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कुरआन की आयत 3:68 की पूरी व्याख्या

 

﴿إِنَّ أَوْلَى النَّاسِ بِإِبْرَاهِيمَ لَلَّذِينَ اتَّبَعُوهُ وَهَٰذَا النَّبِيُّ وَالَّذِينَ آمَنُوا ۗ وَاللَّهُ وَلِيُّ الْمُؤْمِنِينَ﴾

(Surah Aal-e-Imran, Ayat: 68)


अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning):

  • إِنَّ أَوْلَى النَّاسِ بِإِبْرَاهِيمَ (Inna awlan-naasi bi-Ibraaheema): निस्संदेह इब्राहीम के सबसे अधिक निकट (हकदार) लोग।

  • لَلَّذِينَ اتَّبَعُوهُ (Lal-ladheenat-taba'oohu): वे हैं जिन्होंने उनका अनुसरण किया।

  • وَهَٰذَا النَّبِيُّ (Wa haazan-Nabiyyu): और यह पैगंबर (मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम)।

  • وَالَّذِينَ آمَنُوا (Wal-ladeena aamanoo): और जो लोग ईमान लाए (उनके साथ)।

  • وَاللَّهُ وَلِيُّ الْمُؤْمِنِينَ (Wallaahu waliyyul-mu'mineen): और अल्लाह ईमान वालों का रक्षक और मित्र है।


पूरी व्याख्या (Full Explanation in Hindi):

यह आयत पिछली आयतों में चली आ रही बहस का निष्कर्ष प्रस्तुत करती है कि हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) के असली वारिस कौन हैं। अल्लाह स्पष्ट रूप से बता देता है कि इब्राहीम के सबसे नज़दीक और उनके असली अनुयायी कौन हैं।

इस आयत में तीन महत्वपूर्ण समूहों को इब्राहीम का असली वारिस बताया गया है:

  1. "वे हैं जिन्होंने उनका अनुसरण किया": यह एक सार्वभौमिक सिद्धांत है। किसी भी महान व्यक्ति के सबसे निकट वही होते हैं जो उनके रास्ते और उनकी शिक्षाओं पर चलते हैं, न कि वे जो सिर्फ जन्म या नाम के आधार पर दावा करते हैं।

  2. "और यह पैगंबर": यहाँ सीधे तौर पर पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की ओर संकेत किया गया है। आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) हज़रत इब्राहीम के सबसे बड़े अनुयायी हैं क्योंकि आप उनके हनीफ (शुद्ध एकेश्वरवादी) धर्म को अपने शुद्धतम रूप में लेकर आए।

  3. "और जो लोग ईमान लाए": यानी वह उम्मत (समुदाय) जो पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर ईमान लाई और उनके मार्ग का अनुसरण किया। हर वह व्यक्ति जो पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के बताए हुए तरीके से अल्लाह की इबादत करता है, वही हज़रत इब्राहीम का असली वारिस है।

अंतिम आश्वासन: आयत का अंत इस सुखद एहसास के साथ होता है कि "और अल्लाह ईमान वालों का रक्षक और मित्र है।" यह बताता है कि जो लोग इस सच्चाई को स्वीकार करते हैं, अल्लाह स्वयं उनका संरक्षक और सहायक बन जाता है।


सीख और शिक्षा (Lesson and Moral):

  1. वंश नहीं, कर्म महत्वपूर्ण है: अल्लाह के यहाँ किसी महान व्यक्ति के निकट होने का आधार जन्म या वंश नहीं, बल्कि उसके मार्ग का अनुसरण करना है।

  2. मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) इब्राहीम के असली वारिस हैं: इस आयत से स्पष्ट है कि पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और उनकी उम्मत ही हज़रत इब्राहीम के असली उत्तराधिकारी हैं, क्योंकि वे उनके शुद्ध एकेश्वरवाद के मार्ग पर हैं।

  3. अल्लाह पर भरोसा: ईमान वालों को यह जानकर सुकून मिलना चाहिए कि अल्लाह उनका वली (रक्षक और मित्र) है। इसलिए उन्हें किसी के दबाव या डर से सच्चाई को स्वीकार करने में संकोच नहीं करना चाहिए।


अतीत, वर्तमान और भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):

  • अतीत (Past) के लिए: पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और प्रारंभिक मुसलमानों के लिए, यह आयत एक बहुत बड़ा समर्थन और गर्व की बात थी। इसने उन्हें यहूदियों और ईसाइयों के झूठे दावों के सामने खड़े होने का मनोबल दिया।

  • वर्तमान (Present) के लिए: आज के संदर्भ में यह आयत हमें यह सिखाती है:

    • मुस्लिम पहचान का गर्व: आज का मुसलमान गर्व के साथ कह सकता है कि वह हज़रत इब्राहीम जैसे महान पैगंबर का असली अनुयायी है।

    • सांप्रदायिक दावों का जवाब: जब कोई यहूदी या ईसाई यह दावा करे कि इब्राहीम केवल उनके हैं, तो इस आयत का हवाला दिया जा सकता है।

    • एकता का संदेश: यह आयत हमें याद दिलाती है कि हमारी पहचान का आधार "ईमान और अमल" है, न कि जाति या नस्ल। यह हमें एकजुट होकर रहने की प्रेरणा देती है।

  • भविष्य (Future) के लिए: यह आयत हमेशा मुसलमानों के लिए "आध्यात्मिक वारिस होने का प्रमाणपत्र" बनी रहेगी। भविष्य की हर पीढ़ी इस आयत को पढ़कर यह विश्वास और गर्व महसूस करेगी कि वह हज़रत इब्राहीम के मार्ग पर है और अल्लाह उसका रक्षक है। यह आयत हमेशा मुसलमानों को उनकी पहचान और मिशन का एहसास दिलाती रहेगी।