﴿رَبَّنَا آمَنَّا بِمَا أَنزَلْتَ وَاتَّبَعْنَا الرَّسُولَ فَاكْتُبْنَا مَعَ الشَّاهِدِينَ﴾
(Surah Aal-e-Imran, Ayat: 53)
अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning):
رَبَّنَا (Rabbana): हे हमारे पालनहार!
آمَنَّا (Aamannaa): हम ईमान लाए।
بِمَا أَنزَلْتَ (Bimaa anzalta): उस (वह्य) पर जो तूने उतारी।
وَاتَّبَعْنَا الرَّسُولَ (Wattaba'nar-Rasool): और हमने रसूल (पैगंबर) का अनुसरण किया।
فَاكْتُبْنَا (Faktubnaa): तो तू हमें लिख दे (शामिल कर दे)।
مَعَ الشَّاهِدِينَ (Ma'ash-Shaahideen): गवाही देने वालों के साथ।
पूरी व्याख्या (Full Explanation in Hindi):
यह आयत हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) के उन सच्चे शिष्यों (हवारियों) की दुआ है, जिन्होंने पिछली आयत में अपने ईमान और समर्पण की घोषणा की थी। यह दुआ एक आदर्श मोमिन (विश्वासी) के लिए एक संपूर्ण प्रार्थना है, जो दो मुख्य कार्यों और एक मुख्य इच्छा से मिलकर बनी है।
हमने ईमान स्वीकार किया (आमन्ना): यह केवल मौखिक स्वीकारोक्ति नहीं है। यह दिल से स्वीकार करने, मन से मानने और जुबान से कबूल करने का सम्मिलित रूप है। उन्होंने उस सभी दिव्य ज्ञान (वह्य) पर ईमान लाया जो अल्लाह की तरफ से उतारा गया, चाहे वह तौरात हो या इंजील।
और हमने रसूल का अनुसरण किया (वत्तबन्ना-रसूल): केवल किताब पर ईमान लाना ही काफी नहीं है। उस किताब को लेकर आने वाले रसूल (हज़रत ईसा) के व्यावहारिक मार्गदर्शन और आदेशों का पालन करना भी जरूरी है। यह ईमान और अमल (कार्य) के बीच का संबंध दर्शाता है।
तो हमें गवाही देने वालों में लिख दें (फक्तुब्ना मअश-शाहिदीन): यह उनकी अंतिम और सबसे बड़ी इच्छा है। "शाहिदीन" (गवाही देने वालों) से तात्पर्य उन लोगों से है जो अपने समय में सत्य का प्रचार-प्रसार करते हैं और कयामत के दिन अपनी और अपनी कौम की ओर से गवाही देंगे। हवारी अल्लाह से दुआ करते हैं कि उन्हें ऐसे ही सच्चे और सक्रिय ईमान वालों की सूची में शामिल कर ले।
सीख और शिक्षा (Lesson and Moral):
ईमान और अनुसरण का द्वैत: सच्चा ईमान दो चीजों का मेल है: अल्लाह की किताब पर विश्वास और उसके पैगंबर के मार्गदर्शन का पालन। एक के बिना दूसरा अधूरा है।
एक आदर्श दुआ: यह आयत हमें एक संपूर्ण दुआ सिखाती है। इसमें अल्लाह की तारीफ (रब्बना), अपने कर्मों का बयान (आमन्ना...), और एक उच्च लक्ष्य की कामना (फक्तुब्ना...) शामिल है। यह हमारी अपनी दुआओं के लिए एक नमूना है।
सक्रिय ईमान की आकांक्षा: एक मुसलमान का लक्ष्य सिर्फ जन्नत पाना ही नहीं, बल्कि अल्लाह के नज़दीक और उसके "शाहिद" (गवाह) बन्दों में शामिल होना है। यह ईमान की एक ऊँची अवस्था है जहाँ इंसान सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि पूरी मानवजाति के लिए एक मिसाल और गवाह बनता है।
अतीत, वर्तमान और भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):
अतीत (Past) के लिए: हवारियों के लिए, यह दुआ उनके संकल्प और उनकी आकांक्षाओं को दर्शाती थी। उन्होंने केवल दुनियावी सफलता नहीं, बल्कि अल्लाह के यहाँ एक उच्च दर्जे की कामना की।
वर्तमान (Present) के लिए: आज के संदर्भ में यह आयत हमें यह सिखाती है:
एक आदर्श मुसलमान का चरित्र: आज का मुसलमान भी इस दुआ को अपना सकता है। उसे कुरआन और सुन्नत पर ईमान लाना चाहिए और पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के मार्ग का अनुसरण करना चाहिए।
दावत का काम: "शाहिदीन" में शामिल होने की दुआ का मतलब है कि हमें इस्लाम के संदेश को फैलाने और उसकी गवाही देने वाला बनने की कोशिश करनी चाहिए।
आध्यात्मिक लक्ष्य: हमें अपनी दुआओं में दुनियावी चीजों के साथ-साथ आध्यात्मिक ऊँचाइयों की भी कामना करनी चाहिए।
भविष्य (Future) के लिए: यह आयत कयामत तक हर मुसलमान के लिए एक "आध्यात्मिक घोषणापत्र" (Spiritual Manifesto) बनी रहेगी। यह हर पीढ़ी के ईमान वालों को याद दिलाती रहेगी कि उनका लक्ष्य क्या होना चाहिए: "ईमान लाना, पैगंबर का अनुसरण करना और अल्लाह के सच्चे गवाह बनना।" यह दुआ हमेशा मुसलमानों को एक सक्रिय, जिम्मेदार और आदर्शवादी समुदाय बनने की प्रेरणा देती रहेगी।