1. पूरी आयत अरबी में:
هُنَالِكَ دَعَا زَكَرِيَّا رَبَّهُ ۖ قَالَ رَبِّ هَبْ لِي مِن لَّدُنكَ ذُرِّيَّةً طَيِّبَةً ۖ إِنَّكَ سَمِيعُ الدُّعَاءِ
2. आयत का शब्द-दर-शब्द अर्थ (Word-to-Word Meaning):
هُنَالِكَ (हुनालिक): वहाँ / उसी समय / उस स्थिति में।
دَعَا (दआ): पुकारा / दुआ की।
زَكَرِيَّا (ज़करिय्या): जकरिया (अलैहिस्सलाम) ने।
رَبَّهُ (रब्ब-हु): अपने पालनहार को।
ۖ قَالَ (क़ाल): कहा।
رَبِّ (रब्ब): हे मेरे पालनहार!
هَبْ (हब): प्रदान कर / दे दे।
لِي (ली): मुझे।
مِن (मिन): से।
لَّدُنكَ (लदुन-का): तेरे पास से / तेरी विशेष कृपा से।
ذُرِّيَّةً (ज़ुर्रिय्यतन): संतान।
طَيِّبَةً (तय्यिबतन): पवित्र / शुद्ध / अच्छी।
ۖ إِنَّكَ (इन्न-का): निश्चित रूप से तू ही।
سَمِيعُ (समीउ): सुनने वाला है।
الدُّعَاءِ (अद-दुआ): दुआ का।
3. आयत का पूरा अर्थ (Full Translation):
"उसी समय जकरिया ने अपने पालनहार को पुकारा। उन्होंने कहा: 'हे मेरे पालनहार! मुझे अपनी ओर से एक पवित्र संतान प्रदान कर। निश्चित रूप से तू दुआ सुनने वाला है।'"
4. पूर्ण व्याख्या और तफ्सीर (Full Explanation & Tafseer):
यह आयत पिछली आयतों के तार्किक परिणाम को दर्शाती है। हज़रत जकरिया (अलैहिस्सलाम) ने हज़रत मरयम के पास अल्लाह की ओर से आने वाली रोज़ी का चमत्कार देखा, और इससे उनके दिल में एक गहरी आशा और इच्छा जागृत हुई।
"हुनालिक" का महत्व (Significance of "At that place and time"): यह शब्द बहुत महत्वपूर्ण है। यह दर्शाता है कि हज़रत जकरिया की दुआ कोई पहले से प्लान की हुई दुआ नहीं थी, बल्कि मरयम में अल्लाह की कृपा देखकर उनके हृदय में उठने वाली एक तत्कालिक, स्वाभाविक और शक्तिशाली प्रतिक्रिया थी। उन्होंने सोचा: "जिस अल्लाह ने बुढ़ापे में एक लड़की (हन्ना) की मन्नत को इस तरह स्वीकार किया और एक अनाथ लड़की (मरयम) की इतनी ख़ास देखभाल की, वह मेरी भी दुआ क्यों नहीं सुनेगा?"
दुआ की विशेषताएँ (Characteristics of the Prayer):
"हब ली" (मुझे प्रदान कर): यह एक विनम्र अनुरोध है, एक माँग नहीं।
"मिन लदुनका" (तेरी ओर से / तेरी विशेष कृपा से): यह इस दुआ का केंद्रीय भाग है। जकरिया (अलैहिस्सलाम) जानते थे कि उनकी उम्र अधिक है और पत्नी बाँझ है। मानवीय तौर पर संतान का कोई रास्ता नहीं था। इसलिए उन्होंने सीधे अल्लाह के विशेष खजाने ("लदुन") से माँगा। यह पूर्ण रूप से अल्लाह की शक्ति और दया पर निर्भरता को दर्शाता है।
"ज़ुर्रिय्यतन तय्यिबतन" (पवित्र संतान): उनकी इच्छा सिर्फ एक बच्चा पाने की नहीं थी। उन्होंने एक "तय्यिब" (पवित्र, शुद्ध, अच्छे चरित्र वाली) संतान की कामना की। उनका उद्देश्य केवल दुनियावी वारिस पाना नहीं, बल्कि एक ऐसा उत्तराधिकारी चाहना था जो अल्लाह के दीन की सेवा कर सके।
दुआ का आधार (Basis of the Prayer): उन्होंने अपनी दुआ का आधार अल्लाह के गुण को बताया: "इन्नका समीउद दुआ" (निश्चित रूप से तू दुआ सुनने वाला है)। यह एक दृढ़ विश्वास की अभिव्यक्ति है। वह यह कहकर अल्लाह को याद दिला रहे हैं कि "हे अल्लाह, तू तो हर दुआ सुनता है, इसलिए मेरी दुआ भी सुन ले।"
5. सीख और शिक्षा (Lesson & Moral):
