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कुरआन की आयत 3:59 की पूरी व्याख्या

 

﴿إِنَّ مَثَلَ عِيسَىٰ عِندَ اللَّهِ كَمَثَلِ آدَمَ ۖ خَلَقَهُ مِن تُرَابٍ ثُمَّ قَالَ لَهُ كُن فَيَكُونُ﴾

(Surah Aal-e-Imran, Ayat: 59)


अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning):

  • إِنَّ مَثَلَ عِيسَىٰ (Inna masala 'Eesaa): निस्संदेह ईसा की मिसाल (उदाहरण)।

  • عِندَ اللَّهِ (Indal-Laahi): अल्लाह के यहाँ।

  • كَمَثَلِ آدَمَ (Ka-masali Aadama): आदम की मिसाल के समान है।

  • خَلَقَهُ مِن تُرَابٍ (Khalaqahu min turaabin): उसे (आदम को) मिट्टी से पैदा किया।

  • ثُمَّ قَالَ لَهُ كُن فَيَكُونُ (Thumma qaala lahu Kun fayakoonu): फिर उससे कहा "हो जा", तो वह हो गया।


पूरी व्याख्या (Full Explanation in Hindi):

यह आयत हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) के बारे में एक बहुत ही शक्तिशाली और तार्किक तर्क प्रस्तुत करती है। यह उन लोगों के लिए एक स्पष्ट जवाब है जो हज़रत ईसा के बिना पिता के पैदा होने को उनकी दैवीयता (ईश्वर होने) का प्रमाण मानते थे।

अल्लाह कहता है कि हज़रत ईसा का मामला अल्लाह के यहाँ हज़रत आदम (अलैहिस्सलाम) के मामले के "बिल्कुल समान" है।

  1. हज़रत आदम की सृष्टि: हज़रत आदम की रचना बिना माता और बिना पिता के, सीधे "मिट्टी से" की गई। अल्लाह ने मिट्टी ली और उसे एक इंसान का आकार दिया, फिर उसमें रूह फूँकी। यह अल्लाह की सर्वशक्तिमत्ता का सबसे बड़ा प्रमाण है।

  2. हज़रत ईसा की सृष्टि: हज़रत ईसा की रचना बिना पिता के, लेकिन एक माता (हज़रत मरयम) के द्वारा हुई।

तर्क: अगर बिना माता-पिता के पैदा होने वाले हज़रत आदम अल्लाह के बन्दे और उसके पैगंबर थे, तो बिना पिता के पैदा होने वाले हज़रत ईसा भी अल्लाह के बन्दे और उसके पैगंबर ही हैं। दोनों ही मामलों में अल्लाह की "कुन फयकून" (हो जा, तो वह हो जाता है) की शक्ति काम कर रही थी। हज़रत ईसा का जन्म एक चमत्कार था, लेकिन वह उन्हें ईश्वर नहीं बनाता, बल्कि ईश्वर की शक्ति का प्रमाण बनाता है।


सीख और शिक्षा (Lesson and Moral):

  1. अल्लाह की सर्वशक्तिमत्ता: अल्लाह के लिए पैदा करने का कोई एक तरीका नहीं है। वह जिस तरह चाहे, जिसे चाहे, पैदा कर सकता है। उसकी शक्ति सभी मानवीय समझ से परे है।

  2. ईसा (अलैहिस्सलाम) की सही हैसियत: यह आयत हज़रत ईसा की दैवीयता के सिद्धांत का स्पष्ट रूप से खंडन करती है। वह अल्लाह के पैगंबर थे, अल्लाह नहीं।

  3. तार्किक सोच: इस्लाम लोगों को तार्किक ढंग से सोचने के लिए प्रेरित करता है। यह आयत एक बहुत ही सटीक और दमदार तर्क देती है जिसे कोई भी ईमानदारी से सोचने वाला व्यक्ति अस्वीकार नहीं कर सकता।


अतीत, वर्तमान और भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):

  • अतीत (Past) के लिए: पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के समय में, यह आयत ईसाइयों और यहूदियों दोनों के लिए एक स्पष्ट चुनौती थी, खासकर उन लोगों के लिए जो हज़रत ईसा को ईश्वर मानते थे। यह एक ऐसा तर्क था जिसका उनके पास कोई जवाब नहीं था।

  • वर्तमान (Present) के लिए: आज के संदर्भ में यह आयत अत्यधिक प्रासंगिक है:

    • अंतर-धार्मिक संवाद: आज भी, जब ईसाई मिशनरी हज़रत ईसा के चमत्कारी जन्म को उनकी दैवीयता का प्रमाण बताते हैं, तो यह आयत एक शक्तिशाली और तार्किक जवाब प्रदान करती है।

    • वैज्ञानिक सोच वालों के लिए: आज का मनुष्य विज्ञान और तर्क में विश्वास रखता है। यह आयत एक तार्किक समानता पेश करती है जो हर विचारशील व्यक्ति को सोचने पर मजबूर कर देती है।

    • ईमान को मजबूत करना: यह आयत आज के मुसलमानों के ईमान को मजबूत करती है और उन्हें हज़रत ईसा के बारे में इस्लाम की स्थिति पर गर्व कराती है।

  • भविष्य (Future) के लिए: यह आयत हमेशा मानवता के सामने "तौहीद" (एकेश्वरवाद) और "अल्लाह की सर्वशक्तिमत्ता" का एक स्थायी प्रमाण बनी रहेगी। जब तक दुनिया में ईसाई और मुसलमान रहेंगे, हज़रत ईसा की हैसियत पर चर्चा बनी रहेगी और यह आयत कयामत तक इस बहस में इस्लाम का सबसे मजबूत तर्क प्रस्तुत करती रहेगी। यह भविष्य की हर पीढ़ी को सिखाती रहेगी कि अल्लाह की शक्ति के सामने कोई तर्क नहीं चल सकता।