गलत साबित कर दिया।

  • वर्तमान में (In the Present):

    • लैंगिक समानता का इस्लामी दृष्टिकोण: आज जब दुनिया लैंगिक समानता की बहस कर रही है, यह आयत इस्लाम का स्पष्ट दृष्टिकोण पेश करती है। इस्लाम लड़की को कमतर नहीं, बल्कि एक ऐसा उपहार मानता है जिसे अल्लाह ने हन्ना जैसी पवित्र महिला के लिए चुना।

    • माता-पिता के लिए शिक्षा: आज के माता-पिता को लड़का पैदा होने पर खुशी और लड़की पैदा होने पर निराशा महसूस होती है। यह आयत उन्हें सिखाती है कि संतान का लिंग अल्लाह की तरफ से एक विशेष योजना के तहत होता है और एक लड़की भी मरयम बन सकती है।

    • बच्चों की सुरक्षा की दुआ: आज का समाज बच्चों के लिए और भी ज्यादा खतरनाक हो गया है। हन्ना की यह दुआ हर मुसलमान माता-पिता के लिए एक स्थायी प्रेरणा है कि वे रोज अपने बच्चों को शैतान के हर प्रभाव से अल्लाह की पनाह में माँगें।

  • भविष्य के लिए (For the Future):

    • शाश्वत आदर्श: हन्ना का अल्लाह पर भरोसा और मरयम का चरित्र भविष्य की हर पीढ़ी के लिए, विशेषकर महिलाओं और लड़कियों के लिए, गर्व और प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा।

    • सामाजिक बुराई के खिलाफ हथियार: भविष्य में भी जहाँ कहीं लड़कियों के साथ भेदभाव होगा, यह आयत मुसलमानों के लिए उसके खिलाफ खड़े होने का एक धार्मिक आधार प्रदान करेगी।

    • आध्यात्मिक विरासत: यह आयत मुसलमानों को यह विरासत सौंपती है कि उनकी सबसे बड़ी दौलत उनका ईमान और अल्लाह के साथ उनका रिश्ता है, न कि दुनियावी समझदारी या सामाजिक रिवाज।

निष्कर्ष: कुरआन 3:36 एक लड़की के जन्म पर एक माँ की प्रार्थना के माध्यम से लैंगिक पूर्वाग्रह को चुनौती देती है, अल्लाह की दया की विशालता को दर्शाती है, और आने वाली पीढ़ियों के लिए आस्था और समर्पण का एक शाश्वत पाठ स्थापित करती है।