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कुरआन की आयत 3:58 की पूरी व्याख्या

 

﴿ذَٰلِكَ نَتْلُوهُ عَلَيْكَ مِنَ الْآيَاتِ وَالذِّكْرِ الْحَكِيمِ﴾

(Surah Aal-e-Imran, Ayat: 58)


अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning):

  • ذَٰلِكَ (Zaalika): यह (जो कुछ हमने बताया)।

  • نَتْلُوهُ (Natloohu): हम पढ़कर सुनाते हैं।

  • عَلَيْكَ (Alaika): आप पर (आपकी ओर)।

  • مِنَ الْآيَاتِ (Minal Aayaati): आयतों (निशानियों) में से।

  • وَالذِّكْرِ الْحَكِيمِ (Waz-Zikril-Hakeem): और बुद्धिमत्ता वाले ज्ञान (कुरआन) में से।


पूरी व्याख्या (Full Explanation in Hindi):

यह आयत हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) और हज़रत मरयम के बारे में चल रए वर्णन के एक खंड का समापन है। यह एक संक्षिप्त लेकिन गहरा वक्तव्य है जो इस पूरे प्रसंग के स्रोत और उद्देश्य को स्पष्ट करता है।

इस आयत के दो मुख्य भाग हैं:

  1. "यह (जो कुछ हमने बताया) हम आप पर पढ़कर सुनाते हैं": शब्द "नतलू" का अर्थ है पढ़ना, पाठ करना, या घोषणा करना। यह इस बात पर जोर देता है कि पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को यह ज्ञान स्वयं अपने अध्ययन या कल्पना से प्राप्त नहीं हुआ, बल्कि अल्लाह ने इसे उन पर "पढ़कर सुनाया" (वह्य के माध्यम से) है। यह कुरआन के दिव्य स्रोत की पुष्टि करता है।

  2. "आयतों और बुद्धिमत्ता वाले ज्ञान में से": अल्लाह बताता है कि यह वर्णन दो चीजों का हिस्सा है:

    • आयतें (निशानियाँ): ये अल्लाह की शक्ति, उसकी योजना और उसके पैगंबरों की सच्चाई की निशानियाँ हैं। हज़रत ईसा का जन्म, उनके चमत्कार, उनका उठाया जाना - ये सभी अल्लाह की शक्ति की "आयतें" (निशानियाँ) हैं।

    • बुद्धिमत्ता वाला ज्ञान (अज़-ज़िक्र अल-हकीम): यह कुरआन का एक गहरा नाम है। "हकीम" का अर्थ है बुद्धिमत्तापूर्ण, तत्वदर्शितापूर्ण। इसका मतलब है कि कुरआन केवल घटनाओं का ब्यौरा नहीं है, बल्कि इसमें गहरा ज्ञान, न्याय और जीवन का मार्गदर्शन छिपा हुआ है।

संक्षेप में, अल्लाह कह रहा है: "हे पैगंबर, जो कुछ भी हमने आपको हज़रत ईसा और मरयम के बारे में बताया है, वह हमारी आयतों और उस बुद्धिमत्तापूर्ण किताब (कुरआन) का एक अंश है जिसे हम आपकी ओर भेज रहे हैं।"


सीख और शिक्षा (Lesson and Moral):

  1. कुरआन का दिव्य स्रोत: इस आयत से स्पष्ट है कि कुरआन अल्लाह का कलाम है, न कि पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की अपनी रचना। यह उसकी सच्चाई का एक प्रमाण है।

  2. कुरआन का उद्देश्य: कुरआन केवल इतिहास की किताब नहीं है। इसकी हर कहानी, हर आयत में "हिक्मत" (बुद्धिमत्ता) और मार्गदर्शन छिपा है, जिससे इंसान सबक ले सकता है।

  3. कुरआन के प्रति सम्मान: चूंकि कुरआन "अज़-ज़िक्र अल-हकीम" है, इसलिए हमारा कर्तव्य है कि हम इसके ज्ञान को समझें, इस पर गहराई से विचार करें और इसके मार्गदर्शन को अपने जीवन में उतारें।


अतीत, वर्तमान और भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):

  • अतीत (Past) के लिए: पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और प्रारंभिक मुसलमानों के लिए, यह आयत एक स्पष्टीकरण थी कि उन्हें यह ज्ञान कहाँ से मिल रहा है। यह उनके ईमान को मजबूत करती थी, खासकर तब जब यहूदी और ईसाई उनसे पूछताछ करते थे।

  • वर्तमान (Present) के लिए: आज के संदर्भ में यह आयत हमें यह सिखाती है:

    • कुरआन को समझने का तरीका: हमें कुरआन की आयतों को सिर्फ एक कहानी की तरह नहीं, बल्कि एक "हिक्मत" (बुद्धिमत्ता) के रूप में पढ़ना चाहिए और उससे जीवन के सबक निकालने चाहिए।

    • वैज्ञानिक सवालों का जवाब: जो लोग पूछते हैं कि पैगंबर को यह ऐतिहासिक जानकारी कहाँ से मिली, इस आयत का जवाब है - यह सीधे अल्लाह की ओर से है, जो "ग़ैब" (अदृश्य) का जानकार है।

    • अध्ययन की प्रेरणा: यह आयत हमें कुरआन का गहन अध्ययन (तदब्बुर) करने के लिए प्रेरित करती है ताकि हम उसमें छिपी हुई हिक्मत को पहचान सकें।

  • भविष्य (Future) के लिए: यह आयत हमेशा कुरआन की "दिव्यता और बुद्धिमत्ता" के स्थायी प्रमाण के रूप में खड़ी रहेगी। भविष्य की हर चुनौती, हर वैज्ञानिक खोज और हर दार्शनिक प्रश्न का उत्तर इस "बुद्धिमत्तापूर्ण ज्ञान" में मौजूद रहेगा। यह आयत भविष्य की पीढ़ियों को कुरआन की गहराइयों में उतरने और उससे मार्गदर्शन लेते रहने का आह्वान करती रहेगी।