1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)
رَبَّنَا لَا تُزِغْ قُلُوبَنَا بَعْدَ إِذْ هَدَيْتَنَا وَهَبْ لَنَا مِن لَّدُنكَ رَحْمَةً ۚ إِنَّكَ أَنتَ الْوَهَّابُ
2. अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning)
رَبَّنَا (रब्बना): हे हमारे पालनहार।
لَا تُزِغْ (ला तुज़िग): तिरछा न कर, भटका न दे।
قُلُوبَنَا (क़ुलूबना): हमारे दिलों को।
بَعْدَ (बअद): बाद में।
إِذْ (इज़): जब कि।
هَدَيْتَنَا (हदैतना): तूने हमें मार्गदर्शन दिया है।
وَهَبْ (व हब): और प्रदान कर।
لَنَا (लना): हमें।
مِن لَّدُنكَ (मिन लदुनका): अपने पास से (विशेष रूप से)।
رَحْمَةً (रहमतन): दया।
إِنَّكَ (इन्नका): बेशक तू ही है।
أَنتَ (अन्त): तू।
الْوَهَّابُ (अल-वह्हाब): बख़्शने वाला, देने वाला।
3. पूर्ण व्याख्या (Full Explanation in Hindi)
यह आयत पिछली आयत (3:7) का सीधा और सुंदर परिणाम है। 3:7 में दो तरह के लोगों का वर्णन था: एक वे जिनके दिल टेढ़े (ज़ैग) हैं और दूसरे वे जो ज्ञान में गहरी पैठ रखते हैं (रासिख़ून फिल इल्म)। अब, यह आयत उन सच्चे ईमान वालों की दुआ है जो अपने दिलों के टेढ़े होने और हिदायत खो देने के डर से अल्लाह से पनाह मांग रहे हैं।
यह दुआ एक सच्चे मोमिन की मनोदशा को दर्शाती है, जो अपने ईमान की सुरक्षा के लिए सतर्क और चिंतित रहता है।
इस दुआ के दो मुख्य भाग हैं:
1. रब्बना ला तुज़िग क़ुलूबना बअद इज़ हदैतना (हे हमारे रब! हमारे दिलों को तिरछा न कर, उसके बाद कि तूने हमें हिदायत बख्शी है):
यहाँ "हिदायत" से मतलब है इस्लाम और ईमान की नेमत। मोमिन अल्लाह से दरख्वास्त करता है कि हे अल्लाह! जैसे तूने हमें तौफीक़ दी और हिदायत का रास्ता दिखाया, अब इस हिदायत को हमसे छीन मत लेना।
"दिल का टेढ़ा होना" यानी सच्चाई से भटक जाना, ईमान में कमज़ोरी आना, शक-शुबहों में पड़ जाना, या दुनिया की चकाचौंध में अपना लक्ष्य भूल जाना। यह एक ऐसी दुआ है जो इंसान को गुमराही से बचाने के लिए एक सुरक्षा कवच का काम करती है।
2. व हब लना मिन लदुनका रहमह (और हमें अपने पास से दया प्रदान कर):
जब इंसान अपनी कमज़ोरी और ज़रूरत को महसूस करता है, तो वह अल्लाह की दया और मदद का मुख्ताज बन जाता है।
"मिन लदुनका" (अपने पास से) का मतलब है एक ख़ास, बिना मेहनत के मिलने वाली, रहमत। यह कोई साधारण दया नहीं बल्कि एक विशेष अनुग्रह है – जैसे ईमान की मज़बूती, सच्ची समझ, नेकी की तौफीक़, और जन्नत की प्राप्ति।
इस दुआ का अंत अल्लाह के नाम "अल-वह्हाब" (बख़्शने वाला) के साथ होता है, जो यह बताता है कि अल्लाह अपने बंदों को बिना मांगे और मांगने पर बहुत कुछ देने वाला है।
4. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral)
ईमान की नेमत की कदर: यह दुआ हमें सिखाती है कि ईमान और हिदायत अल्लाह की सबसे बड़ी देन है। हमें इसकी हिफाज़त के लिए हमेशा अल्लाह से दुआ करते रहना चाहिए।
