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कुरआन की आयत 3:72 की पूरी व्याख्या

 

﴿وَقَالَت طَّائِفَةٌ مِّنْ أَهْلِ الْكِتَابِ آمِنُوا بِالَّذِي أُنزِلَ عَلَى الَّذِينَ آمَنُوا وَجْهَ النَّهَارِ وَاكْفُرُوا آخِرَهُ لَعَلَّهُمْ يَرْجِعُونَ﴾

(Surah Aal-e-Imran, Ayat: 72)


अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning):

  • وَقَالَت طَّائِفَةٌ (Wa qaalat taa-ifatum): और एक समूह ने कहा।

  • مِّنْ أَهْلِ الْكِتَابِ (Min Ahlil-Kitaab): अहले-किताब में से।

  • آمِنُوا بِالَّذِي أُنزِلَ (Aaminoo billazee unzila): ईमान लाओ उस (किताब) पर जो उतारी गई।

  • عَلَى الَّذِينَ آمَنُوا (Alal-lazeena aamanoo): उन लोगों पर जो ईमान लाए (मुसलमानों पर)।

  • وَجْهَ النَّهَارِ (Wajhan-nahaari): दिन के आरंभ (सुबह) में।

  • وَاكْفُرُوا آخِرَهُ (Wakfurooo aakhirahu): और इनकार कर दो उसके अंत (शाम) में।

  • لَعَلَّهُمْ يَرْجِعُونَ (La'allahum yarji'oon): ताकि शायद वे (भी) लौट आएँ (अपने धर्म से फिर जाएँ)।


पूरी व्याख्या (Full Explanation in Hindi):

यह आयत अहले-किताब (यहूदियों) के एक समूह की साजिश और धार्मिक छल का भंडाफोड़ करती है। यह उनकी चालबाजी को दर्शाती है कि कैसे वह मुसलमानों के ईमान को तोड़ने के लिए एक नाटकीय योजना बना रहे थे।

इस साजिश के चरण इस प्रकार थे:

  1. दिखावे के लिए ईमान लाना: उनका एक समूह मुसलमानों के सामने "दिन के आरंभ" (सुबह) में आकर यह घोषणा करता कि हम उस किताब (कुरआन) पर ईमान लाते हैं जो मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर उतरी है। यह एक झूठा और दिखावटी कदम था।

  2. शाम तक इनकार कर देना: फिर "दिन के अंत" (शाम) तक आते-आते वही लोग अपने इस ईमान से पलट जाते और कहते कि हम तो मजाक कर रहे थे, हमने इसका इनकार कर दिया है।

उनका मकसद: यह सब करने का उनका एक शातिर मकसद था - "ताकि शायद वे (मुसलमान) भी लौट आएँ।" यानी जब नए मुसलमान (जो पहले यहूदी थे) यह देखेंगे कि उनके अपने ही पुराने धर्म के लोग इस्लाम लेकर फिर से वापस लौट रहे हैं, तो शायद उनके मन में भी शक पैदा हो और वह भी इस्लाम छोड़कर यहूदी धर्म में वापस आ जाएँ।

संक्षेप में, यह "ईमान का झूठा नाटक" था जिसका एकमात्र उद्देश्य मुसलमानों के दिलों में संदेह पैदा करना और उन्हें उनके नए धर्म से विमुख करना था।


सीख और शिक्षा (Lesson and Moral):

  1. धार्मिक छल-कपट की चेतावनी: दुनिया में हमेशा ऐसे लोग रहेंगे जो धर्म के मामले में छल-कपट से काम लेंगे। एक मोमिन को सजग रहना चाहिए।

  2. ईमान एक गंभीर मामला है: ईमान कोई खेल या मजाक नहीं है। इसे दिखावे या धोखे के लिए इस्तेमाल करना एक भयानक पाप है।

  3. दृढ़ विश्वास की आवश्यकता: अगर किसी का ईमान मजबूत और ज्ञान पर आधारित है, तो ऐसी छोटी-छोटी चालें उसे डिगा नहीं सकतीं।


अतीत, वर्तमान और भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):

  • अतीत (Past) के लिए: पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के समय में, यह आयत मुसलमानों को उनकी चालों से आगाह करने के लिए थी। अल्लाह ने सीधे उनकी साजिश को बेनकाब कर दिया, जिससे मुसलमान सतर्क हो गए और उनकी चाल कामयाब नहीं हो सकी।

  • वर्तमान (Present) के लिए: आज के संदर्भ में यह आयत अत्यधिक प्रासंगिक है:

    • घुसपैठ की रणनीति: आज भी कुछ संगठन और लोग इस्लाम और मुसलमानों के खिलाफ काम करने के लिए ऐसी ही घुसपैठ और छल की रणनीति अपनाते हैं। वह मुसलमानों का भेष धरकर आते हैं और फिर अंदर से उनके ईमान पर प्रहार करते हैं।

    • सोशल मीडिया पर प्रोपेगैंडा: आज सोशल मीडिया पर कई फर्जी अकाउंट ("Trolls") बनाकर इस्लाम के खिलाफ भ्रम फैलाया जाता है। यह आधुनिक युग की "ताइफा" है।

    • मुसलमानों के लिए सतर्कता: मुसलमानों को चाहिए कि वह हर नए आने वाले व्यक्ति या हर नई बात को बिना जाँचे-परखे स्वीकार न करें। उन्हें अपना ज्ञान मजबूत करना चाहिए ताकि कोई उनके ईमान के साथ खिलवाड़ न कर सके।

  • भविष्य (Future) के लिए: यह आयत हमेशा मुसलमानों के लिए एक "सतर्कता की घंटी" बनी रहेगी। जब तक इस दुनिया में सत्य और असत्य का संघर्ष रहेगा, सत्य के दुश्मन छल-कपट की नई-नई रणनीतियाँ बनाते रहेंगे। यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी को यह याद दिलाती रहेगी कि ईमान की रक्षा के लिए ज्ञान, सजगता और दृढ़ विश्वास जरूरी है। यह आयत हमेशा धार्मिक छल-कपट के खिलाफ एक चेतावनी के रूप में खड़ी रहेगी।