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कुरआन की आयत 3:62 की पूरी व्याख्या

 

﴿إِنَّ هَٰذَا لَهُوَ الْقَصَصُ الْحَقُّ ۚ وَمَا مِنْ إِلَٰهٍ إِلَّا اللَّهُ ۚ وَإِنَّ اللَّهَ لَهُوَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ﴾

(Surah Aal-e-Imran, Ayat: 62)


अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning):

  • إِنَّ هَٰذَا (Inna haazaa): निश्चित रूप से यह।

  • لَهُوَ الْقَصَصُ الْحَقُّ (Lahuwal-qasasul-haqq): यही सच्चा वर्णन है।

  • وَمَا مِنْ إِلَٰهٍ إِلَّا اللَّهُ (Wa maa min ilaahin illal-Laah): और कोई पूज्य (इलाह) नहीं है अल्लाह के सिवा।

  • وَإِنَّ اللَّهَ (Wa innal-Laaha): और निश्चित रूप से अल्लाह।

  • لَهُوَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ (Lahuwal-'Azeezul-Hakeem): वही तो सर्वशक्तिमान, तत्वदर्शी है।


पूरी व्याख्या (Full Explanation in Hindi):

यह आयत हज़रत मरयम और हज़रत ईसा (अलैहिमस्सलाम) के बारे में चल रए लंबे वर्णन का समापन और सारांश प्रस्तुत करती है। यह एक दृढ़ और अंतिम घोषणा है जो तीन मौलिक सत्यों को स्थापित करती है:

  1. "निश्चित रूप से यही सच्चा वर्णन है": अल्लाह पिछली कई आयतों में दी गई सारी जानकारी - हज़रत मरयम का चुनाव, हज़रत ईसा का चमत्कारिक जन्म, उनके चमत्कार, उनका संदेश और उनके उठाए जाने की घटना - को "अल-क़सस अल-हक़" (सच्चा वर्णन) घोषित करता है। यह झूठे दावों, गलतफहमियों और मनगढ़ंत कहानियों के विपरीत है। यह इस बात पर मुहर लगाता है कि कुरआन ही हज़रत ईसा के बारे में अंतिम और सही सच्चाई प्रस्तुत करता है।

  2. "और कोई पूज्य (इलाह) नहीं है अल्लाह के सिवा": यह पूरे प्रसंग से निकला सबसे बड़ा सबक है। हज़रत ईसा का चमत्कारिक जन्म भी उन्हें पूजने का आधार नहीं बनाता। वह अल्लाह के बन्दे और उसके पैगंबर थे। सृष्टि का एकमात्र हक़दार पूज्य (माबूद) तो केवल "अल्लाह" ही है। यह "कलिमा-ए-तौहीद" (ला इलाहा इल्लल्लाह) की पुष्टि है।

  3. "और निश्चित रूप से अल्लाह ही सर्वशक्तिमान, तत्वदर्शी है": आयत के अंत में अल्लाह के दो गुणों के साथ समापन होता है:

    • अल-अज़ीज़ (सर्वशक्तिमान): वह सब पर प्रबल है। उसकी कोई हार नहीं है। उसने हज़रत ईसा को उनके दुश्मनों की साजिश से बचा लिया, क्योंकि वह अज़ीज़ है।

    • अल-हकीम (तत्वदर्शी): उसकी हर योजना और हर फैसले में गहरी बुद्धिमत्ता और हिक्मत है। हज़रत ईसा को भेजना, उन्हें उठा लेना - यह सब उसकी अथाह हिक्मत का हिस्सा है।


सीख और शिक्षा (Lesson and Moral):

  1. कुरआन - सत्य का मापदंड: कुरआन ही वह कसौटी है जो ऐतिहासिक और धार्मिक मामलों में सच और झूठ का फर्क बताती है। हमें कुरआन को ही अंतिम सत्य मानना चाहिए।

  2. तौहीद - सभी संदेशों का सार: सभी पैगंबरों का मुख्य संदेश एक ही था - "ला इलाहा इल्लल्लाह"। हज़रत ईसा का संदेश भी यही था। यही इस्लाम की आधारशिला है।

  3. अल्लाह पर पूरा भरोसा: चूंकि अल्लाह अज़ीज़ और हकीम है, इसलिए एक मोमिन को हर परिस्थिति में उसी पर भरोसा करना चाहिए। वह अपने नेक बन्दों की हिफाजत करता है और उसकी हर योजना में भलाई होती है।


अतीत, वर्तमान और भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):

  • अतीत (Past) के लिए: पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और प्रारंभिक मुसलमानों के लिए, यह आयत एक स्पष्टीकरण और हौसला अफजाई थी। इसने उन्हें यहूदियों और ईसाइयों के सामने हज़रत ईसा के बारे में इस्लाम के स्पष्ट दृष्टिकोण को रखने का आधार दिया।

  • वर्तमान (Present) के लिए: आज के संदर्भ में यह आयत अत्यधिक प्रासंगिक है:

    • सूचना के युग में मार्गदर्शन: आज इंटरनेट और किताबों में हज़रत ईसा के बारे में असंख्य मत और कहानियाँ फैली हुई हैं। यह आयत एक "सत्यमापी" (Truth-meter) का काम करती है, जो बताती है कि सही स्थिति क्या है।

    • मुसलमानों की पहचान: यह आयत एक मुसलमान को उसके "अकीदे" (विश्वास) की याद दिलाती है - तौहीद पर दृढ़ रहना और हज़रत ईसा सहित सभी पैगंबरों का सम्मान करना, लेकिन केवल अल्लाह की इबादत करना।

    • आत्मविश्वास: यह आयत हमें यह विश्वास दिलाती है कि हम जिस किताब (कुरआन) का पालन कर रहे हैं, वह पूर्ण सत्य है।

  • भविष्य (Future) के लिए: यह आयत कयामत तक सभी मनुष्यों के लिए एक "स्थायी घोषणापत्र" बनी रहेगी। यह हमेशा इस बात का प्रमाण देती रहेगी कि:

    • कुरआन ही सच्चाई है।

    • अल्लाह ही पूजने के योग्य है।

    • अल्लाह की शक्ति और बुद्धिमत्ता सर्वोच्च है।
      भविष्य की हर पीढ़ी इस आयत से यह सीखती रहेगी कि सभी धार्मिक भ्रमों और गलतफहमियों को दूर करने का एकमात्र रास्ता कुरआन की ओर लौटना है।