आत्मसंतुष्टि से बचाव: एक मोमिन कभी भी यह नहीं सोचता कि "मेरा ईमान तो पक्का है, अब क्या डर?" बल्कि वह हमेशा इस डर में रहता है कि कहीं उसका अंत बुरा न हो। यह डर ही उसे और अच्छे काम करने के लिए प्रेरित करता है।
अल्लाह पर निर्भरता: यह दुआ हमें सिखाती है कि इंसान अपनी ताकत से कुछ नहीं कर सकता। हिदायत बनाए रखना भी अल्लाह की मदद के बिना मुमकिन नहीं है। इसलिए हमें हमेशा उसी से मदद मांगनी चाहिए।
5. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)
अतीत में प्रासंगिकता (Relevancy to the Past):
पैगंबर और सहाबा की दुआ: यह दुआ पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और आपके सहाबा (साथियों) की पसंदीदा दुआओं में से एक थी। वे हमेशा इस डर में रहते थे कि कहीं उनके दिल ईमान से खाली न हो जाएं। उमर बिन अल-खत्ताब (रज़ियल्लाहु अन्हु) अक्सर यह दुआ किया करते थे।
पिछली कौमों के लिए सबक: पिछली कौमों के बारे में आया है कि उन्हें हिदायत मिलने के बाद भी उनके दिल टेढ़े हो गए। यह दुआ उनके बुरे अंजाम से सबक लेते हुए अल्लाह से पनाह मांगती है।
वर्तमान में प्रासंगिकता (Relevancy to the Present):
धार्मिक संकट के दौर में: आज का माहौल शक-शुबहों, भ्रमों और ऐय्याशियों से भरा हुआ है। सोशल मीडिया और इंटरनेट पर हर तरफ गलत जानकारियाँ और इस्लाम पर हमले हो रहे हैं। ऐसे में एक मुसलमान के लिए यह दुआ एक शक्तिशाली हथियार है ताकि उसका ईमान और दिल सीधा बना रहे।
भौतिकवाद का प्रभाव: आज की भागदौड़ भरी और पैसे-शोहरत में डूबी ज़िंदगी में इंसान का दिन भर दुनिया में लगा रहता है। यह दुआ उसे याद दिलाती है कि अपने दिल की हालत पर नज़र रखो और अल्लाह से उसे सीधा रखने की दुआ करो।
भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy to the Future):
शाश्वत प्रार्थना: जब तक दुनिया रहेगी, ईमान की परीक्षा के नए-नए रूप सामने आते रहेंगे। भविष्य की हर पीढ़ी के सामने नए फितनों (परीक्षणों) और चुनौतियों का सामना होगा। यह दुआ हर मुसलमान के लिए एक स्थायी प्रार्थना बनी रहेगी ताकि वह हर तरह के फितने से अपने ईमान की रक्षा कर सके।
तकनीकी चुनौतियाँ: भविष्य में AI, Virtual Reality और अन्य तकनीकों के माध्यम से ऐसी चुनौतियाँ आ सकती हैं जो सीधे इंसान के ईमान और नैतिकता पर हमला करें। ऐसे में यह दुआ और भी ज़रूरी हो जाएगी कि "हे अल्लाह! हमारे दिलों को तेरे रास्ते से मत मोड़ना।"
निष्कर्ष:
क़ुरआन 3:8 एक हृदयस्पर्शी प्रार्थना है जो हर मोमिन के जीवन का हिस्सा बननी चाहिए। यह अतीत के लिए एक सबक, वर्तमान के लिए एक सुरक्षा कवच और भविष्य के लिए एक मार्गदर्शक है। यह हमें सिखाती है कि हिदायत एक नेमत है और उसे बनाए रखना अल्लाह की दया पर निर्भर है। यह दुआ ईमान की सच्ची भावना और अल्लाह पर पूर्ण भरोसे को दर्शाती है।