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क़ुरआन की आयत 3:35 की पूर्ण व्याख्या

 

1. पूरी आयत अरबी में:

إِذْ قَالَتِ امْرَأَتُ عِمْرَانَ رَبِّ إِنِّي نَذَرْتُ لَكَ مَا فِي بَطْنِي مُحَرَّرًا فَتَقَبَّلْ مِنِّي ۖ إِنَّكَ أَنتَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ

2. आयत का शब्द-दर-शब्द अर्थ (Word-to-Word Meaning):

  • إِذْ (इज़): जब (एक समय की ओर इशारा करता है)।

  • قَالَتِ (क़ालत): कहा।

  • امْرَأَتُ (इमराअतु): पत्नी ने।

  • عِمْرَانَ (इमरान): इमरान की।

  • رَبِّ (रब्ब): हे मेरे पालनहार!

  • إِنِّي (इन्नी): निश्चित ही मैं।

  • نَذَرْتُ (नज़ारतु): मैंने नज़्र (मन्नत) की।

  • لَكَ (लक): तेरे लिए।

  • مَا (मा): जो कुछ।

  • فِي (फी): में।

  • بَطْنِي (बत्नी): मेरे पेट।

  • مُحَرَّرًا (मुहर्ररन): आज़ाद (केवल तेरी इबादत के लिए)।

  • فَتَقَبَّلْ (फ़ता क़ब्बिल): तो तू कबूल कर ले।

  • مِنِّي (मिन्नी): मुझसे।

  • ۖ إِنَّكَ (इन्नक): निश्चित रूप से तू ही।

  • أَنتَ (अन्त): तू है।

  • السَّمِيعُ (अस-समीउ): सब कुछ सुनने वाला।

  • الْعَلِيمُ (अल-अलीम): सब कुछ जानने वाला।

3. आयत का पूरा अर्थ (Full Translation):

"याद कीजिए) जब इमरान की पत्नी ने कहा: 'हे मेरे पालनहार! मैंने तेरे नाम मन्नत मानी है कि जो कुछ मेरे पेट में है, वह तेरी सेवा के लिए स्वतंत्र (मुक्त) है। پس तू मेरी ओर से (इसे) कबूल कर ले। निश्चित रूप से तू ही सब कुछ सुनने और जानने वाला है।'"


4. पूर्ण व्याख्या और तफ्सीर (Full Explanation & Tafseer):

यह आयत सूरह आल-ए-इमरान की उस कहानी की शुरुआत है जिसमें हज़रत मरयम (मरियम), हज़रत ईसा (ईसा मसीह) और हज़रत मरयम (मरियम) की माँ हन्ना (इमरान की पत्नी) का जिक्र है। यह एक माँ की अल्लाह के प्रति गहरी आस्था और समर्पण की अद्भुत मिसाल पेश करती है।

  • ऐतिहासिक संदर्भ (Historical Context): इमरान (जिसे ईसाई परंपरा में जोआकिम कहा जाता है) बनी इस्राइल के एक बड़े धार्मिक नेता और विद्वान थे। उनकी पत्नी (जिनका नाम हन्ना या अन्ना बताया जाता है) बहुत पवित्र महिला थीं, लेकिन वह बच्चे से वंचित थीं। उन्होंने अल्लाह से बहुत दुआ की कि अगर उन्हें संतान प्राप्त होगी तो वह उसे बैतुल मुक़द्दस (मस्जिद-ए-अक्सा) की सेवा के लिए समर्पित कर देंगी।

  • मन्नत की गहराई (Depth of the Vow):

    • "मा फी बत्नी" (जो कुछ मेरे पेट में है): यह वाक्यांश उनके पूर्ण समर्पण को दर्शाता है। वह यह नहीं जानती थीं कि उनके गर्भ में लड़का है या लड़की, लेकिन फिर भी उन्होंने बिना किसी शर्त के उसे अल्लाह के लिए वक्फ (समर्पित) कर दिया।

    • "मुहर्ररन" (स्वतंत्र/मुक्त): इस शब्द का बहुत गहरा अर्थ है। इसका मतलब था कि उनकी संतान दुनियावी कामों (शादी-ब्याह, नौकरी, व्यापार) से आज़ाद होकर पूरी तरह से अल्लाह की इबादत और बैतुल मुक़द्दस की सेवा में लगी रहेगी। उस जमाने में यह एक बहुत बड़ी सम्मान की बात मानी जाती थी।

