﴿إِذْ قَالَ اللَّهُ يَا عِيسَىٰ إِنِّي مُتَوَفِّيكَ وَرَافِعُكَ إِلَيَّ وَمُطَهِّرُكَ مِنَ الَّذِينَ كَفَرُوا وَجَاعِلُ الَّذِينَ اتَّبَعُوكَ فَوْقَ الَّذِينَ كَفَرُوا إِلَىٰ يَوْمِ الْقِيَامَةِ ۖ ثُمَّ إِلَيَّ مَرْجِعُكُمْ فَأَحْكُمُ بَيْنَكُمْ فِيمَا كُنْتُمْ فِيهِ تَخْتَلِفُونَ﴾
(Surah Aal-e-Imran, Ayat: 55)
अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning):
إِذْ قَالَ اللَّهُ (Idh Qaalal-Laahu): (याद करो) जब अल्लाह ने कहा।
يَا عِيسَىٰ (Yaa 'Eesaa): "ऐ ईसा!"
إِنِّي مُتَوَفِّيكَ (Innee Mutawaffeeka): निश्चित रूप से मैं तुझे उठाने वाला हूँ।
وَرَافِعُكَ إِلَيَّ (Wa Raafi'uka ilayya): और तुझे अपनी ओर उठाने वाला हूँ।
وَمُطَهِّرُكَ (Wa Mutahhiruka): और तुझे पवित्र करने वाला हूँ।
مِنَ الَّذِينَ كَفَرُوا (Minal-ladheena kafaroo): उन लोगों से जिन्होंने इनकार किया।
وَجَاعِلُ الَّذِينَ اتَّبَعُوكَ (Wa Jaa'ilul-ladheenat-taba'ook): और बनाने वाला हूँ उन्हें जिन्होंने तेरा अनुसरण किया।
فَوْقَ الَّذِينَ كَفَرُوا (Fawqal-ladheena kafaroo): उन लोगों से ऊपर जिन्होंने इनकार किया।
إِلَىٰ يَوْمِ الْقِيَامَةِ (Ilaa Yawmil-Qiyaamah): कयामत के दिन तक।
ثُمَّ إِلَيَّ مَرْجِعُكُمْ (Thumma ilayya marji'ukum): फिर मेरी ही ओर तुम सबकी वापसी है।
فَأَحْكُمُ بَيْنَكُمْ (Fa ahkumu bainakum): तो मैं तुम्हारे बीच फैसला करूँगा।
فِيمَا كُنْتُمْ فِيهِ تَخْتَلِفُونَ (Fimaa kuntum feehi takhtalifoon): उस मामले में जिसमें तुम मतभेद करते रहे।
पूरी व्याख्या (Full Explanation in Hindi):
यह आयत हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) के जीवन के अंत और उनके अनुयायियों के भविष्य के बारे में अल्लाह की दिव्य योजना की घोषणा है। यह पिछली आयत में वर्णित दुश्मनों की साजिश के जवाब में अल्लाह की ओर से एक सांत्वना और आश्वासन है।
अल्लाह हज़रत ईसा से चार महत्वपूर्ण बातें कहता है:
"मैं तुझे उठाने वाला हूँ और अपनी ओर उठाने वाला हूँ": यह इस्लाम की मूल मान्यता है कि हज़रत ईसा को सूली पर नहीं चढ़ाया गया, बल्कि अल्लाह ने उन्हें "वफात" (उठा लेना) देकर अपनी ओर आसमान पर उठा लिया। 'मुतवफ़्फ़िका' का शाब्दिक अर्थ है: "मैं तुम्हें तुम्हारी सांसारिक अवधि के अंत तक पहुँचा दूँगा।" प्रचलित मुस्लिम मान्यता यह है कि ईसा मसीह को मारने की एक साज़िश रची गई थी। अल्लाह ने ईसा मसीह को धोखा देने वाले मुख्य अपराधी को बिल्कुल ईसा मसीह जैसा बना दिया, जबकि अपराधी को सूली पर चढ़ा दिया गया। ईसाइयों की तरह, मुसलमान भी ईसा मसीह (ﷺ) के दूसरे आगमन में विश्वास करते हैं।
