1. पूरी आयत अरबी में:
ذُرِّيَّةً بَعْضُهَا مِن بَعْضٍ ۗ وَاللَّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ
2. आयत का शब्द-दर-शब्द अर्थ (Word-to-Word Meaning):
ذُرِّيَّةً (जुर्रिय्यतन): एक संतति, एक वंश, एक सन्तान।
بَعْضُهَا (बअज़ुहा): उनमें से कुछ।
مِن (मिन): से।
بَعْضٍ (बअज़िन): कुछ (दूसरे)।
ۗ وَاللَّهُ (वल्लाहु): और अल्लाह।
سَمِيعٌ (समीउन): सुनने वाला है।
عَلِيمٌ (अलीमुन): जानने वाला है।
3. आयत का पूरा अर्थ (Full Translation):
"(ये सब) एक ही वंश (की श्रृंखला) है, जिसका एक भाग दूसरे भाग से (जुड़ा हुआ) है। और अल्लाह सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ जानने वाला है।"
4. पूर्ण व्याख्या और तफ्सीर (Full Explanation & Tafseer):
यह आयत पिछली आयत (3:33) का ही विस्तार है। आयत 3:33 में अल्लाह ने बताया कि उसने आदम, नूह, इब्राहीम के परिवार और इमरान के परिवार को दुनिया भर के लोगों पर चुना। अब इस आयत (3:34) में इस चयन की प्रकृति को समझाया जा रहा है।
एकता की श्रृंखला (The Chain of Unity): "जुर्रिय्यतन बअज़ुहा मिन बअज़िन" यानी "एक संतति है, जिसका एक हिस्सा दूसरे हिस्से से जुड़ा हुआ है।" इसका सीधा सा अर्थ है कि ये सभी पैगंबर और उनके पवित्र परिवार एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। यह संबंध सिर्फ खून का नहीं है, बल्कि एक "आध्यात्मिक वंशावली" (Spiritual Lineage) का है।
हज़रत इब्राहीम, हज़रत इस्माइल और हज़रत इसहाक के पिता थे।
हज़रत इसहाक, हज़रत याकूब के पिता थे।
हज़रत याकूब के वंश में हज़रत यूसुफ, मूसा, दाऊद, सुलेमान और ईसा (अलैहिमुस्सलाम) जैसे पैगंबर हुए।
अंत में, इसी पवित्र श्रृंखला की अंतिम कड़ी हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) हैं, जो हज़रत इब्राहीम के बेटे हज़रत इस्माइल के वंश से हैं।
धर्म की निरंतरता (Continuity of Religion): यह आयत बताती है कि इस्लाम (अल्लाह के प्रति आत्मसमर्पण) कोई नया धर्म नहीं है, बल्कि वही सनातन और एकमात्र सच्चा धर्म है जिसे एक के बाद एक आने वाले सभी पैगंबर लेकर आए। हर नया पैगंबर पिछले पैगंबरों द्वारा स्थापित सच्चाई की पुष्टि करता था।
अल्लाह के गुण (Attributes of Allah): आयत का अंत "वल्लाहु समीउन अलीमुन" से होता है। यह बताता है कि अल्लाह हर चीज को सुनता और जानता है।
सब कुछ सुनने वाला (समी): वह अपने पैगंबरों की दुआएं, उनकी पुकार और उनके दुश्मनों के षड्यंत्रों को सुनता है।
सब कुछ जानने वाला (अलीम): वह अपने चुने हुए बंदों के दिलों की गहराइयों, उनके इरादों और उनकी योग्यता को पूरी तरह जानता है। उसका चुनाव किसी अज्ञानता के आधार पर नहीं, बल्कि पूर्ण ज्ञान के आधार पर होता है।
5. सीख और शिक्षा (Lesson & Moral):
धार्मिक एकता की पहचान: इस आयत से पता चलता है कि सभी अब्राहमी धर्म (इस्लाम, ईसाई, यहूदी) मूल रूप से एक ही स्रोत से निकले हैं। उनके पैगंबर आपस में भाई-भाई हैं। इसलिए अलग-अलग धर्मों के लोगों के बीच द्वेष और झगड़ा उचित नहीं है।
पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की पुष्टि: यह आयत पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के आने की भविष्यवाणी की तरह है। यह बताती है कि वह इसी पवित्र श्रृंखला में से हैं और उनका आना कोई नई या अलग बात नहीं है।
अल्लाह पर भरोसा: जब अल्लाह सब कुछ सुनने और जानने वाला है, तो मुसलमान को यह भरोसा रखना चाहिए कि अल्लाह उसकी हर प्रार्थना सुनता है और उसकी हर परिस्थिति को जानता है। इससे इंसान को आंतरिक शांति और धैर्य मिलता है।
6. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present & Future):
अतीत में (In the Past):
यहूदियों और ईसाइयों के लिए संदेश: जब यह आयत उतरी, तो यह मदीना के यहूदियों और ईसाइयों के लिए एक स्पष्ट संदेश था कि पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) उन्हीं के पूर्वज पैगंबरों की श्रृंखला में से हैं। इसलिए उन्हें उनपर ईमान लाने में कोई संकोच नहीं करना चाहिए।
मुसलमानों के लिए ज्ञान: प्रारंभिक मुसलमानों को यह समझ आई कि उनका ईमान कोई नई चीज नहीं है, बल्कि इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) के दीन की पुष्टि और पूर्णता है।
वर्तमान में (In the Present):
धार्मिक कट्टरता का इलाज: आज की दुनिया में धार्मिक कट्टरता और संकीर्णता एक बड़ी समस्या है। यह आयत सभी धर्मों के अनुयायियों, विशेषकर यहूदियों, ईसाइयों और मुसलमानों को याद दिलाती है कि उनके पैगंबर एक ही पवित्र परिवार के सदस्य थे। यह संदेश अंत-धार्मिक सद्भाव और संवाद के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
इस्लामोफोबिया का जवाब: जो लोग यह कहते हैं कि इस्लाम एक "बाहरी" या "अजनबी" धर्म है, इस आयत के पास उनके लिए जवाब है। यह साबित करती है कि इस्लाम उन्हीं पैगंबरों की शिक्षाओं का विस्तार और पूर्ण रूप है जिन्हें यहूदी और ईसाई भी मानते हैं।
व्यक्तिगत प्रेरणा: आज का मुसलमान जब अपने ईमान को कमजोर महसूस करे, तो यह आयत उसे एक विशाल और गौरवशाली आध्यात्मिक विरासत से जोड़ती है, जिससे उसे गर्व और जिम्मेदारी दोनों का एहसास होता है।
भविष्य के लिए (For the Future):
शाश्वत एकता का सिद्धांत: यह आयत भविष्य की सभी पीढ़ियों के लिए एक स्थायी सिद्धांत स्थापित करती है - "एकेश्वरवाद की शिक्षा एक ही और निरंतर है।" यह संदेश हमेशा प्रासंगिक रहेगा।
मानवता के लिए आधार: भविष्य में जब भी धर्म के नाम पर टकराव होगा, यह आयत एकता के सूत्र के रूप में काम करेगी। यह बताएगी कि सभी का मार्गदर्शक एक ही अल्लाह है और सभी का धर्म मूल रूप से एक ही था। यह मानवता को आपस में जोड़ने वाला संदेश सदैव जीवंत रहेगा।
निष्कर्ष: कुरआन 3:34 एक छोटी सी आयत है, लेकिन इसका संदेश बहुत विशाल और गहरा है। यह इतिहास, वर्तमान और भविष्य को जोड़ती है और सभी इंसानों को एक ही पवित्र विरासत का हिस्सा बताकर प्रेम और भाईचारे का रास्ता दिखाती है।