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कुरआन की आयत 3:60 की पूरी व्याख्या

 

﴿الْحَقُّ مِن رَّبِّكَ فَلَا تَكُن مِّنَ الْمُمْتَرِينَ﴾

(Surah Aal-e-Imran, Ayat: 60)


अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning):

  • الْحَقُّ (Al-Haqqu): सच्चाई / सत्य।

  • مِن رَّبِّكَ (Mir Rabbika): आपके पालनहार की ओर से।

  • فَلَا تَكُن (Falaa takun): तो आप न हों।

  • مِّنَ الْمُمْتَرِينَ (Minal mumtareen): संदेह करने वालों में से।


पूरी व्याख्या (Full Explanation in Hindi):

यह आयत बेहद संक्षिप्त लेकिन बहुत गहरी और दमदार है। यह पिछली आयतों में दिए गए तर्क का निष्कर्ष है, विशेष रूप से हज़रत ईसा और हज़रत आदम के बीच खींची गई समानता का।

अल्लाह पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से कहता है:

  1. "सच्चाई आपके पालनहार की ओर से है": यहाँ "अल-हक़" (सच्चाई) से तात्पर्य हज़रत ईसा के बारे में दिया गया पूरा स्पष्टीकरण है - कि वह अल्लाह के पैगंबर और बन्दे हैं, उसके पुत्र नहीं। यह सच्चाई किसी मनुष्य की राय या अटकल नहीं है, बल्कि सीधे "आपके पालनहार" यानी संपूर्ण ज्ञान और सत्य के स्रोत की ओर से आई है। यह वही सत्य है जिसे अल्लाह ने अपने दिव्य ज्ञान से जाना और अपने पैगंबर को बताया।

  2. "तो आप संदेह करने वालों में से न हों": यह एक स्पष्ट आदेश, सलाह और समर्थन है। अल्लाह पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को संबोधित कर रहा है, लेकिन यह संदेश हर मोमिन के लिए है। जब सत्य स्पष्ट हो जाए और उसका स्रोत स्वयं अल्लाह हो, तो फिर संदेह (शक) के लिए कोई जगह नहीं बचती। पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के लिए यह आश्वासन था कि आप इस सच्चाई को पूरे दृढ़ विश्वास के साथ पेश करें, भले ही पूरी दुनिया इसका इनकार कर दे।


सीख और शिक्षा (Lesson and Moral):

  1. सत्य का स्रोत अल्लाह है: एक मुसलमान का मानना है कि अंतिम और पूर्ण सत्य केवल अल्लाह की ओर से आता है, चाहे वह कुरआन के माध्यम से हो या उसकी सृष्टि की निशानियों के through।

  2. ईमान में दृढ़ता: जब सत्य स्पष्ट हो जाए, तो एक मोमिन का फर्ज है कि वह दृढ़ विश्वास के साथ उस पर अडिग रहे। उसे संदेह, डर या दबाव में आकर सत्य से समझौता नहीं करना चाहिए।

  3. आंतरिक निश्चय की आवश्यकता: दूसरों को दावत देने से पहले, अपने दिल में सत्य के प्रति पूरा यकीन और निश्चय होना चाहिए। संदेह की भावना आंतरिक रूप से कमजोर कर देती है।


अतीत, वर्तमान और भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):

  • अतीत (Past) के लिए: पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के लिए, यह आयत एक मजबूत समर्थन थी। जब आप मक्का के बहुदेववादियों और मदीना के यहूदियों और ईसाइयों के सामने इस सत्य को पेश कर रहे थे, तो यह आयत आपके दिल में एक अटूट विश्वास भरती थी कि आप जो कह रहे हैं, वह पूर्ण सत्य है।

  • वर्तमान (Present) के लिए: आज के संदर्भ में यह आयत हमें यह सिखाती है:

    • धार्मिक भ्रम से मुक्ति: आज के युग में इंटरनेट और विभिन्न विचारधाराओं के कारण बहुत से युवा धार्मिक संदेहों से ग्रस्त हैं। यह आयत उन्हें याद दिलाती है कि कुरआन का ज्ञान "अल-हक़" है और उस पर दृढ़ विश्वास रखना चाहिए।

    • दावत-ए-दीन का तरीका: इस्लाम का प्रचार करते समय, हमारे अंदर इस बात का पूरा यकीन होना चाहिए कि हम जो संदेश दे रहे हैं, वह अल्लाह की ओर से सत्य है। यह विश्वास हमारे अंदर आत्मविश्वास पैदा करता है।

    • वैज्ञानिक तथ्यों के साथ सामंजस्य: कुरआन की आयतों और वैज्ञानिक तथ्यों के बीच कोई विरोधाभास नहीं है। कुरआन "अल-हक़" है, और विज्ञान अल्लाह की सृष्टि के नियमों की खोज है। दोनों में टकराव नहीं है।

  • भविष्य (Future) के लिए: यह आयत हमेशा मुसलमानों के लिए "आस्था और दृढ़ विश्वास की आधारशिला" बनी रहेगी। भविष्य में जब भी नए-नए सवाल और चुनौतियाँ उठेंगी, यह आयत हर मोमिन को यह याद दिलाती रहेगी कि अल्लाह से आया हुआ ज्ञान ही परम सत्य ("अल-हक़") है और उस पर अडिग रहना ही एक मोमिन की पहचान है। यह आयत संदेह के हर बादल को चीरने का हथियार है।