"और तुझे काफिरों से पवित्र करने वाला हूँ": अल्लाह ने उन्हें उन लोगों की गंदी साजिशों और अपमान से बचा लिया, जो उन्हें मारना चाहते थे या उन पर झूठे आरोप लगा रहे थे।
"और तेरे अनुयायियों को काफिरों से ऊपर रखने वाला हूँ": यह एक वादा है। ऐतिहासिक रूप से, सच्चे ईमान वाले ईसाई (हवारी) और बाद में मुसलमान, हज़रत ईसा को ईश्वर मानने वालों या उनका इनकार करने वालों पर आध्यात्मिक, नैतिक और कभी-कभी भौतिक रूप से श्रेष्ठ रहे हैं।
"फिर मेरी ही ओर तुम सबकी वापसी है...": अंतिम फैसला अल्लाह के पास है। कयामत के दिन वही हज़रत ईसा की वास्तविक हैसियत और सभी लोगों के बीच हुए मतभेदों (जैसे उनकी प्रकृति पर) का अंतिम फैसला करेगा।
सीख और शिक्षा (Lesson and Moral):
अल्लाह की योजना सर्वोच्च है: कोई भी मनुष्य अल्लाह की इच्छा को रोक नहीं सकता। उसने हज़रत ईसा को बचा लिया, भले ही पूरी दुनिया उन्हें मारना चाहती थी।
सत्य की अंतिम जीत: अल्लाह का वादा है कि सच्चे ईमान वाले हमेशा बहकने वालों पर विजयी रहेंगे, भले ही अस्थायी रूप से उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़े।
अंतिम न्याय अल्लाह के पास है: सभी धार्मिक मतभेदों और झगड़ों का अंतिम समाधान अल्लाह के पास कयामत के दिन होगा। इसलिए, हमें अत्यधिक बहस में पड़ने की बजाय, सच्चाई के साथ रहना चाहिए।
अतीत, वर्तमान और भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):
अतीत (Past) के लिए: यह आयत प्रारंभिक ईसाइयों (हवारियों) के लिए एक शक्तिशाली सांत्वना और आश्वासन थी। इसने उन्हें विश्वास दिलाया कि भले ही उन्हें सताया जा रहा हो, अल्लाह उन्हें श्रेष्ठता प्रदान करेगा।
वर्तमान (Present) के लिए: आज के संदर्भ में यह आयत हमें यह सिखाती है:
ईसा (अलैहिस्सलाम) का इस्लामी दृष्टिकोण: यह हज़रत ईसा के बारे में इस्लाम के अंतिम और स्पष्ट दृष्टिकोण को दर्शाती है - उनकी हत्या नहीं की गई, बल्कि अल्लाह ने उन्हें बचा लिया।
आस्था और विज्ञान: सूली पर चढ़ाए जाने की ऐतिहासिकता पर कई विद्वानों ने सवाल उठाए हैं। यह आयत एक वैकल्पिक, दिव्य स्पष्टीकरण प्रस्तुत करती है।
मुसलमानों के लिए गौरव: मुसलमान हज़रत ईसा के सच्चे अनुयायी हैं क्योंकि वे उन्हें अल्लाह का पैगंबर मानते हैं, न कि ईश्वर। इसलिए, अल्लाह का वादा कि "तेरे अनुयायी श्रेष्ठ रहेंगे" मुसलमानों पर भी लागू होता है।
भविष्य (Future) के लिए: यह आयत हमेशा के लिए हज़रत ईसा के दूसरे आगमन (वापसी) की इस्लामी मान्यता की नींव है। चूंकि वह मृत नहीं हुए बल्कि आसमान पर उठा लिए गए हैं, इसलिए उनकी वापसी की संभावना बनी रहती है। साथ ही, यह आयत कयामत के दिन के अंतिम न्याय की याद दिलाकर, भविष्य की हर पीढ़ी को जिम्मेदारी के साथ जीने की प्रेरणा देती रहेगी।