दुआ की शक्ति में विश्वास (Belief in the Power of Prayer): यह आयत सिखाती है कि दुआ एक शक्तिशाली हथियार है। मनुष्य को हर जरूरत और इच्छा के लिए अल्लाह से दुआ करनी चाहिए, चाहे वह मानवीय रूप से कितनी भी असंभव क्यों न लगे।
अच्छी संतान की कामना (Desire for Righteous Offspring): माता-पिता की सबसे बड़ी दुआ यह होनी चाहिए कि अल्लाह उन्हें नेक और अच्छे चरित्र वाली संतान दे। धन और दौलत से ज्यादा महत्वपूर्ण संतान की पवित्रता है।
अल्लाह की कृपा से निराशा नहीं (Do Not Despair of Allah's Mercy): हज़रत जकरिया बूढ़े थे और उनकी पत्नी बाँझ थी, फिर भी उन्होंने आशा नहीं खोई। यह उन सभी लोगों के लिए एक प्रेरणा है जो किसी चीज से निराश हैं।
दुआ का सही तरीका (The Correct Manner of Prayer): दुआ विनम्रता के साथ, अल्लाह के गुणों को याद करते हुए और उसकी दया पर भरोसा रखकर करनी चाहिए।
6. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present & Future):
अतीत में (In the Past):
एक पैगंबर का व्यक्तिगत संघर्ष: यह आयत दिखाती है कि पैगंबर भी मानवीय इच्छाओं और संघर्षों से गुजरते थे। हज़रत जकरिया को भी संतान की चाहत थी और उन्होंने इसे अल्लाह के सामने रखा।
अल्लाह की शक्ति का प्रमाण: इस दुआ का स्वीकार होना (जैसा कि अगली आयतों में आता है) बनी इस्राइल के लिए अल्लाह की शक्ति का एक और प्रमाण था।
वर्तमान में (In the Present):
बांझपन/संतान सुख के इच्छुक लोगों के लिए आशा: आज लाखों दंपती संतान सुख से वंचित हैं। यह आयत उनके लिए एक विशाल आशा का स्रोत है। यह उन्हें सिखाती है कि डॉक्टर और इलाज के बाद भी, असली रचयिता अल्लाह है और उसी से दुआ करनी चाहिए।
माता-पिता के लिए जागरूकता: आज के माता-पिता अक्सर बच्चों से दुनियावी सफलता (डॉक्टर, इंजीनियर बनने) की उम्मीद रखते हैं। यह आयत उन्हें याद दिलाती है कि सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण दुआ बच्चे के अच्छे चरित्र ("तय्यिब") के लिए होनी चाहिए।
निराशा के युग में आशा: आज का माहौल निराशा, तनाव और अवसाद से भरा है। यह आयत हर मुसलमान को सिखाती है कि किसी भी मुसीबत में घबराना नहीं चाहिए और अल्लाह से दुआ करते रहना चाहिए, क्योंकि वह "समीउद दुआ" है।
भविष्य के लिए (For the Future):
शाश्वत मार्गदर्शन: भविष्य की हर पीढ़ी के लिए, यह आयत दुआ के सही तरीके, इच्छा और विश्वास के सही संतुलन को सिखाती रहेगी।
आशा का स्थायी स्रोत: जब तक दुनिया रहेगी, लोगों को निराशा और मुश्किल हालात का सामना करना पड़ेगा। हज़रत जकरिया की यह दुआ हमेशा उनके लिए एक मिसाल बनी रहेगी कि कैसे असंभव परिस्थितियों में भी अल्लाह पर भरोसा रखा जाए।
ईमान की ताकत: यह आयत भविष्य के मुसलमानों के ईमान को मजबूत करती रहेगी, यह दिखाकर कि अल्लाह के सामने कोई असंभव चीज नहीं है और उसका खजाना असीमित है।
निष्कर्ष: कुरआन 3:38 सिर्फ एक पैगंबर की व्यक्तिगत दुआ का बयान नहीं है। यह मानवीय आशा, अल्लाह पर अटूट विश्वास, और एक पवित्र लक्ष्य के लिए की गई दुआ का एक सार्वभौमिक पाठ है। यह हर युग के इंसान को यह सिखाती है कि अपनी हर जरूरत, चाहे वह कितनी भी बड़ी क्यों न हो, सीधे अल्लाह के दरबार में ले जानी चाहिए।