  • दुआ का तरीका (The Manner of Prayer): हन्ना ने अपनी दुआ को एक विश्वासपूर्ण याचना के रूप में पेश किया। वह अल्लाह को उसके गुणों "अस-समीउल अलीम" (सब कुछ सुनने और जानने वाला) के साथ याद करती हैं। यह दर्शाता है कि दुआ करते समय अल्लाह की महानता और उसके ज्ञान पर पूरा भरोसा होना चाहिए।


5. सीख और शिक्षा (Lesson & Moral):

  1. अल्लाह पर पूर्ण भरोसा (Complete Trust in Allah): हन्ना ने बच्चे के लिंग का पता होने से पहले ही मन्नत मान ली। यह अल्लाह के फैसले पर पूरी तरह से संतुष्टि और भरोसे की निशानी है।

  2. बच्चों का उद्देश्य (The Purpose of Children): यह आयत माता-पिता को सिखाती है कि बच्चे अल्लाह की एक अमानत हैं। उनकी परवरिश का मकसद सिर्फ दुनियावी सफलता नहीं, बल्कि उन्हें अल्लाह का एक अच्छा बंदा बनाना भी होना चाहिए।

  3. दुआ की शक्ति (Power of Prayer): एक सच्चे दिल और पूरे यकीन के साथ की गई दुआ अल्लाह जरूर कबूल करता है, भले ही वह कितनी ही बड़ी क्यों न हो।

  4. महिलाओं का सम्मान (Honor of Women): इस आयत में एक महिला की आस्था और समर्पण को केंद्र में रखा गया है, जो इस्लाम में महिलाओं के उच्च दर्जे को दर्शाता है।


6. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present & Future):

  • अतीत में (In the Past):

    • यहूदियों के लिए एक सबक: यह कहानी बनी इस्राइल को उनकी अपनी धार्मिक विरासत की याद दिलाती थी और दर्शाती थी कि हज़रत मरयम का परिवार कितना पवित्र था, जिससे पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के आने का मार्ग प्रशस्त हुआ।

    • मुसलमानों के लिए ज्ञान: प्रारंभिक मुसलमानों ने इस आयत से सीखा कि अल्लाह की राह में कुर्बानी और समर्पण की भावना क्या होती है।

  • वर्तमान में (In the Present):

    • माता-पिता के लिए मार्गदर्शन: आज के माता-पिता अक्सर बच्चों को दुनियावी शिक्षा और करियर में ही उलझा देते हैं। यह आयत उन्हें याद दिलाती है कि बच्चे की पहली और सबसे बड़ी जिम्मेदारी उसे एक ईमानदार और अल्लाह वाला इंसान बनाना है।

    • महिला सशक्तिकरण: एक आधुनिक संदर्भ में, यह आयत दिखाती है कि एक महिला धार्मिक मामलों में कितनी सक्रिय और निर्णायक भूमिका निभा सकती है। वह केवल एक गृहिणी नहीं, बल्कि इतिहास की धारा बदलने वाली एक शख्सियत है।

    • समर्पण की कमी: आज के माहौल में जहाँ हर चीज़ स्वार्थ और भौतिकवाद से जुड़ी है, हन्ना का यह बिना शर्त समर्पण हमें आध्यात्मिकता और निस्वार्थ भाव की याद दिलाता है।

  • भविष्य के लिए (For the Future):

    • शाश्वत मार्गदर्शन: भविष्य की हर पीढ़ी के लिए, यह आयत यह सिद्धांत स्थापित करती है कि अल्लाह के साथ रिश्ता व्यक्तिगत, सीधा और पूर्ण समर्पण वाला होना चाहिए।

    • आशा का संदेश: भविष्य में जब भी कोई दंपती संतान सुख से वंचित रहेगा या कोई माँ अपने बच्चे के भविष्य को लेकर चिंतित होगी, तो हन्ना की यह दुआ और उनका अल्लाह पर भरोसा उसके लिए प्रकाश का स्तंभ बनेगा।

    • ईमान की विरासत: यह आयत भविष्य के मुसलमानों को यह विरासत सौंपती है कि उन्हें अपनी आने वाली पीढ़ियों को केवल दुनिया दारी नहीं, बल्कि दीन की समझ और अल्लाह के प्रति समर्पण की भावना भी देनी है।

निष्कर्ष: कुरआन 3:35 केवल एक ऐतिहासिक घटना का बयान नहीं है। यह ईमान, समर्पण, दुआ और अल्लाह पर भरोसे का एक जीवंत सबक है जो हर युग में मनुष्य को प्रेरणा और मार्गदर्शन देता रहेगा।