1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)
رَبَّنَا إِنَّكَ جَامِعُ النَّاسِ لِيَوْمٍ لَّا رَيْبَ فِيهِ ۚ إِنَّ اللَّهَ لَا يُخْلِفُ الْمِيعَادَ
2. अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning)
رَبَّنَا (रब्बना): हे हमारे पालनहार।
إِنَّكَ (इन्नका): बेशक तू ही है।
جَامِعُ (जामिउ): एकत्र करने वाला।
النَّاسِ (अन-नास): लोगों को।
لِيَوْمٍ (ली-यौमिन): एक ऐसे दिन के लिए।
لَّا رَيْبَ فِيهِ (ला रैबा फ़ीह): जिसमें कोई संदेह नहीं है।
إِنَّ اللَّهَ (इन्नल्लाह): बेशक अल्लाह।
لَا يُخْلِفُ (ला युख्लिफ़ु): तोड़ता नहीं है।
الْمِيعَادَ (अल-मीआद): वादा।
3. पूर्ण व्याख्या (Full Explanation in Hindi)
यह आयत पिछली आयत (3:8) में की गई दुआ का ही एक हिस्सा है और उसी का विस्तार करती है। पहले मोमिन अल्लाह से अपने दिल के सीधे रहने और दया पाने की दुआ करता है, और अब वह उस दुआ का आधार बता रहा है – आखिरत के दिन और अल्लाह के वादे पर पक्का विश्वास।
इस आयत के दो मुख्य भाग हैं:
1. रब्बना इन्नका जामिउन-नासि ली-यौमिल ला रैबा फ़ीह (हे हमारे रब! बेशक तू ही लोगों को एक ऐसे दिन के लिए एकत्र करने वाला है, जिसमें कोई संदेह नहीं है):
यहाँ "वह दिन" से मतलब कयामत का दिन या आखिरत से है।
"जिसमें कोई संदेह नहीं" का अर्थ है कि इस दिन का आना पूरी तरह से निश्चित और सत्य है। यह एक ऐसा सत्य है जिस पर ईमान रखना हर मुसलमान के लिए ज़रूरी है।
इस हिस्से में अल्लाह के एक और गुण "अल-जामे" (एकत्र करने वाला) की ओर इशारा है। वही है जो कयामत के दिन पहली मानव से लेकर आखिरी मानव तक, सभी को इकट्ठा करेगा।
2. इन्नल्लाहा ला युख्लिफ़ुल मीआद (बेशक अल्लाह वादा तोड़ता नहीं है):
यह हिस्सा पहले हिस्से को और मज़बूती प्रदान करता है। अल्लाह ने अपने पैगंबरों के ज़रिए मानवजाति से वादा किया है कि एक दिन उसे उसके कर्मों का हिसाब देना होगा।
अल्लाह का वादा पूरी तरह सत्य है। वह अपने वादे के विपरीत कभी नहीं करता। अगर उसने कयामत का वादा किया है, तो वह ज़रूर आएगी। अगर उसने सज़ा और इनाम का वादा किया है, तो वह ज़रूर मिलेगा।
संदर्भ: यह दुआ मोमिन के दिल की गहरी समझ को दर्शाती है। वह सिर्फ यही नहीं कहता कि "हे अल्लाह, मुझे हिदायत पर कायम रख," बल्कि वह यह भी कहता है कि "मैं उस दिन पर पूरा यकीन रखता हूँ जब तेरे सामने हाज़िर होना है और मैं जानता हूँ कि तू अपना वादा ज़रूर पूरा करेगा।" यह यकीन ही उसे अपने अमल को सही करने और गुनाहों से बचने के लिए प्रेरित करता है।
4. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral)
आखिरत पर दृढ़ विश्वास: इस आयत से सबसे बड़ी शिक्षा यह है कि एक मोमिन का आखिरत के दिन पर दृढ़ और अटूट विश्वास होना चाहिए। यह विश्वास ही उसके जीवन में नैतिकता और जिम्मेदारी की भावना पैदा करता है।
जिम्मेदार जीवन: जब इंसान को यह यकीन हो जाता है कि उसे एक दिन अपने हर छोटे-बड़े कर्म का हिसाब देना है, तो वह गुनाह करने से डरता है और नेकी के काम करने की कोशिश करता है।
अल्लाह के वादे पर भरोसा: यह आयत हमें सिखाती है कि हमें अल्लाह के हर वादे पर पूरा भरोसा रखना चाहिए, चाहे वह जन्नत का वादा हो या दुनिया में मदद का। वह कभी अपना वादा नहीं तोड़ता।
5. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)
अतीत में प्रासंगिकता (Relevancy to the Past):
पैगंबरों का केंद्रीय संदेश: हज़रत मूसा, ईसा और मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) सहित सभी पैगंबरों ने अपनी-अपनी कौमों को आखिरत के दिन की चेतावनी दी। यह आयत उसी संदेश की पुष्टि करती है।
सहाबा का जीवन: पैगंबर के सहाबा (साथियों) का पूरा जीवन इसी यकीन पर आधारित था कि उन्हें अल्लाह के सामने पेश होना है। इसी विश्वास ने उन्हें ऐसी मिसाल बनाया।
वर्तमान में प्रासंगिकता (Relevancy to the Present):
भौतिकवादी दृष्टिकोण: आज का युग भौतिकवाद और नास्तिकता का युग है, जहाँ आखिरत जैसी चीज़ों पर लोग संदेह करते हैं। यह आयत उस संदेह को दूर करके एक स्पष्ट और निश्चित सत्य की घोषणा करती है।
अनैतिकता और भ्रष्टाचार: समाज में बढ़ती अनैतिकता, भ्रष्टाचार और अपराध की एक बड़ी वजह आखिरत के प्रति विश्वास की कमी है। यह आयत लोगों को उनकी जिम्मेदारी का एहसास कराती है।
निराशा और अवसाद: जो लोग दुनिया की मुसीबतों में घिरकर निराश हो जाते हैं, उनके लिए यह आयत आशा की किरण है। यह याद दिलाती है कि अंतिम न्याय और इनाम का दिन ज़रूर आएगा, जहाँ हर अत्याचार का बदला दिया जाएगा।
भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy to the Future):
शाश्वत चेतावनी और आशा: कयामत तक, यह आयत मानवजाति के लिए एक स्थायी चेतावनी और आशा का स्रोत बनी रहेगी। यह हर पीढ़ी को याद दिलाती रहेगी कि जीवन का अंतिम लक्ष्य केवल यह दुनिया नहीं बल्कि आखिरत है।
तकनीकी युग में नैतिकता: भविष्य में AI और अन्य उन्नत तकनीकों के साथ, नैतिक सवाल और भी जटिल होंगे। आखिरत पर विश्वास का सिद्धांत भविष्य के इंसान के लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में काम करेगा, जो उसे यह तय करने में मदद करेगा कि कौन सा रास्ता सही है।
निष्कर्ष:
क़ुरआन 3:9 एक मोमिन के आखिरत के प्रति दृढ़ विश्वास को व्यक्त करती है। यह दुआ केवल शब्द नहीं, बल्कि एक पूरी ज़िंदगी का नज़रिया (Worldview) है। यह अतीत के पैगंबरों के संदेश की पुष्टि है, वर्तमान की अनैतिकता के लिए दवा है और भविष्य की हर चुनौती के लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत है। यह आयत हमें बताती है कि अल्लाह के वादे सच्चे हैं और अंतिम न्याय का दिन निश्चित है।